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Gandhi Jayanti 2020: किसान होना चाहिए भारत का प्रधानमंत्री- महात्मा गांधी

आजादी के 73 साल बाद भी किसानों की आर्थिक दशा वैसी की वैसी बनी हुई है. फसलों के उचित दाम न मिलने और साहूकारों के कर्ज़ के कारण किसान लगातार नीचे की तरफ जाता जा रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी किसानों के हक की आवाज उठाने में अग्रिम पंक्ति के नेता माने जाते हैं. किसानों की दुर्दशा देखकर ही उन्होंने शूटबूट पहनना बंद करके धोती और शाल पहनना शुरू कर दिया था. आखिर गांधी किसानों के हालातों के बारे में क्या सोचते थे, आइये जानते हैं -

श्याम दांगी
श्याम दांगी
Gandhi Ji
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आजादी के 73 साल बाद भी किसानों की आर्थिक दशा वैसी की वैसी बनी हुई है. फसलों के उचित दाम न मिलने और साहूकारों के कर्ज़ के कारण किसान लगातार नीचे की तरफ जाता जा रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी किसानों के हक की आवाज उठाने में अग्रिम पंक्ति के नेता माने जाते हैं. किसानों की दुर्दशा देखकर ही उन्होंने शूटबूट पहनना बंद करके धोती और शाल पहनना शुरू कर दिया था. आखिर गांधी किसानों के हालातों के बारे में क्या सोचते थे, आइये जानते हैं -

पहला किस्सा 1944 का

यह किस्सा 29 अक्टूबर, 1944 का है. उस समय के संगठित किसान आंदोलन के जनकों में से एक प्रोफेसर रंगा स्वयं किसानों की दशा पर बात करने के लिए उनसे मिलने पहुंचे थे. दरअसल, रंगा एक किसान के बेटे थे और उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के प्राथमिक स्कूल में ली थी लेकिन अर्थशास्त्र की पढ़ाई ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से की थी. वे महात्मा गांधी से जब भी मिलते थे तो सवालों की झड़ी लगा देते थे. रंगा जब किसानों के सवालों पर बात करने पहुंचे तो कई सवालों की लंबी फेहरिस्त ले गए थे. उन्होंने किसानों की समस्याओं पर बात करते हुए गांधी से पूछा कि न्याय की बात करते हुए आप कहते हैं कि यह धरती अन्नदाताओं यानि किसानों की है या होना चाहिए. इसका मतलब मात्र उसकी जोत की जम़ीन से है या वह जिस राज्य में रहता है उसकी राजनीतिक सत्ता अर्जित करना भी है? सोवियत रूस में किसानों के पास जम़ीन तो है लेकिन सत्ता नहीं है. इसलिए उनकी स्थिति खराब है. वहां सत्ता पर सर्वहारा की तानाशाही ने एकाधिकार कर लिया है और किसान अपनी ज़मीन से अपना अधिकार खो बैठे हैं. तब गांधी ने जवाब दिया- ''सोवियत रूस में क्या हुआ मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे इसमें बिल्कुल भी संदेह नहीं है कि यदि भारत में लोकतांत्रिक स्वराज हुआ जो कि अहिंसा से आज़ादी हासिल करने पर होगा तो किसानों के पास भी राजनीतिक समेत हर तरह की सत्ता होनी ही चाहिए.''

दूसरा किस्सा 1947 का

गांधी जी को नवंबर 1947 में किसी ने एक पत्र लिखा, जिसमें कहा कि भारत के तत्कालीन मंत्रिमंडल में कम से कम एक किसान होना चाहिए. जिसके जवाब में गांधीजी ने अपनी प्रार्थना सभा में कहा था कि यह दुर्भाग्य की बात है कि एक भी किसान मंत्री नहीं है. उन्होंने सरदार पटेल के बारे में कहा कि वे जन्म से किसान हैं, खेतीबाड़ी के बारे में अच्छी समझ रखते हैं लेकिन उनका पेशा वकालत का है. इसी तरह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वे विद्वान हैं और बड़े लेखक है लेकिन खेती के बारे में क्या जानें. उन्होंने कहा कि हमारे देश में 80% जनता किसान है. ऐसे में देश में किसानों का राज होना चाहिए. उन्हें बैरिस्टर बनने की आवश्यकता नहीं. बल्कि उन्हें एक अच्छे किसान बनना है जो अपनी उपज बढ़ा सकें, अपनी जम़ीन को स्वच्छ रख सकें. यह सब जानना उनका काम है. यदि ऐसे काबिल किसान होंगे तो मैं नेहरू को कहूंगा कि आप उनके सेक्रेटरी बन जाइए. हमारा मंत्री बड़े महलों में नहीं रहेगा बल्कि खेती किसानी करेगा तभी किसानों का राज हो सकता है. 

तीसरा किस्सा 1948 का

इसी तरह अपनी गांधी जी ने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले यानि 29 जनवरी, 1948 को अपनी प्रार्थना सभा में कहा था कि यदि मेरी चले तो हमारा गर्वनर जनरल भी किसान हो, हमारा वज़ीर किसान हो, सबकुछ किसान ही होगा तो किसानों का ही देश में राज होगा. उन्होंने आगे कहा कि मुझे बचपन से एक कविता सिखाई गई है कि ''हे किसान तू बादशाह है, यदि किसान जमीन से अन्न न उगाए तो हम क्या खाएंगे? सचमुच में देश का राजा तो किसान ही लेकिन हम उसे गुलाम बनाकर बैठे हैं. किसान क्या करें? एमए बने? या बीए बने? ऐसे तो किसान ख़त्म हो जाएगा. किसान यदि प्रधान यानि प्रधानमंत्री बने तो उसकी सूरत बदल जाएगा. वह जिन जिल्लतों से गुजर रहा है सब ख़त्म हो जाएगी. 

पांचवा किस्सा 1929 

गांधी जी किसानों की मुखर आवाज़ थे. वे 5 दिसंबर, 1929 के यंग इंडिया में लिखते हैं कि- ''किसानों के लिए कितना ही कुछ जाए वह उनके असली हक़ देने में एक तरह से देरी है. इसकी सबसे बड़ी वजह वर्णाश्रम और धर्म की भयंकर विकृति है. कुछ तथाकथित क्षेत्रिय स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं वहीं एक गरीब किसान जो मिलता है उसे भाग्य में लिखा समझकर स्वीकार कर लेता है. धनिकों को यह समय रहते स्वीकार कर लेना चाहिए कि किसानों की भी वैसी आत्मा है जैसी उनकी है. अधिक धन के कारण वे किसानों से श्रेष्ठ नहीं हो गए है. जापान के उमरावों ने जैसा किया उसी यहां भी धनवानों को किसानों को अपना संरक्षक मानना चाहिए. उनकी मेहनत की उन्हें उचित कीमत देना चाहिए. इसके साथ ही गांधी कहते हैं 

कि धनवान अनावश्यक दिखावे और फिजुलखर्ची में अपना धन खर्च करते हैं. उन्हें किसानों के लिए खुद को दरिद्र बना लेना चाहिए. उनके बच्चों की बेहतर शिक्षा का इंतजाम करना चाहिए. उनके लिए अच्छे अस्पतालों की व्यवस्था करना चाहिए. अपने इस लेख के अंत में गांधीजी ने लिखा था कि अब इसके दो ही रास्ते हैं. पूंजीपति अपना अतिरिक्त जमा किया धन स्वेच्छा से छोड़ दें या फिर अज्ञानी और भूखे रहने वाले लोग देश में ऐसा कुछ कर दें कि एक ताकतवार फौजी ताकत भी उसे नहीं रोक सकें.''   

English Summary: mahatma gandhis thought on farmers discontent and their participation in power Published on: 01 October 2020, 05:44 IST

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