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खेती एवं पशुपालन कार्य कड़ी मेहनत एवं श्रम युक्त होते हैं. दोनों ही कार्य एक दुसरे के पूरक एवं अभिन्न अंग हैं. कृषक खेती के कार्यो में जितनी कड़ी मेहनत करता है , उतना ही पशुपालन कार्यो पर भी उसका ध्यान एवं मेहनत पूरी रहती है. खेती के विभिन्न कार्यो को सरल बनाने, श्रम को कम करने एवं समय को बचने हेतु अनेक उन्नत तकनीकियां और यंत्र उपलब्ध हैं. परन्तु पशुपालन कार्यों एवं रखरखाव के दौरान कृषक आज भी वही पारंपरिक तरीकों और तकनीकों का इस्तेमाल करते है. पशुपालन कार्यों एवं पशुओं के रख रखाव इत्यादि कार्यों में लगने वाली अत्यधिक मेहनत , श्रम एवं थकान को दूर करने के लिए विभिन्न उन्नत सरल एवं उन्नत तकनीकियां एवं यंत्र न केवल थकान को दूर करते हैं बल्की श्रम को भी कम करते हैं. इन उन्नत तकनीकियों का प्रयोग कर कृषक अपने समय की भी बचत कर सकता है. पशुपालन कार्यों हेतु विभिन्न तकनीकियां इस प्रकार है-
# चारा कुट्टी मशीन : प्राय: यह पाया जाता है कि पशुओं को दिया जाने वाला चारा बिना कुट्टी किए खिलाया जाता है. पशु चारे को पूरा नहीं खा पाते, डंठल इत्यादि छोड़ देते हैं ,जो न केवल चारे को व्यर्थ करता है साथ ही पशु को इसे पचाने में भी दिक्कत होती है. चारे को छोटे-छोटे टुकड़े कुट्टी करके देने से पशु उसे सुगमता से खा सकते हैं, जिससे पाचन क्रिया भी अच्छी रहती है. चारे को कुट्टी के रूप में तैयार करने के लिये कुट्टी मशीन अत्यंत उपयोगी है. कुट्टी काटने के लिये हाथ से चलने वाली व बिजली चालित मशीन बाजार में उपलब्ध है. कुट्टी मशीन में एक गोल चकरी लगी होती है जिसके मध्य में दो धारदार पत्तियां चारा काटने हेतु लगी होती है. इसी चकरी में एक हत्था लगा होता है तथा एक ओर चारा रखने के लिय ट्रे लगी होती है. इस ट्रे से चारा आगे बढ़ाते हुए कुट्टी मशीन में लगे हत्थे को घुमाने पर चकरी के बीच लगी धारदार पत्तियों से समानरूप से कुट्टी रूप में काटा जाता है. कुट्टी मशीन एक लम्बी पट्टी नुमा धार वाली पत्ती के प्रकार में भी उपलब्ध होती है. जिसका मूल्य लगभग 1200 रु होता है. चकरी नुमा बड़ी हस्त चालित कुट्टी मशीन 9000 रु से शुरू होकर विभिन्न कंपनियों के मॉडल में उपलब्ध है. यही कुट्टी मशीन मोटर पर पम्प कि मदद से बिजली द्वारा भी चलाया जा सकता है. इसका मूल्य लगभग 20000 से शुरू होता है.
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चारे की कुट्टी करने से चारे की बचत होती है. कम जगह में चारे को संगृहीत किया जा सकता है. कुट्टी करके चारा देने से पशुओं को चारे से पोषण भी मिलता है. परम्परागत रूप से हाथ से काट कर दिए जाने वाले चारे में व्यक्ति 3-4 गुना अधिक श्रम लगता है जो कि कुट्टी मशीन का प्रयोग कर 280 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है और 80 प्रतिशत तक समय की बचत की जा सकती है.
# मेंजर / पशु नांद / ठाण :गांवो में पशुओ को बिना कटा चारा जमीन पर ही डाल कर देने का प्रचलन है. इस प्रकार से सूखे एवं हरे चारे की बर्बादी होती है. साथ ही बाड़े में गंदगी भी रहती है. मेंजर या पशुओं के लिए नांद बनाने से बहुत सुविधा हो जाती है. 2”7”2” नाप का मेंजर दो पशुओं के लिए पर्याप्त होता है. ईट एवं सीमेंट से मेंजर बनाया जाता है जिसमे लगभग 3000 से 3500 तक की लागत आती है. मेंजर में आगे की तरफ गोलाई पशुओं को चारा खाने में पर्याप्त पहुंच देता है. पारंपरिक रूप से पशुओं को जमीन पर चारा दिए जाने से बाड़े में पशुओ द्वारा की गई मलमूत्र की गंदगी,जमीन पर फैले कचरे, कीड़े-मकोड़ो , मक्खी- मच्छर के संक्रमण पशुओं में बीमारियों का खतरा पैदा करते है मेंजर का निर्माण करके इस प्रकार के खतरों से पशुओ को बचाया जा सकता है. मेंजर का प्रयोग करके 3 से 4 किलो तक चारे की बचत की जा सकती है. पशुओ को कुट्टी करके चारा खिलने भी काफी आसानी रहती है. पशुओं को पानी पिलाने में भी मेंजर काफी उपयुक्त तकनीक है. बाड़े की सफाई में लगने वाले श्रम व थकान को दूर किया जा सकता है. बाड़े में साफ़ - सफाई बनाये रखने में काफी सुगमता रहती है.
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# दूध दोहन हेतु ट्रोली एवं चोकी : पशुपालन के प्रमुख कार्य में पशुओ का दूध दोहन का कार्य महिलाएं व् पुरुष बड़ी ही कुशलता से पशु के साथ सामंजस्य बिठा कर करते है. महिलाएं अपने पैरो पर बैठ कर बाल्टी को अपने दोनों पैरो के बीच फंसा कर पैरो के बल उकडू मुद्रा मे बैठ कर दूध निकलती है. ऐसे में गाय/ भैस लात मारकर बाल्टी गिरा देने की आशंका बनी रहती है. पैरो के बल , तलवो पर जोर देकर बैठने से पैरो एवं कमर की मांसपेशियों में खिंचाव, कमर दर्द , पैरो में दर्द की समस्या को जन्म देता है. दूध दोहने हेतु ट्रोली एवं चोकी इस कार्य को काफी सरल व आरामदायक बना देता है. दूध निकालने के लिये पैरो पर न बैठ कर चौकी पर आराम से बैठ कर बाल्टी को ट्रोली में रख देते हैं. ट्रोली एवं चोकी में नीचे की ओर पहिये लगे होते हैं. जो कि आगे पीछे होने में सहायता करते हैं. दूध दोहन के समय यदि पशु लात मार भी दे तो पहिये लगे होने से ट्राली में रखी बाल्टी के उलटने की संभावना न के बराबर होती है साथ ही पहिये वाली चोकी दूध दोहने वाले व्यक्ति को भी आगे पीछे होने में सुविधा रहती है. पैरों पर किसी प्रकार का बल नही पड़ता अतः मांसपेशियों में होने वाले खिंचाव से राहत मिलती है. दूध दोहने में आराम व कार्य करने में आसानी हो जाती है. चोकी पर बैठ कर ज्यादा देर तक बैठ कर कार्य कर सकते है तथा बाल्टी को बार बार पकड़ना नहीं पड़ता. इसकी लागत लगभग 1000 रु होती है. इसे गृह विज्ञान महाविद्यालय उदयपुर की पारिवारिक संसाधन प्रबंधन शोध इकाई से प्राप्त किया जा सकता है.
# रेक (खोड़ी) एवं शोवेल (फावड़ा) : बाड़े की नियमित साफ सफाई बनाये रखना काफी श्रम एवं समय लेने वाला कार्य होता है. महिलाए बाड़े की साफ़ सफाई, गोबर उठाना, चारा / कचरा इत्यादि उठाने का कार्य हाथों से करती है. रेक (खोड़ी) व शोवल की सहायता से इन कार्यो में अनावश्यक कमर तोड़ श्रम को कम किया जा सकता है. खोड़ी की सहायता से सुखा चारा /कचरा इक्कठा करने में बहुत आसानी रहती है. फावड़े की सहायता से गोबर / मिट्टी आदि को उठाने में कम मेंहनत लगती है. हाथों को लगने वाली चोट एवं त्वचा संबंधी संक्रमण से बचाया जा सकता है. इन यंत्रो का वजन हल्का होने से कार्य भार भी नही लगता. ये यंत्र 250-350 रु तक के मूल्य में उपलब्ध है.
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#ट्राली : पशुओ को चारा डालने , गोबर उठा कर डालने , बाड़े की सफाई कर कचरा ले जाने तथा पशुओ को पानी पिलाने बाड़े में मिट्टी इत्यादि लेपण हेतु डालने जैसे कार्य कमर तोड़ मेंहनत वाले होते हैं बार –बार इधर उधर चलने , झुकने , सामान उठाने का कार्य में लगने वाले श्रम को ट्राली का उपयोग कर कम किया जा सकता है. ट्राली से यह सारे कार्य आसान हो जाते है. कार्य का भार नही लगता है. सबसे महत्वपूर्ण लाभ सुविधा एवं शरीर के लिये आराम पहुंचाने वाला होता है.
इस प्रकार इन पशुपालन तकनीको एवं यंत्रो का उपयोग करके किसान अपने श्रम एवं समय का प्रबंधन कर सकते हैं. इन तकनीको का प्रयोग कर थकान को काफी हद तक दूर कर सकते हैं.
लेखक:
चारू शर्मा , विषय विशेषज्ञ (गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा)
डॉ राम निवास, विषय विशेषज्ञ (पशुपालन विज्ञान)
कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण , जैसलमेर
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