योग विश्व को भारतीय संस्कृति द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है।यूं तो भारत ने विश्व के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ योगदान दिया है। फिर चाहे अंतरिक्ष,ज्योतिषी विद्या, चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद का ज्ञान भारतीय वैज्ञानिकों का लोहा तो सारी दुनिया मानती है। लेकिन आध्यात्म के क्षेत्र में भारत का जो स्थान है वो सर्वोपरी और अद्वितीय है। और इसी में आता है योग प्राचीन भारतवर्ष मे योग आदिकाल से चला आ रहा है इसे किसी खास क्षेत्र या परिभाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता यह तो भारत कि आत्मा और इसकी संसकृति का परिचायक है।
योग का अर्थ है मनुष्य़ कि आत्मा का ईशवर में विलीन होना जिससे मनुष्य को परमज्ञान एवं परमांनद कि प्राप्ति हो सके हर प्रकार दुख,मोह,लाभ जैसी इंसानी विकृतियों से मुक्त हो सके हर अव्स्था में अपना नियंत्रण रख सके योग के निर्वाण,समाधि,मोक्ष तीन मुख्य चरण है। साधक कि क्षमताओं के अनुसार इन तीन में से किसी एक अवस्था को प्राप्त होता परंतु तीनो का लक्षय एक ही है परमज्ञान एवं ईशवर के साथ एकिकरण अर्थात ब्रह्मांड़ में विलीन होना।
योग का इतिहास एंव प्रकार
योग का जनक भगवान शिव है। शिव बिना योग का अस्तित्व नहीं शिव और योग एक दूसरे के पर्यायवाची कहे जाते है दोनो को एक दूसरे से अलग करना संभव नहीं योग माध्यम है तो शिव लक्षय प्राचीन वेदों में शिव्तव कि प्राप्ति को ही मोक्ष कहा गया है। इसे अवस्था को ही बौध परंपरा बुद्धा कि उपाधि दी गयी है। काशी विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव कि नगरी को मोक्ष कि नगरी कहा जाता है। हड्प्पा सभ्यता के अवशेषो में भी बैल के साथ योगमुद्रा में बैठे महायोगी शिव को उकेरा गया है। यही जैन परंपरा में ऋषभनाथ कहे जाते है। और .यही सप्तऋषियों के गुरु दक्षिणामूर्ति कहे जाते है। .यही श्रवण परंपरा के स्श्रोत है।
आदिनाथ,आदियोगी,आदिभगवान इन्ही के विभिन्न नाम है। 1000 से भी ज्याद योग माध्यमो एवं प्रकारो का ज्ञान इन्होने ही सप्तऋषियों के माध्यम से विश्वभर में प्रसारित किया था। महार्शि पतंजलि ने अलग-अलग ऋषियों,मुनुयों द्वारा दिया हुआ योग ज्ञान एकत्रित कर एक सूत्र कि रचना कि जिससे आज पतंजलि योग सूत्र कहते है। तंत्र योग, अष्टांग मार्ग, नवनाथ परंपरा का हठ योग सब के जनक भगवान शिव ही है। शिव और योग का एक दूसरे से कितना गहरा संबध है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है महार्षि पतंजलि ने योगसूत्र कि रचना के अंत में भगवान शिव को ही सारा ज्ञान का श्रोत बताया है। और योगसूत्र में उनके प्रति भक्ति भाव व्यक्त किया है। और आज भी योग सभ्यता में योगी भगवान शिव को भगवान ना मानकर अपना गुरु मानते है और आदियोगी,महायोगी कि उपाधि से उन्हे संबोधित करते है। और आज भी भगवान शिव अपने गोरखनाथ अवतार में हर काल-समय पर अपने शिष्यो दिव्य दर्शन से अनुग्रहित करते रहते है। गुरु गोवंद सिंह ने भी गुरु ग्रंथ साहिब में संत गोरखनाथ का वर्णन किया है।
संसारिक परंपरा- इस परंपरा में योगी को संन्यास ग्रहण करने कि आवश्यकता नहीं अपितु साधारण मनुष्य जीवन जीते हुए सत्य,धर्म,सच्चाई,अछे कर्म, दान-पुण्य आदि गुणो का मनुष्य अपने अंदर विकास करे और एक आदर्श जीवन अर्थात सेवा भाव के जरिए स्वंय को इश्वर को समर्पित कर दे। भगवद गीता इस परंपरा के तीन मुख्य योग प्रकार का विवरण देती है।
कर्म योग - इसका मतलब इंसान बिना फल कि चिंता किए अपमा कर्म करता रहे। बीते हुए समय कि चिंता ना करे और ना ही आने वाले भविष्य को लेकर बेवजह दुख में रहे क्योंकि जो बीत गया उसे वह बदल सकता नहीं और जो आने वाला कल है उस पे उसका कोई नियंत्रण नहीं श्रेष्ठ यही है कि वह वर्तमान में जीना सीखे और अपने कर्मो द्वारा वर्तामान को बहतर बनाने का प्रयास करता रहे। यही कर्म योग है।
भक्ति योग- इसका अर्थ भक्ति के जरिए मोक्ष कि प्राप्ति अर्थात हर स्थिति सफलता हो यो विफलता, जीवन में सुख आए या दुख गहन संकट में भी अपने अराध्य का नांम जपता रहे उनकी सेवा में सदैव समर्पित रहे यदि अपने दुख का श्रेय ईशवर को देता है तो सुख का श्रेय स्वंय कि मेहनत को ना देकर उसका श्रेय भी ईशवर के दे यदी वह ऐसा नहीं करता है।तो यह भक्ती नहीं इसे लोभ कहते है श्रेष्ठ भक्त या मनुष्य वही है जो जीवन के ब़डे से ब़डें संकट में अपने भगवान के प्रति आस्था और एक मित्र कि तरह अपने सुख और दुख दोनो उनके साथ बांटे ऐसा इंसान परमज्ञान के साथ-साथ अपनी निस्वार्थ भक्ति के जरिए परमपद को प्राप्त करता है. संत कबीरदास,तुलसीदास,मीराबाई यह सभी महात्मा भक्ति मार्ग के प्रमुख उदाहरण है।
जन्न अथवा ज्ञान योग- योग के द्वारा आत्म ज्ञान कि प्राप्ति इस मार्ग का मुख्य उद्देश्य है। इस मार्ग के जनक भगवान शिव है योग क्रियाओं द्वारा आत्मा का विकास और अंत में शिवत्व कि प्राप्ति ही ज्ञान योग कही जाती आदि शंकराचार्य इस मार्ग के मुख्य प्रचारक और महागुरु कहे जाते है।
योग का पुनजागरण-
समय के साथ बढते भौतिक्तावाद और आधुनिक जीवनशैली के चलते लोगो ने यह मान लिया योग सिद्ध संन्यासी या महात्माओं का आचरण स्वंय को अंधविश्वासों में जकड़ कर रख लिया और धीरे-धीरे इस का ज्ञान मुख्यधारा से दूर होता चला गया लेकिन समय-समय पर महापुरुषो एवं योगगुरओं ने इसके ज्ञान को लुप्त नहीं होने दिया अलग-अलग समय में किताबों में संरक्षित कर रखा योगगुरु बाबा रामदेव ने योग को विभिन्न शारिरीक रोगो के उपचार हेतु लोगो को शिक्षा देने लगे जिससे ना केवल उनका जीवन स्तर बढ़ा बल्कि रोगमुक्त जीवनशैली के लिए लोग इसे प्राथमिक्ता देने लगे कैंसर जैसी प्राणघतक बीमारियों में भी डाक्टर योग करने कि सलाह देने लगे
संयुक्त राष्ट्र द्वार विश्व योग दिवस कि मान्यता एंव घोषणा-
औपचारिक और अनौपचारिक योग शिक्षकों और उत्साही लोगों के समूह ने 21 जून के अन्य पदों पर विश्व योग दिवस विभिन्न कारणों के समर्थन में मनाया। दिसंबर 2011 में, अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी, ध्यान और योग गुरू श्री श्री रविशंकर और अन्य योग गुरु ने पुर्तगाली योग परिसंघ के प्रतिनिधि मंडल का समर्थन किया और दुनिया को एक साथ योग दिवस के रूप में 21 जून को घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्रो सुझाव दिया।
इसके पश्चात 'योग: विश्व शांति के लिए एक विज्ञान' नामक सम्मेलन 4 से 5 दिसंबर 2011 के बीच आयोजित किया गया। यह संयुक्त रूप से लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन और एसवीवाईएएसए योग विश्वविद्यालय, बेंगलूर के द्वारा किया गया। जगत गुरु अमृत सूर्यानंद के अनुसार विश्व योग दिवस का विचार वैसे तो 10 साल पहले आया था, लेकिन यह पहली बार था जब भारत की ओर से योग गुरु इतनी बड़ी संख्या में इस विचार को समर्थन दे रहे थे। उस दिन श्री श्री रवि शंकर के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में 21 जून को संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए।
इस पहल को कई वैश्विक नेताओं से समर्थन मिला। सबसे पहले, नेपाल के प्रधान मंत्री सुशील कोइलेर ने कहा कि प्रधान मंत्री मोदी के प्रस्ताव का समर्थन किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 177 से अधिक देशों, कनाडा, चीन और मिस्र आदि ने इसका समर्थन किया। अभी तक किसी भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प के लिए यह सह प्रायोजक की सबसे अधिक संख्या है। 11 दिसंबर 2014 को 1 9 3 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 'योग के अंतरराष्ट्र' य दिवस 'के रूप में 21 जून को मंजूरी दे दी गयी।
संयुक्त राष्ट्र के घोषणा करने के बाद, श्री श्री रविशंकर ने नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना कर कहा:
"किसी भी दर्शन, धर्म या संस्कृति के लिए राज्य के संरक्षण के बिना जीवित रहना बहुत मुश्किल है। योग लगभग एक अनाथ की तरह अब तक अस्तित्व में था। अब संयुक्त राष्ट्र द्वारा आधिकारिक कानून योग के लाभ को विश्वभर में फैलाएगी।"
श्री श्री रविशंकर
योग के महत्व पर बल दे श्री श्री रवि शंकर ने कहा कि योग आप फिर से एक बच्चे की तरह बनाते हैं, जहां योग और वेदांत है, कोई कमी, अशुद्धता, अज्ञानता और अन्याय नहीं है। हम हर किसी के दरवाजे तक योग करने के लिए कर सकते हैं दुनिया को दुख से मुक्त करने की आवश्यकता है।
भानु प्रताप
कृषि जागरण
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