भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या की जीविका का आधार कृषि ही है. कृषि में लगाए जाने वाले प्रमुख निवेशों में बीज एक प्राणभूत तथा प्राथमिक निवेश है. वर्तमान समय मे, जलवायु फसल के अनुरूप होने पर भी लगभग सभी फसल औसत या फिर इससे भी कम उत्पादन देती है. जिसका प्रमुख कारण किसानों द्वारा लगातार अशुद्ध या कम गुणवत्ता के बीज का प्रयोग करना है. कम गुणवत्ता वाले बीज की फसल में किसी भी प्रकार के अन्यनिवेशों जैसे: उर्वरक/ रसायन / सिंचाई अदि के प्रयोग का भी पूर्णतयालाभ नहीं मिल पता है और समस्त निवेश व्यर्थ चले जाते है. किसानों को समझना चाहिए की हम 'जैसा बोयेंगे वैसा काटेंगे'.किसान केवल उन्नत बीज के प्रयोग से ही अपनी फसल की उत्पादकता को लगभग 15 - 20 % तक आसानी से बढ़ा सकते हैं.
भारत की जनसँख्या विगत वर्षो से लगातार बढ़ रही हैं और जो कुछ ही बर्षो में चीन की जनसंख्या को भी पीछे छोड़ देगी. अगर समय रहते फसल उत्पादन तथा उत्पादकता वृद्धि पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश की इतनी बड़ी जनसँख्या का अन्न की आपूर्ति भविष्य की भावी चुनौती हो सकती है. अतः सभी किसानों को चाहिए कि वे उच्च गुणवत्ता वाले उन्नत बीजों का प्रयोग ही करें तथा साथ ही समय – समय पर अपनी फसलों का बीज बदलकर बुबाई करनी चाहिए जैसे: बाजरा, मक्का, ज्वार, सूरजमुखी, अरण्ड और सरसों कि फसल का बीज प्रत्येक 3 बर्ष पर बदल देना चाहिए. जहां एक ओर उन्नत बीजों के प्रयोग से फसल उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि होगी ओर दूसरी तरफ हमारे किसान सम्पन आत्मनिर्भर उद्यमी के रूप मे उभर कर सामने आएंगे.
बीज क्याहै ?
कृषि के दष्टिकोण से बीज का अभिप्राय रोपण या उत्पादन के उद्देश्य से उपयोग लाई जाने वाले पौंधे का कोई भी भाग जैसे कि सत्य बीज, जड़, कन्द, तना, बल्ब व शाखा आदि से है. जो अपने ही प्रकार का पूर्ण पौधा ( संतति ) उत्पन्न करने में सक्षम हो, जिससे कि पौधों का गुणन हो सके. जबकि वानस्पतिक दृष्टिकोण से बीज का अभिप्राय निषेचित परिपक़्व बीजाणु से है। सत्य बीज का अर्थ अन्न के दाने का आधा अथवा आधे से अधिक वह भाग जिसमें भ्रूण अवस्थित हो, जिसकी अंकुरण क्षमता व ओज अच्छा हो एवं जो भौतिक तथा अनुवांशिक रूप से शुद्ध हो, बीज कहलाता है. बीज में बीज आवरण, भ्रूण एवं कुछ में भ्रूण पोष उपस्थित होता है.
उन्नत बीज की विशेषताये:
1. उच्च अंकुरण तथा ओज क्षमता.
2. बीज अनुवांशिक एवं कीट मुक्त.
3. पौधे का सम्पूर्ण विकास.
4. अधिक उत्पादन क्षमता.
5. उत्पादित उत्पाद की श्रेणी उच्च.
6. फसल स्वस्थ तथा निरोगी होते है.
उन्नत बीज उत्पादन के उद्देश्य:
1. अधिक उत्पादकता प्राप्त करने हेतु.
2. बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने हेतु.
3. समय से बुबाई करने हेतु.
4. अधिक आय प्राप्त करने हेतु.
5. अन्न आत्मनिर्भरता हेतु.
उन्नत बीजों की श्रेणियाँ:
अधिसूचित फसलों / प्रजातियों के बीज निम्न श्रेणियाँ होती हैं:
१. नाभिकीय बीज:
यह उन्नत बीजों की प्रारम्भिक बीज श्रेणी है. इस बीज का उत्पादन इसको विकसितकरने वाले प्रजनक या उसके द्वारा संस्तुति किये गए प्रजनक द्वारा अनुसन्धान इकाईओं पर किया जाता है. यह शत -प्रतिशत शुद्ध बीज है. इसके प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होती है तथा यह बीज किसानों को उपलब्ध भी नहीं होता है. इस बीज का प्रयोग प्रजनक बीज को तैयार करने में किया जाता है.
२.प्रजनक बीज:
इस बीज का उत्पादन नाभिकीय बीज से अधिकृत प्रजनक (विश्विद्यालय तथा भारतीय अनुसन्धान परिषद) की सीधी देख रेख में किया जाता है. प्रजनक बीज को प्रमाणीकरण संस्था से प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होती है अपितु इसकी गुणवत्ता की जाँच एक संयुक्त मोनेटरिंग टीम द्वारा की जाती है. मोनेटरिंग टीम में निदेशक, राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था, आई. सी. ए. आर. के प्रतिनिधि, राष्ट्रिय बीज निगम के प्रतिनिधि तथा सम्बंधित अभिजनक द्वारा की जाती है. प्रजनक बीज की अनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत होती है. बीज की थैली को सुनहरे पीले रंग का लेबल लगाकर बंद किया जाता है तथा इस लेबल पर फसल एवं किस्म के विवरण के साथ-साथ संबन्धित प्रजनक की मोहर तथा हस्ताक्षर होते हैं.
३. आधारीय बीज:
आधारीय बीज को प्रजनक बीज की बुआई कर उत्पादित किया जाता है एवं यह प्रजनक बीज की संतति होती है. यह बीज आधारीय प्रथम कहलाता है. आधारीय द्वितीय बीज को कभी-कभी कुछ फसलों में उत्पादन किये जाने की अनुमति होती है. इस बीज का उत्पादन प्रमुखत: कृषि विश्विद्यालयों प्रक्षेत्रों पर तथा बीज निगम द्वारा चुने हुए प्रशिक्षित किसानों के प्रक्षेत्रों पर किया जाता है. राज्य-बीज प्रमाणीकरण संस्था इस बीज को निर्धारित मानकानुसार पाये जाने पर प्रमाणित करती है. इस बीज के थैलों पर उत्पादक का हरे रंग तथा बीज प्रमारीकरण संस्था का सफेद रंग का टैग लगा होता है, जिन पर संस्था के प्रतिनिधि की मोहर तथा हस्ताश्रर होते हैं.
४. प्रमाणित बीज:
इस श्रेणी के बीज का उत्पादन आधारीय बीज से किया जाता है. सामान्यतः किसानों को फसल उत्पादन हेतु बेचे जाने वाला बीज प्रमाणित बीज ही होता है. इस बीज का उत्पादन राज्य-बीज प्रमाणीकरण संस्था की देखरेख में इस श्रेणी हेतु निर्धारित मानकों के अनुसार किया जाता है. इस बीज के थैलों या बोरों पर उत्पादक का हरे रंग का लेवल एवं बीज प्रमाणीकरण संस्था का नीले रंग का टैग लगा होता है, जिसमें संबन्धित बीज प्रमाणीकरण संस्था के प्रतिनिधि की मोहर तथा हस्ताश्रर होते हैं.
५.विश्वसनीय बीज:
विश्वसनीय बीज का उत्पादन संस्था या किसनों द्वारा आधारीय या प्रमाणित बीज से मानकानुसार किया जाता है. यह बीज प्रमाणीकरण संस्था के द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाता है. इसकी भौतिक शुद्धता एवं अंकुरण क्षमता के लिये उत्पादक स्वयं जिम्मेदार होता है. इसके बोरों या थैलों पर केवल उत्पादक का ग्रोअर टैग लगा होता है.
बीज उत्पादन तकनीक के प्रमुख बिंदु:
बीज उत्पादन एक योजना बद्ध प्रक्रिया है जिसमें बीज मानकों के अनुरूप वैज्ञानिक पद्धति को अपनाकर उच्च गुणवत्ता का बीज तैयार किया जाता है.
इस प्रक्रिया के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
१. बीज उत्पादन हेतु प्रजातियों का चयन:
केंद्रीय प्रजाति विमोचन समिति (सी. वी. आर.सी.) द्वारा प्रजाति के विमोचन तथा भारत सरकार की अधिसूचना के उपरांत ही बीज उत्पादन किया जाता है. बीज प्रमाणीकरण संस्था केवल उन्हीं प्रजातियों का बीजोत्पादन का पंजीकरण करती है जिनकों भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है. अतः बीज उत्पादन हेतु सरकार द्वारा केवल अधिसूचित प्रजातियों का तथा जिनकी किसानों में माँग हो का ही चयन किया जाना चाहिये. उत्पादकों को प्रजातियों के चयन के समय अपने खेत की परिस्थिति को ध्यान में रखकर ही प्रजाति का चुनाव करना चहिये.
२. बीजकास्रोत:
बीज उत्पादन की प्रक्रिया में बीज को केवल विश्वसनीय स्रोत से हीक्रय करना चाहिए तभी हम बीज की वंशवली तथा शुद्धता पर विश्वास कर सकेगें. बीज को कृषि विश्वविद्यालयो / भा. कृ. अ. प./ कृषि विभाग के बीज गोदाम या कृषि विभाग द्वारा अधिकृत / पंजीकृत विक्रेताओं से ही क्रय करना चाहिए.
३. खेत का चुनाव:
खेत के चयन के समयइस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विगत वर्षों में उस फसल की दूसरी प्रजाति को उसखेत में न बोया गया हो ताकि मिश्रण की संभावना न हो खेत खरपतवार तथा अन्य फसलों के पौधों से मुक्त हो. खेत की मिट्टी स्वस्थ तथा कीट मुक्त हो तथा जल भराव जैसी समस्या उत्पन्न न हो.
४. कृषि क्रियाएं:
खेत की विधिवत जुताई तथा सिंचाई करनी चाहिए, साथ ही खेत में खरपतवार की उचित रोकथाम भी करनीचाहिए ताकि बीज फसल का अंकुरणभली-भाँति हो सके. बीज कीबुबाई ठीक समय पर तथा उचित नमी की स्थितिमें की जानी चाहिए. बीज फसल में बीज दरसामान्य फसल उत्पादन की अपेक्षा काम रखते हैं तथा पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे के दूरी अधिक रखी जाती है ताकि अवांछनीय पौधों को निकालनेतथा फसल सम्बन्धित अन्य क्रियाएं आसानी से की जा सके. खाद एवं उर्वरक की संस्तुत मात्रा उचित समयपरबीज फसल के उचित विकास लिए आवश्यक है. साथ ही मृदा परीक्षण की संस्तुति के अनुसार यदि किसी लघु पोषक तत्व की आवश्यकता हो तो उसका भी प्रयोग करना चाहिए.
५.पृथक्क़रण दूरी:
पर-परागण से बीज फसल में आनुवंशिक अशुद्धता के साथ-साथ रोगों के फैलाव का भी भय रहता है. अतः बीज उत्पादन हेतु बीज फसल को निर्धारित पृथक्करण अपनाकर ही उत्पादित किया जाना चाहिए. परंपरागित फसलों में स्वपरागित फसलों की अपेक्षा अधिक पृथक्क़रण दूरी बनाये रखने की आवश्यकता होती है। सामान्यतः स्वपरागित फसलों के बीज उत्पादन में यह दूरी 3 मीटर, आंशिक स्वपरागित फसलों मैं 30 मीटर तथा पर परागित फसलों में 200 मीटर रखी जाती है.
४. अवांछनीय पौधों को निकालना (रोगिंग):
बीज फसल के साथ उगे आवंछनीय पौधे (उसी फसल के भिन्न प्रकार के पौधे, अन्य फसल के पौधे, रोग ग्रसित पौधे व खरपतवारों) को सही समय पर और तरीके से निकाल देना चहिए ताकि बीज फसल की आनुवंशिक शुद्धता बनी रहे व स्वस्थ बीज पैदा हो सके, इसके लिए यह आवश्यक है कि अन्य प्रजातियों के पौधों, खरपतवारों तथा रोग ग्रस्त पौधों को जड़ सहित उखाड़कर थैलों में बंद कर खेत से अलग ले जाकर गढ्ढा खोद कर उसमें दबा दे या फिर उनको जला दें. यह प्रक्रिया बीज फसल में 2-3 बार निम्न अवस्थाओं पर करनी चहिये:
1. पौधों की वानस्पतिक वृद्धि के समय
2. पुष्पावस्था पर
3. बालियाँ बनते समय
4. फसल परिपक़्व अवस्था में
५. फसल सुरक्षा:
खेत में खड़े खरपतवार तथा अनावश्यक पौधे, रोगों तथा कीटों की शरण स्थली होते हैं. अतः समय –समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. आवश्यकतानुसार बीज फसल की इनसे सुरक्षा हेतु संस्तुत खरपतवार नाशकों, कीट नाशकों का छिड़काव भी करना चाहिए.
६. बीज प्रक्षेत्र निरीक्षण:
बीज फसल का वानस्पतिक, पुष्पावस्था एवं परिपक़्वता अवस्था पर बीज प्रमाणीकरण संस्था के निरीक्षकों से निरीक्षण किया जाता है. निरीक्षण के समय बीज फसल खरपतवार एवं अवांछनीय पौधों से मुक्त होनी चाहिये क्योंकि निरीक्षण प्रक्रिया में खेत में जगह-जगह पर काउन्ट लिये जाते हैं. खेत के क्षेत्र फल तथा एक काउन्ट में पौधों की संख्या पर काउन्ट संख्या निर्भर करती है. यदि यह निर्धारक मानक से ज्यादा है तो बीज फसल को निरीक्षण टीम द्वारा निरस्त कर दिया जाता है.
७. कटाई एवं मढ़ाई:
उचित समय तथापूर्ण रूप से बीज फसल के परिपक़्व हो जाने के उपरांत ही बीज फसल की कटाई की जानी चाहिये. यदि कटाई देर से की जाती है, और धूप में कई दिनों तक फसल पड़ी रहने के कारण बीज में नमी की मात्रा कम हो जाती है जिसके फलस्वरूप बीज खेत में ही बिखरने लगते हैं. दूसरी तरफ पहले कटाई करने पर, अधिक नमी के करण मढ़ाई तथा सफाई के दौरान बीज के क्षतिग्रस्त होने की संभावना होती है तथा भंडारण के समय कीट तथारोग कारको के संक्रमण का खतरा भी अधिक रहता है. बीज में नमी की उचित मात्रा बीज की उच्च गुणवत्ता को निर्धारित करती है. अतः कटाई एवं मढ़ाई में विशेष सावधानी बरतनी चहिये ताकि बीज को यांत्रिक क्षति न पहुंचे और साथ ही बीज को मिश्रित होने से बचाया जा सके. बीज की मढ़ाई पक्के फर्श या फिर तिरपाल पर करनी चाहिये.
८. बीज प्रसंस्करण:
बीज प्रसंस्करण के समय भी बीज फसल की नमी का विशेष ध्यान रखा जाता है. सुरक्षित नमी के स्तर तक बीज फसल को लाने के लिए धूप में या फिर कृत्रिम रूप से सुखाया जाता है. सुरक्षित नमीका स्तर फसलों के अनुरूप अलग-अलग होता है जैसे- खाद्यान्नों की फसलों में १२%, दालों में ९%, तिलहनों में ८% , कपास में १०% आदि। बीज फसल को अन्य बीज तथा अक्रिय पदार्थो से अलग करके उसकी सफाई करनी चाहिये.
९. बीज उपचार:
भंडारण के समय कीटों एवं रोगों से होने वाले नुकसान से बीजको बचाने हेतु बीजकोको भंडारण से पूर्व विभिन्न कीटनाशकों एवं कवकनाशकों से उपचारित करना चहिये.
१०. बीज परीक्षण:
आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता की जॉंच हेतु बीज फसल के विभिन्न परीक्षण किये जाते हैं. साथ में ही अंकुरण क्षमता परीक्षण, आर्द्रता परीक्षणभी बीज गुणवत्ता परीक्षण में अनिवार्य रूप से किये जाते हैं. इन परीक्षणों का ब्यौरा बीज फसल पर लगाये जाने वाले अंकन पंत्रों पर अकिंत किया जाना आवश्यक होता है.
११. बीज भंडारण:
बीज को निम्न ताप तथा निम्न आर्द्रता पर बोरों या फिर साइलो बिन में भंडारित किया जाता है. बोरों तथा बिन को बीज रखने से पूर्व उचित तरह से साफ कर लेना चाहिए जिससे पहले के अन्य बीज तथा किसी भी प्रकार के कीटों का खतरा न हो. भंडार-गृह उचित ऊंचाई पर तथा चूहों से रहित होना चाहिये. समय-समय पर चूहों के प्रकोप होने पर, जिंक फस्फाइड या ऐलुमिनियम फास्फाइड की गोलियों की सहायता से भंडार-गृह को चूहों से सुरक्षित रखा जा सकता है. बीज भंडारण से पहले ध्रुमक से भंडार-गृह को उपचारित किया जाना आवश्यक है.
प्रकृति तोमर*, डॉ. लोकेश कुमार गंगवार, डॉ. पूरन चन्द एवं डॉ. एस. के. करखी
पी.एच.डी.शोध छात्रा* एवं प्राध्यापक
आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्राद्यौगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ-२५०११० (उत्तर-प्रदेश)
Email: prakriti.tomar16@gmail.com, Phone no.: 9412630825
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