कलौंजी की खेती देश के कई हिस्सों में होती है. इसका उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है. वहीं इसके बीजों से निकलने वाले तेल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओ और सुगंध इंडस्ट्री में उपयोग किया जाता है. तो आइए जानते हैं कलौंजी की खेती कैसे करें और इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं-
जलवायु
उत्तरी भारत में कलौंजी की खेती के रबी के सीजन में की जाती है. यह सर्दी की फसल है जिसकी बढ़वार के समय हल्की ठंडी और पकते समय हल्की गर्मी की आवश्यकता पड़ती है.
भूमि
इसकी खेती के लिए बुलई और दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है. हालांकि इसकी खेती जीवांशयुक्त सभी मिट्टी में की जा सकती है.
उन्नत किस्में
एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन 1-135 से 140 दिन में पकने वाली इस किस्म के पौधे की लंबाई 2 फीट होती है. इससे प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल की पैदावार होती है.
आजाद कलौंजी
कलौंजी की इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश राज्य में होती है. 140 से 150 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रतिहेक्टेयर उत्पादन 10 से 12 क्विंटल होता है.
पंत कृष्णा- 130 से 140 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 8 से 10 क्विंटल का उत्पादन होता है. इसके पौधे की लंबाई भी 2 से ढाई फीट होती है.
एन.एस. 32-140 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल का उत्पादन होता है.
खेत की तैयारी
कलौंजी के अच्छे उत्पादन के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए. इसके बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर से करें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद पलेवा करके कलौंजी की बुवाई करना चाहिए.
बुवाई का समय
यह रबी सीजन की फसल है और इसकी बुवाई अक्टूबर आंरभ से अक्टूबर अंत तक कर सकते हैं.
बीज दर
प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है.
बीजोपर
विभिन्न रोगों से रोकथाम के लिए केप्टान या थायरम से बीजोपचार करना चाहिए.
बुवाई की विधि
कलौंजी की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती है. वहीं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखना चाहिए. बीज को डेढ़ सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. इसे छिटकवा विधि से बोया जाता है.
खाद एवं उर्वरक
अच्छी पैदावार के लिए खेत में जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद डाले. वहीं इसकी अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस और 15 किलो पोटाश की आवश्यकता पड़ती है.
निराई-गुड़ाई-सिंचाई
हर 30 दिन के बाद निराई गुड़ाई करना चाहिए. इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है. वहीं सिंचाई जरुरत के अनुसार करें.
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