बिहार में चमकी बुखार एक तरफ जहां मासूम बच्चों के लिए काल बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ लीची उद्योग को भी तहस-नहस कर रहा है. लीका वायरस लीची से फैलने की चर्चा ने यहां के कारोबारियों एवं लीची कारोबार दोनों की कमर इस कदर तोड़ी है कि ढ़ेले के भाव लीची बेचने की नौबत आ गई है. आलम यह है कि 120 से 140 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाली लीची भी आज़ अगर 30 से 50 किलो के भाव में बिक रही है, तो कारोबारी खैर मना रहें हैं.
ठसाठस लीचीयों से भरी रहने वाली बिहार की मंडियों में आज़ लीची गायब है. हमने जब यहां के व्यापारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि ‘अभी तक चमकी बुखार क्या है, इस बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं है, लेकिन लीची पर अफवाहों का बाज़ार इस कदर गर्म है कि लोग इसका नाम लेते ही मुंह बनाने लगते हैं.
बता दें कि बिहार से लीची देश-विदेश भेजी जाती है, लेकिन इस बार चमकी बुखार की वज़ह से मांगों में भारी कमी आई है. पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और चेन्नई में तो निर्यात अब नाम मात्र रह गया है. गया में एक फल व्यापारी से बात करने पर मालूम हुआ कि बिहार में होने वाले लीची उत्पादन को जीआई का टैग मिला हुआ है, यानी जॉगराफिकल इंडिकेशन टैग के तहत यहां की लीची अपने आप में एक ऐसा खास उत्पाद है, जिसमें विशिष्ट गुण और प्रतिष्ठा होती है. लेकिन बावजूद इसके यहां लीची का कारोबार लगभग बंद है.
व्यापारियों ने बताया कि सरकार ने भी अभी तक मदद का कोई हाथ नहीं बढ़ाया है और इसलिए लीची बेचना सभी ने बंद ही कर दिया है. अपनी पीड़ा को बताते हुए उन्होंने कहा कि व्यापारियों से ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है, हम लोग तो लीची ना बेचकर आज़ कुछ और बेचकर पेट पाल रहे हैं, लेकिन वह किसान क्या करे जिसकी सारी मेहनत पर पानी फीर गया.
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