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न्यू हालैंड एग्रीकल्चर का किसानों के लिए स्ट्रॉ-मैनेजमेंट जागरूकता अभियान

न्यू हालैंड एग्रीकल्चर ने फसल की कटाई के बाद पुआल और ठंडल जलाने के दुष्परिणामों से किसानों को सतर्क करने के लिए हाल में एक विषेष अभियान शुरू किया है। साथ ही, उन्हें कम्पनी के अत्याधुनिक समाधनों की जानकारी दी जा रही है जो जिनकी मदद से वे फसल के अवषेषों से लाभ कमा सकते हैं।

न्यू हालैंड एग्रीकल्चर ने फसल की कटाई के बाद पुआल और ठंडल जलाने के दुष्परिणामों से किसानों को सतर्क करने के लिए हाल में एक विषेष अभियान शुरू किया है। साथ ही, उन्हें कम्पनी के अत्याधुनिक समाधनों की जानकारी दी जा रही है जो जिनकी मदद से वे फसल के अवषेषों से लाभ कमा सकते हैं। 

अगस्त 2017 के पहले सप्ताह में शुरु हुआ यह अभियान हरियाणा के अधिकांष जिलों के सैकड़ों गांवों तक पहुंच चुका है। अगले चरण में यह अभियान पंजाब के उन क्षेत्रों में जारी रहेगा जिनमें फसल के डंठल जलाने का ज्यादा चलन है। अभियान के माध्यम से ब्राण्ड का मकसद रेक, बेलर, श्रेडो मल्चर, एमबी प्लाऊ, रोटावेटर, हैपी सीडर और पैडी चाॅपर जैसे सभी जरूरी समाधानों की पूरी रेंज के बारे में लोगों को बताना है। न्यूहाॅलैंड के ये उत्पाद पर्यावरण अनुकूल और किसानों के लिए बहुत लाभदायक हैं। न्यूहाॅलैंड के बेलरों और रेकों में किसानों की दिलचस्पी बढ़ी है और इन मषीनों की जबरदस्त बुकिंग हुई है। किसान इन्हें भविष्य में पुआल प्रबंधन का कारगर साधन मान रहे हैं और साथ ही इनमें आमदनी का एक अन्य स्रोत भी देख रहे हैं। 

भारत में हर वर्ष 105 मिलियन टन धान और 150 मिलियन टन डंठल-पुआल का उत्पादन होता है। धान की कटाई सितंबर से शुरू होती है और अनुमान के अनुसार धान के 90 प्रतिषत से अधिक पुआल खेतों में जला दिए जाते हैं जिससे भयानक प्रदूषण फैलता है। यही स्माॅग का मुख्य कारण है जिसकी चपेट में पूरा उत्तर भारत आता है और स्वास्थ्य की कई समस्याएं बढ़ जाती हैं। फसल के बचे हिस्सों को जला देने से पोषक तत्वों का भी भारी नुकसान होता है जबकि ये पौधों के विकास के लिए जरूरी हैं। धान के डंठल और पुआल में ये पोषक तत्व पाए जाते हैं। 

खेतों में पुआल जला देने से मिट्टी के जैव तत्वों का भी नाष होता है, और किसानों को इनकी कमी की भरपाई के लिए रसायनिक खाद डालने होते हैं जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, कृषि रसायन के रिस कर भूजल तक पहंुचने से पर्यावरण संकट गहरा रहा है। साथ ही, इन रसायनों के मिट्टी की सतह और पौधों से भाप बन बाहर आने से हवा की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है।  

विश्व स्तर पर न्यूहाॅलैंड एग्रीकल्चर ने 1940 में दुनिया का पहला आॅटोमैटिक बेलर लांच कर डंठल और पुआल इकट्ठा करने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया था। भारत में भी न्यूहाॅलैंड के बेलर धान के पुआल और अन्य फसलों के बचे भागों के बायोमास से बिजली पैदा करने की दिषा में खास महत्व रखते हैं। इससे चीनी मिलों में गन्ने के कचरे से बिजली उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है। 

न्यूहाॅलैंड के इस प्रयास से बिजली की किल्लत झेलते हमारे देष को ऊर्जा के अक्षय स्रोत से बिजली पैदा करने का एक स्थायी साधन मिल गया है। साथ ही, अब तक खेतों में जलने वाले फसल कचरों के सदुपयोग होने से पर्यावरण की सुरक्षा भी बढ़ी है। भारत में 600 से अधिक बेलरों के साथ न्यूहाॅलैंड ठब् 5060 बेलर बाजार में अग्रणी है। न्यूहाॅलैंड का प्रत्येक बेलर धान के एक सीजन में गांवों के 950 परिवारों के लिए एक साल योग्य बिजली पैदा करने में सहायक है। 

जायरो रेक फसल के अवषेष को कतारों में इकट्ठा करता है जिससे बेलर उसे आसानी से उठा सके। इससे बेलर की क्षमता में 25 से 60 प्रतिषत की वृद्धि होती है। इसके लिए 35 से 40 एचपी की कम पीटीओ पावर की जरूरत होती है, इसलिए न्यूहाॅलैंड त्ज्ञळ 129 जायरो रेक बहुत छोटे खेतों के लिए भी उपयुक्त है। 

न्यूहाॅलैंड का 1996 से कार्यरत अत्याधुनिक ग्रेटर नोएडा प्लांट अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बना है। भारत में इस ब्राण्ड की अत्याधुनिक तकनीक वाले 35 से 90 एचपी के ट्रैक्टरों की बड़ी रेंज है। साथ ही, खेती के मषीनीकरण के साधनों की पूरी रेंज़ है जिसमें रेक, बेलर, रोटावेटर और न्युमैटिक प्लांटर शामिल हैं। 

किसान भाइयों की मदद के लिए कम्पनी का खास ग्राहक हेल्पलाइन टोल फ्री नंबर 1800 419 0124 है जो किसानों की सहायता करने में सक्षम है। हेल्पलाइन की सेवा अंग्रेजी और हिन्दी समेत 8 क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध है। 

 

English Summary: Straw-Management Awareness Campaign for Farmers of New Holland Agriculture Published on: 21 September 2017, 06:51 AM IST

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