भारतीय घर की हर रसोई में मिलने वाली हल्दी (turmeric) के गुणों के बारे में सभी जानते हैं. इस हल्दी का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. इसमें औषधीय गुण (medicinal value) पाया जाता है. लगाने के साथ ही इसका सेवन (turmeric benefits) भी किया जाता है. भारतीय खाने में इसके बिना पारम्परिक व्यंजन पूरा नहीं होता है.
इसके साथ ही इसका सेवन शरीर के विषैले तत्वों को निकालने, शरीर का खून साफ़ करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसकी खेती आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, उड़ीसा, कर्नाटक, मेघालय, महाराष्ट्र, असम में प्रमुख रूप से की जाती है.
इसकी खेती में अक्सर कई तरह के रोगों और कीटों का प्रकोप देखने को मिलता है. इन्हीं रोगों और कीटों के प्रकोप से किसानों को उत्पादन भी कम मिलता है और साथ ही हल्दी की गुणवत्ता में भी कमी आती है. इससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे में फसल सुरक्षा पहुत (crop protection) जरूरी है. आज बम आपको हल्दी में लगने वाले कुछ खास रोगों और कीटों (turmeric diseases) के बारे में बताने जा रहे हैं. साथ ही रोग प्रबंधन की भी जानकारी हम देने वाले हैं.
पत्तियों का धब्बा: आपको बता दें कि इस रोग में पत्तियों के दोनों ओर छोटे, अंडाकार और अनियमित भूरे धब्बे हो जाते हैं. कुछ समय बाद ये गहरे पीले और भूरे रंग के हो जाते हैं. ऐसे में पौधे भी झुलस जाते हैं. प्रकंद उपज में कमी आ जाती है.
रोग प्रबंधन- इसके लिए किसान मैन्कोजेब 0.2% का छिड़काव करके इस रोग को नियंत्रित कर सकते हैं.
नेमाटोड कीट: रूट नॉट नेमाटोड और बुर्जिंग नेमाटोड हल्दी की खेती के लिए नुकसानदायक हैं. सूत्रकृमि मृदा से पौधों की जड़ों में जाकर ये जड़, तने, पत्ती, फूल के साथ बीज को भी संक्रमित करते हैं.
रोग प्रबंधन- पोमोनिया क्लैमाइडोस्पोरिया को निमेटोड समस्याओं के प्रबंधन के लिए बुवाई के समय 20 ग्राम प्रति बेड (106 cfu/g) की मात्रा से छिड़कें.
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प्रकंद की सड़न: पाइथियम ग्रैमिनीकोलम की वजह से यह रोग हल्दी की खेती में होता है. इसमें हल्दी के पौधे गिरने लगते हैं और साथ ही प्रकंद में सड़न शुरू हो जाती है.
रोग प्रबंधन- इस रोग की रोकथाम के लिए किसान भंडारण से पहले लगभग आधे घंटे के लिए मैन्कोजेब 0.3% के साथ बीज प्रकंद का उपचार करें. साथ ही अगर किसान रोग की पुष्टि कर लेते हैं तो खेत में तुरंत मैन्कोज़ेब 0.3% का छिड़काव करें.
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