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गौण बीजीय मसालों की उन्नत प्रजातियाँ

मसालों के उत्पादन में भारत ने एक मिसाल कायम किया है. भारत के मसालों का पूरे विश्व में बोल बाला है. मसालों के उत्पादन एवं उपयोग में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है. देश के लगभग सभी राज्यों में मुख्य एवं गौण बीजीय मसालों की खेती की जाती है. बीजीय मसालों को दो भागों में बांटा गया है. मुख्य-धनिया, मैंथी, सौंफ, जीरा. गौण-अजवायन, सेलेरी, सुवा, कलोंजी आदि. गौण बीजीय मसालों के उत्पादन में राज्स्थान और गुजरात सबसे अव्वल हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं महाराष्ट्र आदि प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जो कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत पैदा करते हैं तथा इसी वजह से इन्हें ’बीजीय मसालों का कटोरा भी कहा जाता है.

मसालों के उत्पादन में भारत ने एक मिसाल कायम किया है. भारत के मसालों का पूरे विश्व में बोल बाला है. मसालों के उत्पादन एवं उपयोग में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है. देश के लगभग सभी राज्यों में मुख्य एवं गौण बीजीय मसालों की खेती की जाती है. बीजीय मसालों को दो भागों में बांटा गया है. मुख्य-धनिया, मैंथी, सौंफ, जीरा. गौण-अजवायन, सेलेरी, सुवा, कलोंजी आदि. गौण बीजीय मसालों के उत्पादन में राज्स्थान और गुजरात सबसे अव्वल हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं महाराष्ट्र आदि प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जो कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत पैदा करते हैं तथा इसी वजह से इन्हें ’बीजीय मसालों का कटोरा भी कहा जाता है.

देश में लगभग 9.7 लाख हैक्टर क्षेत्र पर बीजीय मसालों की खेती की जाती है जो की काफी बड़ी है. और इससे प्रतिवर्ष कुल 5.6 लाख टन का उत्पादन होता है. बीजीय मसालों का विशेष महत्व इनमें पाए जाने वाले खुशबू एवं स्वाद के कारण होता है. विभिन्न बीजीय मसाला फसलां की उन्नत प्रजातियों का फसलवार वर्णन निम्न प्रकार है :

अजवाइन

एन.आर.सी.एस.एस.-ए.ए.-1. इस किस्म का विकास राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, अजमेर द्वारा किया गया. इस किस्म को पक कर तैयार होने में लगभग 165 दिन का वक्त लगता है. और इसकी औसत उपज 14 क्विंटल/हैक्टर है. इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 3.4 प्रतिशत पाई जाती है.

सुवा

एन.आर.सी.एस.एस.-ए.डी.-1. यह यूरदपीयन डील की किस्म है. यह किस्म सिंचित परिस्थितियों में अच्छी पैदावार देती है. इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा 3.5 प्रतिशत पाई जाती है.

एन.आर.सी.एस.एस.-ए.डी.-2. यह भारतीय सुवा उन्नत की किस्म है. यह किस्म बारानी होती है तथा असिंचित और कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है. इसमे वाष्पशीय तेल की मात्रा 3.2 प्रतिशत पाई जाती है.

सेलेरी

एन.आर.सी.एस.एस.-ए.सेल.- 1. यह राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंन्द्र अजमेर से हाल ही मयह किस्म विकसित होकर ए.आई.सी. आर.पी. के अन्तर्गत अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में खेती हेतु अनुमोदित की गई है. इस किस्म से 8-12 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज प्राप्त कर सकते है तथा बीजों में 2.4 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है.

कलौंजी

एन.आर.सी.एस.एस.-ए.एन.- 1. यह किस्म राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, अजमेर द्वारा विकसित की गई है. और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जो लगभग 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. औसत उपज 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा वाष्पशील तेल की मात्रा 0.7 प्रतिशत है.

अजाद कलौंजीः यह किस्म कानपुर द्वारा विकसित की गई है जो लगभग 145 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है. उसकी औसत उपज 10  से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पंतकृष्णः यह किस्म पंतनगर से विकसित की गई है, जो 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

उन्नत प्रजातियां का चयन करके किसान भाई कम अवधि में पकने वाली फसल कीट एवं रोग के प्रति प्रतिरोधकता पायी जाने वाली एवं अधिक उपज देने वाली किस्मां का चयन करके अपनी उपज बढ़ा सकता है. जिससे अपनी एवं राष्ट्र की आय बढ़ा सकती है.

लेखक:

हेमन्त कुमार (पुष्प एवं भूदृश्य कला विभाग), डॉ. ओकेश चन्द्राकर (सब्जी विज्ञान विभाग), ललित कुमार वर्मा (एम.एस.सी. प्रथम वर्ष)

पं. किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महा.एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

English Summary: Advanced species of secondary algebraic spices Published on: 14 August 2018, 03:51 IST

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