आज हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले कि जहां की अस्सी फ़ीसद आबादी के जीविका का साधन कृषि है. इस जिले के ज्यादातर किसान रबी, खरीफ़ और जायद की फसलों की बुआई परंपरागत तरिके से करके अपना जीवन यापन करते हैं. भारतीय कृषि की बदलती तकनिकी और आधुनिक पद्धति से आखिर यहां के किसान क्यों अछूते हैं. वर्तमान समय में किसानों को परंपरागत खेती से मुक्ति नहीं होने के चलते बढ़ती लागत व घटता मुनाफा से किसानी घाटे का सौदा बन चली है. इसके दुसरे तरफ विभागीय असहयोग के कारण किसानो को आधुनिकरण का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
आपको बता दें की सुल्तानपुर के किसान लगभग 1 लाख 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की खेती करते हैं. पूरे जिला नहरों के जाल से युक्त है. 1 हजार 60 कि.मी. नहरों के साथ इस जिले की 48 फीसदी खेती पर सिंचाई की सुबिधा उपलब्ध है. 196 नहरें और 226 ड्रेनों तथा राजकीय व निजी नलकूपों के होने के बावजूद भी यहां के किसान परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक खेती नहीं कर रहे हैं. इस तरह लघु और सीमांत किसानों के लिए खेती तो केवल उनके परिवार के भरण और पोषण तक ही ऱह जाती है. अगर हम नगदी फसलों की बात करें तो उसकी स्थित और बेकार है. फसल चक्र का उपयोग कृषि अनुसंधान से मिली जानकारियां कृषि विभाग के आपसी मदभेद के कारण किसानों तक नहीं पहुंच पा रही है. हालात तो ऐसे बन चुके है की किसान रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग कर तात्कालिक रूप से अपने उत्पादन में बृद्धि कर रहा है. रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग के दूरगामी परिणाम तो नुकसानदायक ही होने वाले है.
खेती करने के नए प्रयोगो की जानकारी किसानो को नही मिल पाती है.एसडब्लूआई (सिस्टम ऑफ वीट इंटेंसीफिकेशन) के माधयम से गेहूं के उत्पादन में थोड़ा बहुत बदलाव तो जरूर हुआ है. लेकिन सबसे बड़ी हैरत की बात तो ये है की इस तकनिकी का प्रयोग जिले की एक या दो किसान ही बता दें की उप निदेशक कृषि कार्यालय में सिर्फ एक ही किसान का लेखा जोखा है जो इस पद्धति का उपयोग कर रहा है. वहीं हम धान की फसल की भारत करे तो एसआरआई सिस्टम का लाभ केवल 2 दर्जन ही किसान ले पाते है.सीडड्रिल, मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का उपयोग आदि यहां नहीं हो रहा है.
अपनी मिट्टी पहचानों और मृदा परीक्षण के अन्य अभियानों के तहत 49 हजार किसानों के खेतों के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए गए हैं. अधिकतर किसान परपंरागत खेती ही करते हैं. प्रयास किया जा रहा है कि आधुनिक तौर तरीकों से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए.
प्रभाकर मिश्रा, कृषि जागरण
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