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Black Carrot Farming: काली गाजर की खेती से किसान कमा रहे मोटा मुनाफा, जानें जबरदस्त फायदे और बढ़ती बाजार मांग

काली गाजर की खेती एक उभरता हुआ विकल्प है, जो किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा दे सकती है. इसकी बढ़ती मांग और उपयोगिता को देखते हुए आने वाले वर्षों में यह खेती किसानों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है.

मोहित नागर
Black Carrot Farming
काली गाजर की खेती से किसान कमा रहे मोटा मुनाफा (Pic Credit - Shutter Stock)

Black Carrot Farming Tips: भारत में आमतौर पर लाल और नारंगी गाजर की खेती की जाती है, लेकिन अब एक नई और फायदेमंद वैरायटी काफी तेजी से किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. काली गाजर न सिर्फ पोषण से भरपूर होती है, बल्कि इसकी मांग फार्मा इंडस्ट्री, हेल्थ सेक्टर और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में तेजी से बढ़ रही है. यही वजह है कि काली गाजर की खेती अब किसानों के लिए बंपर मुनाफे का सौदा बन गई है.

क्या है काली गाजर?

काली गाजर (Black Carrot) का रंग गहरा बैंगनी या काला होता है. इसमें एंथोसायनिन (Anthocyanin) नामक खास प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जो इसे खास बनाता है. यही नहीं, यह औषधीय गुणों से भरपूर होती है और कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में सहायक मानी जाती है.

काली गाजर में पाए जाने वाले पोषक तत्व

काली गाजर में निम्नलिखित पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं:

  • आयरन (Iron)
  • तांबा (Copper)
  • पोटैशियम (Potassium)
  • फास्फोरस (Phosphorus)
  • विटामिन A, B, C और E

इन पोषक तत्वों की वजह से यह गाजर सेहत के लिए बेहद लाभकारी होती है.

किन राज्यों में होती है इसकी खेती?

भारत में काली गाजर की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और बिहार के कुछ हिस्सों में की जाती है. अब इसकी खेती गंगा के मैदानी इलाकों से लेकर दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों तक फैल रही है.

खेती का सही समय

काली गाजर की बुवाई अक्टूबर के अंत से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक की जाती है. यह ठंडी जलवायु को पसंद करती है, इसलिए इसकी खेती सर्दियों के मौसम में सबसे उपयुक्त मानी जाती है.

मिट्टी कैसी होनी चाहिए?

काली गाजर की अच्छी उपज के लिए गहरी, उपजाऊ और ह्यूमस युक्त दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है. मिट्टी में अच्छी जल निकासी होनी जरूरी है, ताकि जलभराव न हो.

बीज की मात्रा और बोने का तरीका

  • बीज मात्रा: 1 हेक्टेयर खेत में काली गाजर की खेती के लिए लगभग 4 से 6 किलो बीज की जरूरत होती है.
  • बोने का तरीका: बीजों को 30 सेमी की दूरी पर कतारों में बोया जाता है. बीजों को 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं.

कटाई और उत्पादन

  • काली गाजर की फसल बुवाई के 70 से 90 दिन बाद तैयार हो जाती है. सही समय पर कटाई करने से क्वालिटी और स्वाद बेहतर बना रहता है.
  • उपज: एक हेक्टेयर भूमि से 8 से 10 टन तक उपज मिल सकती है, जो बाजार में अच्छी कीमत पर बिकती है.

कहां है ज्यादा मांग?

काली गाजर की मांग निम्नलिखित क्षेत्रों में बहुत ज्यादा है:

  • फार्मा कंपनियां: इसमें मौजूद एंथोसायनिन को औषधियों में उपयोग किया जाता है.
  • हेल्थ ड्रिंक इंडस्ट्री: काली गाजर से कानजी, सिरका, जूस आदि बनाए जाते हैं.
  • खाद्य उद्योग: फूड कलर, जैम, जैली और अन्य खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग होता है.
  • कॉस्मेटिक इंडस्ट्री: एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी प्रयोग होती है.

बाजार में कीमत और मुनाफा

काली गाजर की बाजार में लाल गाजर से दोगुनी कीमत मिलती है. अगर आप 1 हेक्टेयर में इसकी खेती करते हैं और उपज 8 टन होती है, तो 20 से 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 1.6 से 2 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है. इसमें लागत भी बहुत कम होती है.

English Summary: black carrot farming in india health benefits demand profit cultivation methods and market price Published on: 16 June 2025, 11:28 AM IST

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