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क्यों बढ़ रही है देश में आवारा मवेशियों की संख्या

देश में गौरक्षा हमेशा से धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा बना रहा है. मगर गायों की बदहाली की हालत किसी से छुपी नहीं है. वर्तमान समय में हजारों संस्थाए गौरक्षा के नाम पर चल रही है. हर राज्य के लगभग सभी जिले में 2 दर्जन से अधिक गौशाला है

प्रभाकर मिश्र
प्रभाकर मिश्र

देश में गौरक्षा हमेशा से धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा बना रहा है. मगर गायों की बदहाली की हालत किसी से छुपी नहीं है. वर्तमान समय में हजारों संस्थाए गौरक्षा के नाम पर चल रही है. हर राज्य के लगभग सभी जिले में 2 दर्जन से अधिक गौशाला  है. लेकिन इतना सब होने के बावजूद आज आवारा गायों का झुंड कूड़े के ढेरों या सड़को पर देखने को मिल जाते है. बहुधा देखा जाता है की ये मवेशी जानवर सड़क हादसे का शिकार हो जाते है. हादसे में न केवल मवेशियों को नुकशान होता है बल्कि जान माल दोनों की ही क्षति होती है. अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में गायों का एक समूह 'भारत एक्सप्रेस' ट्रेन से टकरा गया था जिसमे दर्जनों गायों की मौत हो गई थी.

इस हादसे के चलते 'भारत एक्सप्रेस' को तक़रीबन आधे घंटे  तक रोकाना पड़ा और इस रुट पर चलने वाली कई गाड़ियों को इसके वजह सें लेट होना पड़ा. आज के समय में गायों की स्थित देश में इस कदर हो चुकी है कि जब तक गाये दूध देती है तब तक गौपालक उसे पालते है, नहीं तो उसे आवारा पशुओं के झुंड में छोड़ देता है. ऐसे में सरकार इन मवेशियों पर करोड़ो रूपये खर्च करती है. लेकिन इस करोड़ो के फंड को यदि सरकार इनके रिसर्च पर खर्च किया करे तो फिर से ये जानवर एक बार फिर किसानों के कमाई का जरिया बन सकते है. सड़कों पर घूमने वाले मवशियो के जनसंख्या में कमी भी आ सकती है. देश में मवेशी जानवर बढ़ने का एक और बड़ा कारण डेयरी उद्योग भी है.

पशु अधिकार विशेषज्ञों का मानना है की डेरियों में गायों के प्रजनन पर रोक लगाने के लिए मजबूत नियम बनाने की जरूरत है. यह डेयरी उद्योग की ही देंन है जो किसान सड़को पर बछड़े और सांडो को छोड़ रहे है. डेयरी प्रजजन पर रोक लगाकर इस तरह की हरकत पर रोक लगाई जा सकती है. लेकिन अब यह करना न के बराबर हो गया है. क्योंकि,  डेयरी उद्द्योग अब अनियंत्रित मात्रा में बढ़ चुका है. हालांकि इसके रोकथाम के लिए एक और प्रक्रिया अपनाई जा सकती है जो कि उत्तर प्रदेश सरकार ने गौचर भूमि और आम चारागाह भूमि पर अस्थाई का शैलटर बनाने की बनाने की घोषणा की है. लेकिन अभी ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये चरागाह कहां बनाई जाएंगी। गौरतलब है कि जो गाय दूध नहीं दे रही है उनसे वर्मी कम्पोस्ट बनाकर 20 हजार रूपये सालाना कमाएं जा सकते है.

डी.ए.पी, यूरिया, पोट ाश आदि रासायनिक कीटनाशकों के  हमारीजह से  जमीन अपनी उर्वरता खोती जा रही है ऐसे में इसे ठीक करने के लिए गोबर की खाद,केचुए और सूक्ष्मजीवी से अच्छा कुछ नहीं हो सकता है. अगर सरकार डी.ए.पी-यूरिया के तरह  ही वर्मी कम्पोस्ट पर भी सब्सिडी देना शुरू कर दे तो किसान जानवरों को छोड़ना बंद कर सकते है और इन्हे भी अपने कमाई का एक जरिया बना सकते है.

English Summary: Without milk the cow is also earning big Published on: 05 March 2019, 03:47 IST

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