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क्यों पड़ती है किसानों को बार-बार कर्ज़माफी की ज़रूरत ?

हर बार जब चुनाव आता है तभी राजनैतिक पार्टियां अपने घोषणा पत्र में किसानों के कर्ज माफ़ी का जिक्र कर देती है. हर बार के चुनाव में प्रायः यह देखा गया है की कर्ज माफी के मुद्दे के सहारे राजनैतिक पार्टियां सत्ता हथियाने में सफल भी हो जाती है. इसका एक उदाहरण तो अभी हाल में हुए पांच राज्यों के चुनाव में देखने को मिल गया है.

हर बार जब चुनाव आता है तभी राजनैतिक पार्टियां अपने घोषणा पत्र में किसानों के कर्ज माफ़ी का जिक्र कर देती है. हर बार के चुनाव में प्रायः यह देखा गया है की कर्ज माफी के मुद्दे के सहारे राजनैतिक पार्टियां सत्ता हथियाने में सफल भी हो जाती है. इसका एक उदाहरण तो अभी हाल में हुए पांच राज्यों के चुनाव में देखने को मिल गया है. क्योंकी इन राज्यों में बीजेपी ने किसानों को महत्व नहीं दिया जबकि कांग्रेस ने किसानों की मांगो को स्वीकार करने की बार-बार घोषणा की है.

अगर हम यू.पी के किसानों के 36 हजार करोड़ कर्ज माफी को जोड़ लें तो पिछले 27 साल के इतिहास मे  कर्ज़ माफी का 7वां मौका था, यूपी के किसानों के कर्ज माफ करने के बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और गुजरात के किसान भी कर्ज माफी की मांग करने लगे थे. इसके बाद हाल में हुये पाँच राज्यो के चुनाव में कांग्रेस ने भी वही चाल चली और सफल भी रही. इस जीत के बाद यदि एक बार फिर से किसानों का कर्ज माफ़ किया जाता है तो 28 साल के इतिहास में ये 9वां मौका होगा. सरकारों ने चुनाव जितने के लिए समय-समय पर कर्ज माफी तो कर दी लेकिन किसानों को इस गंभीर मुश्किल से निकालने की कोशिश नहीं की तो आखिर किसानो को बार-बार कर्ज लेने की जरूरत क्यों पड़ती है........?

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017  में कहा था की किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए सरकारों को मुआवज़ा नीति अपनाने की जरूरत नहीं है इसके लिए किसानों की आय बढ़ाने हेतु नई तकनीक और नीतियां बनाने की जरूरत है.

अपने देश में दूसरे देशों के मुकाबले प्रति एकड़ औसतन पैदावार 15  से 20 क्विंटल है इसके आलावा कनाडा जैसे देशो में प्रति एकड़ पैदवार औसतन 35  क्विंटल तक है. अगर उपज बढ़ाने के लिए सरकार कुछ नई नीतियों पर काम करे तो किसानो की आय अपने आप ही बढ़ जाएगी. देश के छोटे और सीमान्त किसानों के पास इतनी जमीन नहीं है जिससे वे पर्याप्त फसल का उत्पादन कर सके. इसके लिए कॉन्ट्रेक्ट फ़ार्मिंग इसका अच्छा विकल्प हो सकता है. एमएसपी व्यावहारिक हो क्योंकी कृषि लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य उसके हिसाब से नहीं बढ़ा रही है. खेती में मौसम से जुड़े जोखिम भी बहुत होते हैं इसलिए सरकार को एमएसपी तय करते वक्त इनका भी ध्यान रखना चाहिए.

एक बार फिर से कर्जमाफी का नाम सुनकर बैंको की चिंता बढ़ने लगी है अगर बैंक कर्ज माफी के लिए सरकार को कर्ज देती है तो बैकों की दिक्क़ते बढ़ेगी और किसानो में कर्ज लेकर कर्ज को न चुकाने की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी, इतना ही नहीं इससे बैंकों और  माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की चिंता बढ़ रही है क्योंकि उनके बिजनेस में बहुत बुरा असर होगा, उनके दिए गए कर्ज के डूबने का खतरा हो जाएगा. अगर हम पिछली माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की बात करें तो इन कंपनियों ने 60  हजार करोड़ का कर्ज छोटे और सीमांत किसानों को दे रखा है. उत्तर प्रदेश को अकेले ही लगभग 3500 करोड़ का कर्ज दे रखा है. पशुपालन को बढ़ावा देने में पशुपालकों की मदद की जानी चाहिए. जैसे  डेयरी उत्पादों की वजह से किसानों की अतिरिक्त आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, पर सिर्फ 50 फीसदी दूध ही प्रोसेसिंग प्लांट तक पहुंच पाता है.

अभी भले ही सरकार बैंकों को कर्ज चुका दे, लेकिन बैंक जब एक बार फिर से कर्ज देंगे तो अगले चुनाव में कर्ज माफी की उम्मीद में किसानों को कर्ज़ न चुकाने की आदत पड़ जाएगी।

लेकिन यह भी सच है कि किसानों की आत्महत्या की वजह कर्ज का बोझ ही है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो और राज्यों के आंकड़ों के मुताबिक 10  साल में देश में करीब 1 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की हैं. ज्यादातर आत्महत्याएं कर्ज के बोझ की वजह से हुई हैं.

प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण

English Summary: Why do farmers need repeated loan waiver? Published on: 14 December 2018, 11:43 IST

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