देशभर में कृषि जींस और मांग के सटीक आकलन के लिए केंद्र की मोदी सरकार अमेरिका के तर्ज पर एक नीति को विकसित करने वाले प्रस्ताव पर कार्य कर रही है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि खरीफ के अगले मौसम से कुछ चुनिंदा कृषि के उत्पादों और उनसें जुड़ी मांग के पूर्वानुमान के लिए इस व्यवस्था को शुरू किया जा सकता है। इसको नियमित अंतराल में जारी किया जाएगा। अधिकारियों की मानें तो इसके लिए एक तकनीकी सलाहकार समिति का भी गठन कर दिया गया है और इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के तहत नीति अनुसंधान और राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी संस्थान को नोडल पार्टनर बनाया गया है।
सांख्यिकी मॉडल पर हो रहा है कार्य
अधिकारी के अनुसार, ये सांख्यिकी मॉडल मंडी में आवक के आंकड़ों, एगमार्केट जैसे द्वितीयक स्त्रोतों से मिले कीमत के आंकड़ों, जमीनी सर्वेक्षणों और दूसरे स्त्रोतों के इस्तेमाल से कीमत और मांग का अनुमान लगाया जाएगा। इस नई व्यवस्था को खरीफ के अगले मौसम से कुछ चुनिंदा फसलों के लिए लागू होगी और जैसे-जैसे यह मॉडल सफल होगा. इसके दायरे में सभी फसलों को लाया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर के बाद इसमें क्षेत्रीय स्तर पर अनुमानों को जारी किया जाएगा।
सभी मंत्रालयों के साथ साझा हो रहे हैं विचार
अधिकारियों के मुताबिक शुरूआत से ही इस अनुमान को सरकारी अधिकारियों और मंत्रालयों के साथ साझा किया जाएगा ताकि वे इसके अनुसार अपनी योजनाओं को बना सके। इस प्रक्रिया के स्थापित होने और मॉडल का अच्छी तरह से परीक्षण करने के बाद ही इसे किसानों और दूसरें पक्षों के साथ रियल टाइम बेसिस डेटा के आधार पर साझा किया जाएगा ताकि वे आगे की योजना को बना सकें। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की व्यवस्था को अपनाने जा रहे है, जिसके सहारे यह किसानों को बताया जा सकें कि उनको कौन सी फसल बोनी है और कौन सी नहीं.
मॉडल होगा अमेरिका जैसा
इस मॉडल को लागू करते वक्त इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाएगा कि प्रमुख बुआई सत्र से पहले सरकार की कीमत और मांग के पूर्वानुमानों का दुरूपय़ोग ना हो। दरअसल अमेरिका का कृषि विभाग अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय आंकड़ों के आधार पर कृषि उत्पादों के कई मांग और कीमत का पूर्वानुमान जारी करता है। इससे अमेरिका और दूसरे देशों के किसानों को भी फसल के बारे में कई तरह के फैसले लेने में मदद मिलती है। इससे पहले यूपीए सरकार ने भी इस तरह की कोशिश की थी।
Share your comments