खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमे प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहिड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूँद होती है। इसमे क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमे हवा का उचित आगमन हो।
ढींगरी एक सीप के आकार की खुम्बी होती है जो की साधारणतया बड़ी ही आसानी से उगाई जा सकती है। स्वाद व पौष्टिकता में यह किसी भी खुम्बी से कम नहीं है और इसकी खेती भी साल में केवल कुछ महीनों को छोडकर लगभग सारे साल की जा सकती है। सफ़ेद बटन खुम्बी की तुलना में न केवल इसकी खेती सरल है बल्कि इसकी पैदावार भी ज्यादा होती है। अधिक उत्पादन होने पर इसको धूप में सुखाकर इसका भंडारण भी किया जा सकता है और इससे अनेक मूल्य-संवर्धित खाद्य पदार्थ भी बनाए जा सकते हैं। इसको किसी भी कमरे या कम लागत की बांस व सरकंडे से बने हुये छ्प्पर में उगाया जा सकता है। गेहूँ या सरसों का भूसा, धान की पुआल, केले का तना आदि को ढींगरी उगाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।
गेहूँ, सरसों या धान के भूसे को लगभग 10-12 घंटे पानी में भिगो लिया जाता है और दूसरे दिन भूसे या तूड़े को जाली पर रख दिया जाता है जिससे अतिरिक्त पानी निकाल जाए। इसके बाद भीगी पुआल या भूसे में दो प्रतिशत स्पान (खुम्बी का बीज) मिलाकर उसको पोलिथीन के लिफाफों में भर कर कमरे के अंदर किसी आधार पर एक-एक फुट की दूरी पर रखें। लिफाफे 30×45 सें.मी या 45×60 सें.मी आकार के हों तथा उनमे 5 से 10 सें.मी की दूरी पर ½ ×1 सें.मी व्यास के छेद हों। पोलिथीन के थैलों के स्थान पर लकड़ी की पेटी या टोकरी भी ले सकते हैं। कमरे में नमी बनाए रखने के लिए दिन में 2-3 बार साफ पानी का छिड़काव करें। व्यापारिक स्तर पर ढींगरी उत्पादन के लिए भूसे का गरम पानी से उपचार जरूर करें। गेहूँ के भूसे या धान की पुआल या अन्य किसी तरह के अवशेष को छिद्रित जूट के थैले या बोरे में भरकर रातभर ठंडे पानी में गीला कर लिया जाता है। दूसरे दिन इस गीले भूसे का थैले सहित गरम पानी में (60-650सेल्सियस) 20-30 मिनट डालकार निकाल लेते हैं। ठंडा होने पर इस भूसे को तारपोलीन या प्लास्टिक शीट पर फैला देते हैं ताकि इससे पानी निचुड़ जाए। यह उपचरित भूसा बीजाई के लिए तैयार है। स्पान डालने के 2-3 दिन बाद तूड़ी या पुआल मे सफ़ेद-सफ़ेद धागे से दिखाई देने लग जाते हैं जो लगभग 12-13 दिन में पूरी तरह से फैलकर तूड़ी या पुआल को सफ़ेद व कड़ा बना देते हैं। पोलिथीन हटाने के बाद जो भूसे के खंड बाहर निकलते हैं उन्हे दोबारा एक-एक फुट की दूरी पर रख दिया जाता है। पहले की तरह कमरे के अंदर नमी रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। स्पान मिलने के 21-25 दिन बाद खुम्बी दिखने लगती है तथा 3-4 दिन में ये तोड़ने लायक हो जाती है। खुम्बी को मुड़ने से पहले तोड़ लेना चाहिए। ढींगरी के उत्पादन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. भूसा या पुआल बारिश में भीगी न हो।
2. पोलिथीन के लिफाफे को ¾ से ज्यादा न भरें।
3. कमरे का तापमान 20-280सेल्सियस रहना चाहिए। कम तापमान ज्यादा नुकसान नहीं करता।
4. कमरे में आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।
5. भूसा खंडो पर जब भी पानी डालें छिड़काव के रूप में डालें।
6. कमरे में ताजी हवा के आने-जाने का प्रबंध होना चाहिए।नमी बनाए रखने के लिए खिड़की या रोशनदान पर गीली बोरी टांग कर रखें।
7. कमरे में हर रोज 3-4 घंटे के लिए रोशनी दें।
ढिंगरी खुम्ब उगाने का सही समय :
दक्षिण भारत तथा तटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी का मौसम उपयुक्त है. उत्तर भारत में ढिंगरी खुम्ब उगाने का सही समय अक्टूबर से मध्य अप्रैल के महीने में है. धिन्ग्री खुम्ब के उत्पादन के लिए 20 से 28 डिग्री सेंग्रे. तापमान तथा 80 से 85% आद्रर्ता बहुत उपयुक्त होती है.
डॉ मीनू, रूमी रावल,स्वाति मेहरा
कृषि विज्ञान केंद्र
भिवानी (हरियाणा)-127021
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