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Trellising Farming: मचान खेती के हैं अनेकों फ़ायदे, इस विधि से उगाएं सब्ज़ियां

भारत में कई सब्जियां मचान पर उगाई जाती हैं, इन्हें स्थानीय किसान ‘पंडाल’ कहते हैं. मचान खेती (Trellising in agriculture) कृषि पद्धति के रूप में 14वीं और 15वीं शताब्दी से चली आ रही है.

मोहम्मद समीर

भारत में कृषि पद्धतियों का कई हज़ार वर्षों का इतिहास रहा हैजिसके शुरुआती साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलोंजैसे कि हरियाणा में भिरड़ाणा और राखीगढ़ीगुजरात में धोलावीरा में पाए जाते हैं. विविधता भारतीय जीवन शैली के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध रूप से मनाई जाती है और कृषि कोई अपवाद नहीं है.

भारतीय किसानों द्वारा स्थानीय रूप से 'पंडालकहे जाने वाले इन ट्रेलीज़ या मचानों पर भारत में कई सब्ज़ियां उगाई जाती हैं. भारत में मचानों, पंडालों या ट्रेलीज़ पर उगाई जाने वाली विभिन्न फ़सलों में परवलतुरईलौकीकरेला, चौड़ी फलियांखीरा और टमाटर इत्यादि शामिल हैं. 'ट्रेलिज़के स्थानीय नाम उतने ही विविध हैं जितने कि भारत में उन पर उगाई जाने वाली सब्ज़ियों की संख्या.

मचान खेती क्यों करनी चाहिए (Why Trellising):

प्रकृति में कुछ सब्ज़ियां लताओं का उत्पादन करती हैं इसलिए उनसे अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए स्टेक की आवश्यकता होती है (स्टेकिंग में चढ़ने वाले पौधे को सहारा देने के लिए पोल जैसी सामग्री का उपयोग शामिल होता है) और ट्रेलिज़ (इसमें पौधों को सहारा देने के लिए रस्सी जैसी सामग्री का इस्तेमाल होता है ताकि वे ज़मीन को स्पर्श न करें). इस प्रथा से अधिक उपज और न्यूनतम बर्बादी के साथ का फ़सलों पर उनके प्राकृतिक रूप में फलने-फूलने और बढ़ने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है.

ट्रेलाइज़िंग/स्टेकिंग के लाभ (Benefits of Trellising/Staking):

  1. सूर्य के प्रकाश में वृद्धि - ट्रेलिंग/स्टेकिंग से पौधों और फ़सलों को सूर्य का प्रकाश अधिक और अच्छी तरह मिल पाता है.

  2. परागण – यह परागणकर्ताओं (pollinators) को क्षेत्र में आसानी से परागण करने की अनुमति देता है.

  3. रोग मुक्त पौधे - कवक रोगों के संपर्क को कम करता हैकीड़ों और  कीटों को रोकता है और वायु परिसंचरण पौधों को बढ़ाता है.

  4. छोटे स्थानों में अधिक फ़सलें – इसके द्वारा किसी छोटे स्थान में भी फ़सलों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है.

  5. फलों की गुणवत्ता में सुधार - फ़सल को ट्रेलाइज़ करने या स्टेक करने से फ़सल के फलों की गुणवत्ता में प्रभावी रूप से सुधार होता है.

  6. आसान अनुकूलनशीलता-  एक विविध विधि होने के कारण ट्रेलाइज़िंग को आसानी से अनुकूलित किया जा सकता है और प्रदान की गई जगह और विचाराधीन पौधे के अनुसार उपयोग किया जा सकता है.

ट्रेलाइज़िंग/स्टेकिंग के प्रकार (Types of trellising/staking):

सामान्य रूप से दो प्रमुख प्रकार की ट्रेलिज़ खेती संरचनाओं का उपयोग किया जाता है:

 

  • निश्चित प्रकार की संरचनाएं

 

  • पोर्टेबल और अस्थायी संरचनाएं

 निश्चित प्रकार की संरचनाएं

 जैसा कि नाम से पता चलता है कि ये संरचनाएं स्थायी प्रकृति की हैं और इन्हें गड्ढों को खोदकर और लकड़ी के खंभों को लगाकर बनाया जाता हैइसके ज़मीन में कम से कम 3-4 साल तक रहने की उम्मीद होती है. ये हैं विभिन्न टाइप की निश्चित प्रकार की संरचनाएं-

  1. वर्टिकल ग्रोथ ट्रेलिज़ - इस स्ट्रक्चर्स में लकड़ी के खंभों को उनके बीच एक पूर्व-निर्धारित समान दूरी पर लंबवत रूप से ज़मीन पर फिक्स किया जाता है. मक्खी के न्यूनतम संभव संक्रमण के साथ करेले की खेती के लिए वर्टिकल टाइप ट्रेलिज़ फ़ार्मिंग सबसे उपयुक्त है.

  2. फ़्लैट रूफ़ ट्रेलिज़ - फ्लैट रूफ-टाइप ट्रेलिज़ सिस्टम में वर्टिकल ग्रो सिस्टम के अलावा सिर्फ़ एक अतिरिक्त कदम होता है. फ्लैट रूफ-टाइप दो आसन्न पंक्तियों के शीर्ष पर क्षैतिज स्थिति में पंक्तियों पर खंभे लगाकर बनाए जाते हैं. क्षैतिज खंभे लगाने की औसत ऊंचाई 1.5-2.1 मीटर होती है. इस विधि का उपयोग प्रमुख रूप से परवल और पान के पत्ते उगाने के लिए किया जाता है.

  3. पिच्ड रूफ़ ट्रेलिज़ - इस ट्रेलीज़ की छत ओरिएंटेशन में सपाट नहीं है बल्कि इसके बजाय इसे खड़ा या तिरछा किया जाता है. पूरी संरचना एक उलटा बनाती है. ये संरचनाएं फ़सल को आसानी से फैलने के लिए एक बढ़ा हुआ क्षेत्र प्रदान करती हैं. यह विधि पशुओं को पौधों की उपज खाने से रोकने में भी प्रभावी है.

  4. आर्क रूफ़ ट्रेलिज़ - जैसा कि नाम से पता चलता है कि इस प्रकार की संरचनाओं की छत धनुषाकार होती है और एक उल्टे का निर्माण करती है. धनुषाकार संरचनाओं को बनाने के लिए आमतौर पर पतले और अधिक लचीले बांस के खंभों का उपयोग किया जाता है. इन संरचनाओं पर प्याजहरी पत्तेदार सब्ज़ियांकुंदरू और परवल उगाए जाते हैं.

ये भी पढ़ें: मचान खेती: किसान इस विधि से सब्जियां उगाकर कमाएं दोहरा लाभ, बारिश और आंधी से भी बचेगी फसल

पोर्टेबल और अस्थायी संरचनाएं

ये केवल खंभों का उपयोग करके बनाए जाते हैंलेकिन खंभों को ज़मीन में नहीं गाड़ा जाता है. ये आसानी से हटाने योग्यपोर्टेबल और कभी-कभी फिर से इस्तेमाल करने लायक भी होते हैं. पोर्टेबल और अस्थायी प्रकार की संरचनाओं की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

1) ऊर्ध्वाधर (vertical) खंभे ज़मीन में नहीं गाड़े जाते हैं

2) इस प्रकार की संरचनाओं में क्षैतिज (Horizontal) खंभे नहीं लगाए जाते हैं.

3) इन ढांचों को संतुलित करने के लिए खंभों के सभी किनारों पर जस्ती लोहे के तार का उपयोग किया जाता है. इस प्रकार की कृषि संरचनाओं को बनाने में लोहालकड़ी और स्टील प्रमुख रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्री हैं.

 

English Summary: benefits of trellising system in agriculture Published on: 24 November 2022, 05:37 PM IST

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