दलहनी फसलों को फलियों की फसल के रूप में भी जाना जाता है- जैसे कि मलका, मसूर, लोबिया, अरहर, राजमा, मटर, बीन्स, और चना. दलहनी फसलें विभिन्न आकारों, आकृतियों, किस्मों, और रंगों में पाई जाती हैं और दुनिया भर के व्यंजनों का एक बड़ा हिस्सा यही हैं, इनमें सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से खपत की जाने वाली दालें अरहर, राजमा, चना, मटर, सेम, मोठ, मूंग और मसूर हैं. इनमें फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिज जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो इन्हें महत्वपूर्ण और स्वास्थ्यवर्धक सुपरफूड बनाते हैं.
इन पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य फसलों के महत्व का सम्मान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 20 दिसंबर, 2013 को एक विशेष संकल्प (A/RES/68/231) को अपनाया और 2016 को दलहन के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (I.Y.P.) के रूप में घोषित किया. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (F.A.O.) ने 2016 में इसका नेतृत्व किया और इस आयोजन से दालों के पोषण और पर्यावरणीय लाभों के बारे में सार्वजनिक रूप से जागरूकता को सफलतापूर्वक फैलाने का काम किया तथा इस सिलसिले को कायम रखने के लिए दिसंबर 2018 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में नामित किया.
पहली बार विश्व दलहन (I.Y.P.) दिवस 10 फरवरी, 2019 को आयोजित किया गया था. यह उत्सव दालों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और बेहतर उत्पादन, पोषण, पर्यावरण और जीवन के लिए अधिक उपयोगी, समावेशी, लचीला और टिकाऊ कृषि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन करने में मौलिक भूमिका को निभाने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है. इन आयोजनों के माध्यम से दालों के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिए सरकारें, निजी क्षेत्र, सहयोगी संगठन, जनता और युवा प्रेरित हो कर खाद्य प्रणालियों को टिकाऊ और स्वस्थ आहार के हिस्से के रूप में अपनाने का काम भी करते हैं.
दालें किसानों के कृषि प्रणालियों को अधिक सुगम और आसान बनाने के साथ पानी की कमी वाले क्षेत्रों में लिए भी बेहतर जीवन प्रदान करने में योगदान करती हैं, क्योंकि कम पानी में भी इनका उत्पादन हो सकता है और यहाँ तक कि दलहनी फसलें अन्य फसलों की तुलना में सूखे और जलवायु से संबंधित आपदाओं, विपरीत परिस्थितियों और जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से सहन कर सकती हैं, जिसने इन्हें कृषि प्रणाली में एक आवश्यक अंग बना दिया है.
विभिन्न कृषि प्रणालियों (जैसे कृषि वानिकी, अंतर-फसल और एकीकृत कृषि प्रणाली) में दालों को शामिल करने से कृषि आजीविका के आसान और उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा, आर्थिक दृष्टि से, दालों के उत्पादन और व्यापार पर आधारित उद्योग, क्षेत्रीय और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुगम्यता सुनिश्चित करने में एक सकारात्मक अंग साबित हो सकते हैं, जिससे उपभोक्ताओं तक पौष्टिक खाद्य पदार्थों को उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी.
ये भी पढ़ेंः विश्व दलहन दिवस पर युवाओं को इस ओर जागरूक करने के लिए कृषि जागरण ने आयोजित किया लाइव सेशन
यह प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग में योगदान करते हैं. यह न केवल पेट भरने के वैकल्पिक आधार हैं बल्कि इनसे उपयुक्त पौष्टिक तत्वों को उपलब्ध कराने में बहुत बड़ा सुधार आएगा.
Share your comments