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जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में चिंता बढ़ती जा रही है. अब इसके असर भी दिखने शुरू हो गए हैं. इसके चलते कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कृषि क्षेत्र भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है. इससे खेती में पैदावार कम हो रही है और साथ ही उपज की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर हो रहा है. जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में केसर की खेती पर बुरा असर देखा जा रहा है.
देश के सबसे बड़े केसर उत्पादक राज्य जम्मू-कश्मीर में इसकी पैदावार अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँचने की कगार पर है. केसर की खेती करने वाले किसानों का अनुमान है कि 2018-19 में केसर उत्पादन 2017-18 से आधा रह जाएगा. पिछले वर्ष यह चार टन के स्तर पर था जिसके अब 2 टन तक आने की आशंका है. केसर किसान संगठनों का कहना है कि जम्मू कश्मीर में पैदा केसर का भाव काफी अच्छा रहता है. सामान्य दिनों में इसकी कीमतें डेढ़ से सवा लाख रूपये प्रति किलोग्राम रहती हैं.
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वित्तीय वर्ष 2012-13 में राज्य में केसर की कुल पैदावार अपने उच्चतम स्तर पर हुई थी. 17.6 टन के उत्पादन के साथ उस वर्ष देश में केसर का उत्पादन सर्वाधिक दर्ज किया गया था. उस वर्ष के बाद से इसकी उपज में ज़बरदस्त गिरावट आई है. 2017-18 में तो यह घटकर चार टन के करीब पहुँच गई. लगातार बेमौसम बर्फबारी, मानसून की बेरुखी और अन्य पर्यावरण आधारित बदलाव इस गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं.
केसर की घटती पैदावार पर काबू पाने के लिए 'मिशन सैफ्रन' की शुरआत की गई है. इससे हालात सुधरने की उम्मीद की जा रही है. हालाँकि यह इसको रोकने में कितना कारगर रहेगा यह देखने वाली बात होगी.
इस मिशन के अंतर्गत बेहतर गुणवत्ता के बीजों की आपूर्ति और सिंचाई सुविधाओं में प्रति हेक्टेयर पांच से छह किलो केसर पैदा करने में आसानी होगी. गौरतलब है कि ईरान के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केसर उत्पादक देश है. यह बात दीगर है कि बीते कुछ वर्षों में यहाँ केसर की खेती के लिए प्रयोग किया जा रहा जमीन का दायरा कम हो गया है. आंकड़ों को देखें तो 1990 के दशक में कश्मीर में 5800 हेक्टेयर भूमि में केसर की खेती होती थी. मौजूदा वक्त में यह आंकड़ा घटकर 3800 हेक्टेयर पर पहुँच गया है.
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शहरों की बढ़ती आबादी इसकी मुख्य वजह है क्योंकि अधिक जनसंख्या के दबाब के चलते खेती की जमीन पर आवास बनाने का चलन बढ़ा है. इसके अलावा केसर की खेती में अपनाए जा रहे पुराने और पारंपरिक तरीकों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक कश्मीर में फ़िलहाल प्रति हेक्टेयर महज 1. 25 से दो किलो केसर पैदा होता है. दुनिया के अन्य हिस्सों में यह आंकड़ा 7 किलो प्रति हेक्टेयर के करीब है.
इन स्थितियों को देखते हुए जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति हमें चेतने की जरुरत है. अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो हालात वाकई बेकाबू हो जाएंगे.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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