जलवायु परिवर्तन प्रत्येक वर्ग के लोगों को प्रभावित करने के लिये उत्तरदायी है. हालाँकि, इसका सबसे ज्यादा असर खेती और किसानों पर होता है. भारत में खेती पूरी तरह से मौसम की अनुकूल दशा पर निर्भर है. जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में होने वाली वृद्धि जाहिर तौर पर कृषि और फसल उत्पादकता पर प्रतिकूल असर डालेगी. ऐसे में किसानों के लिए तापमान में बदलाव से निपटना बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है.
नॉर्थ ईस्ट यूनिवर्सिटीज डेवलपमेंट कंसोर्टियम स्थित स्मिथ कॉलेज की तरफ से भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के होने वाले प्रभावों पर एक रिपोर्ट जारी की गई है. इस रिपोर्ट में तापमान वृद्धि से किसानों के निपटने की क्षमताओं पर एक विस्तृत अध्ययन पेश किया गया है.
भारत के 286 जिलों के 1979 से 2011 तक प्रत्येक दिन के मौसम की स्थिति पर आधारित आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते तापमान ने कृषि उत्पादकता को काफी हद तक प्रभावित किया है. शोध में कहा गया है कि जहाँ औसत तापमान 27-30 डिग्री था वहां फसल की पैदावार में 1 फीसदी की कमी देखने को मिली. जबकि 12-15 डिग्री तापमान वाले क्षेत्रों में तापमान कृषि के अनुकूल पाया गया. इसके अलावा ठंडी जलवायु वाले जिलों की अपेक्षा गर्म जलवायु वाले जिलों में फसल की उपज में 50 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई. हालाँकि, गर्म जलवायु वाले जिलों के किसान तापमान वृद्धि से बेहतर तरीके से निपट रहे हैं.
तापमान वृद्धि से निपटने के लिए किसान दो तरीके आजमा सकते हैं. वे अन्तः फसल प्रक्रिया को अपना सकते हैं जिसके तहत फसल को अधिक तापमान में भी उपजने के अनुकूल बनाया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर किसानों को सिंचाई की ऐसी तकनीकों पर अधिक निवेश करना होगा जो सूखा और तापमान वृद्धि की दशा में भी कारगर हों.
इसके अलावा किसान, फसल चक्र की व्यवस्था को अपना सकते हैं. इसके तहत गर्म जलवायु में पनपने वाली फसलें उगाई जा सकती हैं. इसके लिए ठंडे मौसम में होने वाली फसलें जैसे -गेहूँ, जौ आदि के स्थान पर मक्का और चारे वाली फसलें उगा सकते हैं जोकि गर्म जलवायु में भी आसानी से पैदा दे सकती हैं. रिपोर्ट के अनुसार भारत में किसानों ने उपरोक्त दोनों ही तरीकों पर अमल किया है. हालाँकि, यह अमल सीमित क्षेत्रों में ही किया गया है.
जब तापमान 30 डिग्री से अधिक रहता है उस दशा में फसल को सर्वाधिक नुकसान देखने को मिलता है. ऐसे में इससे निपटने की प्रक्रिया भी काफी चुनौतीपूर्ण और आर्थिक रूप से महंगी साबित होती है. यह दशा उन क्षेत्रों में भी है जहाँ सामान्य तौर पर तापमान अधिक ही रहता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों को तापमान वृद्धि के नुकसान से बचाने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को समान रूप से प्रयास करने होंगे. इससे निपटने के लिए जरुरी तकनीक उपलब्ध कराने और उससे संबंधित नीतियां बनाये जाने की आवश्यकता है.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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