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खेती मे अरबों का नुकसान - कीटनाशकों के एक चौथाई नमूने की जांच फेल

फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है. कम्पनियां अपने ब्रांडेड उत्पादों के ज़रिये किसानों को कीटों से छुटकारा दिलाने हेतु अपने उत्पाद बाज़ार में उतारती रहती हैं. ऐसी कम्पनियां 5000 के लगभग है.

फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है. कम्पनियां अपने ब्रांडेड उत्पादों के ज़रिये किसानों को कीटों से छुटकारा दिलाने हेतु अपने उत्पाद बाज़ार में उतारती रहती हैं. ऐसी कम्पनियां 5000 के लगभग है.

भारत ही नहीं विदेशों में भी इसका बाजार बहुत बड़ा है. बड़ा बाजार और उसका लाभ देख कर कुछ बेईमान लोग नकली कीटनाशक बाजार में ले कर बड़ी कंपनियों का मुनाफा तो ख़राब करते ही हैं, फसल को भी बर्बाद करते हैं जिससे किसान की अपनी सेहत तो ख़राब होती ही है फसलों के उत्पाद जब बाजार में आते हैं तो एक आम उपभोक्ता भी अपनी सेहत ख़राब कर लेता है.

भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष डॉ कृष्ण बीर चौधरी ने खुले बाजार से कुछ कीटनाशक खरीद कर सरकारी प्रयोगशाला से जाँच कराई तो बहुत सारे सैंपल फेल हो गए.

इन नकली कीटनाशकों के बारे में किसानों और एक आम आदमी को जागरूक करने के लिए डॉ चौधरी ने मीडिया द्वारा यह बात सरकार के सामने लाने की चेष्टा की है.

फिक्की भी आगामी 24 दिसम्बर को एक गोलमेज चर्चा करके लोगों को इसके बारे में जागरुक कर रही है.

खुले बाजार से एकत्रित कीटनाशकों के कुल 50 नमूनों की जांच गुरुग्राम में स्थित सरकारी प्रयोगशाला- कीटनाशक सूत्रीकरण प्रौद्योगिकी संस्थान(आईपीएफटी) में करायी गई है. इनमें से 13 नमूने गुणवत्ता में निम्न कोटि के पाए गए हैं.

कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण बीर चौधरी ने कहा कि गड़बड़ी घरेलू बाजार में बेचे जा रहे माल की है. उन्होंने कहा, "परीक्षण में 50 कीटनाशकों में से 23 जैविक कीटनाशक थे. रासायनिक कीटनाशकों के चार नमूने मानक स्तर के अनुरूप नहीं पाए गए जबकि बायो-कीटनाशकों के नौ नमूने परीक्षण में विफल रहे क्योंकि उनमें रसायन शामिल थे.

भारतीय कृषक समाज ने देश में मिलावटी और घटिया स्तर के कीटनाशकों के बेचे जाने और उससे फसलों को होने वाले नुकसान पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसकी रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाने तथा दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

किसानों के एक प्रमुख संगठन, भारतीय कृषि समाज ने कहा है कि बाजार में बिक रहे कीटनाशकों में लगभग एक-चौथाई कीटनाशकों के नमूने जांच में घटिया किस्म के पाए गए हैं. संगठन का कहना है कि घटिया कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के चलते कृषक समुदाय को सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपये की फसल का नुकसान हो रहा है.

भारतीय कृषि समाज के अध्यक्ष कृष्णा बीर चौधरी की इस जांच रपट के अनुसार जैविक कीटनाशकों के नाम पर बेचे जाने वाले कीटनाशकों से नौ में रासायनिक कीटनाशक की मिलावट पाई गई है. डा. चौधरी ने कहा, ‘ किसानों को कीटनाशकों की जो क्वालिटी बतायी जाती है वह है नहीं. बायो पेस्टिसाइड्स (जैव कीटनाशक) के नाम पर मकड़जाल फैला है और इसके लिए बहुत हद तक कुछ जिला स्तर पर काम सैंपल भरने वाले पेस्टिसाइड इंसपेक्टर और राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं के प्रभारी जिम्मेदार है.

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यों में कीटनाशक निरीक्षक और प्रयोगशाला विश्लेषकों की मिली भगत से घटिया कृषि औषधियों का यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है. संगठन ने कहा कि राज्य स्तरीय कीटनाशक जांच प्रयोगशालाओं के लिए राष्टीय जांच एवं मापांकन प्रयोगशाला मान्यता परिषद (एनएबीएल) से मान्यता अनिवार्य की जाए.

डा चौधरी ने कहा, ‘‘ भारत कीटनाशकों का एक बड़ा निर्यातक है और निर्यात माल की गुणवत्ता में कोई शिकायत नहीं दिखती है.

ब्रांडेड कीटनाशकों के 26 और जैव कीटनाशकों के 23 नमूनों की जांच करायी गयी थी। इनमें से कुल 13 नमूने घटिया स्तर के पाये गये।

डा. चौधरी ने बताया कि ब्रांडेड नमूनों में से चार घटिया स्तर के और जैविक उत्पादों में नौ स्तरीय नहीं पाये गये हैं। एक नमूने में कीटनाशक की घोषित मात्रा का केवल 50 प्रतिशत पाया गया। जैव उत्पादों के नमूनों में रासायनिक कीटनाशक पाये गये हैं। उन्होंने कहा कि यह किसानों के साथ धोखाधड़ी है। घटिया कीटनाशकों का बीमारियों पर बहुत कम असर होता है जिससे फसलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है।

किसान नेता ने बताया कि देश में सालाना करीब 5000 करोड़ रुपये के घटिया कीटनाशकों की बिक्री होती है जिससे किसानों को लगभग 30 हजार करोड़ रुपये की फसलों का नुकसान होता है। कीटनाशकों की बिक्री में राज्य स्तर पर लापरवाही और उदासीनता बरती जाती है और जिला स्तर के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

डा. चौधरी ने बताया कि केन्द्र सरकार कीटनाशकों के नमूनों की जांच हेतु प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए सहायता राशि देती है जिससे गुणवत्तापूर्ण संस्थान का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि घटिया कीटनाशकों का उत्पादन करने वाली कम्पनियों और जिला स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों को नुकसान पहुंचाया जाता है। उन्होंनें कहा कि देश में 4669 कीटनाशाक दवा बनाने वाली कम्पनियां निबंधित हैं।

सरकार इन कम्पनियों से अपने उत्पादों को लेकर आंकड़े मांग रही है लेकिन केवल 314 कम्पनियों ने ही ऐसे आकड़े उपलब्ध कराये हैं। उन्होंने कहा कि देश में 50-60 कम्पनियां कीटनाशकों का निर्यात भी करती हैं जिनके उत्पाद अपने मानकों पर खरे उतरते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को गुणवत्तापूर्ण कीटनाशकों को उपब्धल कराने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिये जिससे दोषियों पर कार्रवाई की जा सके।

चंद्र मोहन, कृषि जागरण

English Summary: Loss of Arabs in agriculture - one fourth sample of pesticides failed Published on: 19 December 2018, 03:01 PM IST

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