मुश्किलों से घबरा कर उसके सामने घुटने टेक देना कोई अकलमंदी नहीं होती। परिस्थितियां चाहे जितनी भी खराब और आपके प्रतिकूल क्यों न हों, इंसान को अपना संघर्ष हमेशा जारी रखना चाहिए, क्योंकि हालात से लड़ना, लड़कर गिरना और फिर उठकर संभलना ही जिंदगी है। नसीब के भरोसे बैठने वालों को सिर्फ वही मिलता है, जो कोशिश करने वाले अकसर छोड़ देते हैं। यानी तदबीर से ही तक़दीर बनाई जाती है। अगर आपको इन बातों पर भरोसा न हो, तो आप रेखा त्यागी से मिलिये। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के जलालपुर गांव में रहने वाली महिला किसान रेखा त्यागी ने जीवन में कड़े संघर्षों के बाद सफलता की एक नई इबारत लिखी है।
रेखा त्यागी ने कृषि उत्पादन के क्षेत्र में ऐसी उपलब्धी हासिल की है, जो बड़े-बड़े किसान और जमीनदार नहीं कर पाते हैं। रेखा बाजरे की खेती में बम्पर पैदावार करने वाली प्रदेश की पहली महिला किसान बन गई हैं। रेखा के इस संघर्ष और उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं उनका सम्मान किया है। आखिर घाटे का व्यवसाय समझे जाने वाली खेती को रेखा ने कैसे लाभ के धंघे में बदला है। आईए सुनते हैं रेखा की कहानी उन्हीं की जुबानी.
एक आम महिला की तरह रेखा त्यागी का भी जीवन सामान्य तौर पर चल रहा था। रेखा के पति किसानी करते थे और पांचवी तक पढ़ी-लिखी रेखा घर में अपने तीन बच्चों को एक कुशल गृहिणी की तरह संभालती थी। लेकिल दस साल पहले रेखा के जीवन में उस वक्त दु:खों को पहाड़ टूट पड़ा जब अचानक उनके पति का देहांत हो गया। पति की मौत के बाद रेखा की जिंदगी बहुत कठिन हो गई थी। उनके सामने घर चलाने के लिए आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। खेत तो थे, लेकिन खेती में लगाने के लिए न तो रेखा के पास पैसे थे और न ही खेती करने और कराने का कोई अनुभव। पति के जिंदा रहते हुए रेखा ने कभी भी अपने खेत में कदम नहीं रखा था। लेकिन अब उसके सामने खुद की और अपने तीन बच्चों की परवरिश की चुनौती थी। अपने जेठ और देवरों की आर्थिक मदद से रेखा ने मजदूरों से खेती कराना शुरू किया। ये सिलसिला कई सालों तक यूं ही चलता रहा।
रेखा ने खेती में सालों तक नुकसान उठाया। खेती का लागत मूल्य निकालना भी कठिन हो रहा था। हालांकि खेती में नुकसान सिर्फ रेखा की ही कहानी नहीं है। प्रदेश के अधिकांश किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले कई सालों से लगातार मध्यप्रदेश में प्राकृतिक प्रकोपों के कारण किसानों को काफी हानि उठानी पड़ रही है। कभी ओलावृष्टि तो कभी पाले ने किसानों की कमर तोड़ रखी है। पिछले चार सालों से सफेद कीटों के आक्रमण के कारण सोयाबीन की फसलों का पैदावार भी प्रभावित हुआ है। किसान साहूकारों और बैंकों से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेकर खेती करते हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलें नष्ट होने से उन्हें पैदावार का लागत मूल्य भी निकालना मुश्किल हो रहा है। फसलें बर्बाद होने और कर्ज न चुकाने के कारण प्रदेश में पिछले 3 सालों में ढाई हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली है। ऐसे में रेखा के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि या तो अपनी कृषि योग्य लगभग 20 हेक्टेयर जमीन को ठेके पर किसी और किसान को दे दिया जाए या फिर इस नुकसान के व्यवसाय को लाभ में बदला जाए।
बार-बार नुकसान ने दिखाया लाभ का रास्ता
खेती में लगातार होने वाले नुकसान से उबरने के लिए रेखा ने अपने खेतों में नई किस्म की फसल लगाने के बारे में सोचा। इसके लिए उन्होंने अनुभवी किसानों के साथ-साथ जिला कृषि अधिकारी से भी संपर्क किया। अधिकारियों की सलाह पर रेखा ने अपने खेत में बाजरे की फसल लगाई। बाजरे की फसल लगाने के लिए रेखा ने परंपरागत पद्धति का त्याग कर नई और वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल किया। नई नस्ल के बीज और मिट्टी की जांच कर खेतों में खाद-पानी दिया गया। खेतों में सीधे तौर पर बाजरा बोने के बजाए पहले बाजरे का छोटा पौधा तैयार किया गया।
पौधा तैयार होने के बाद इसे अपनी जगह से उखाड़ कर खेतों में लगाया गया। इस तरह सघनता पद्धति से रोपे गए बाजरे की खेती में रेखा ने रिकार्ड तोड़ उत्पादन हासिल किया। आमतौर पर परंपरगत तकनीक से की गई बाजरे की खेती में प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल बाजरे का उत्पादन होता है, लेकिन सघनता पद्धति से की गई खेती में रेखा ने एक हेक्टेयर खेत में लगभग 40 क्विंटल बाजरे की पैदावार की। रेखा द्वारा बाजरे की ये रिकार्ड तोड़ पैदावार प्रदेश सहित पूरे देश के लिए अभूतपूर्व है। इस तरह रेखा ने बाजरा उत्पादन करने वाले किसानों के साथ-साथ सरकार का भी ध्यान अपनी ओर खींचा।
प्रधानमंत्री ने दिल्ली बुलाकर किया सम्मान
रेखा की इस कामयाबी की कहानी केन्द्रीय कृषि मंत्रालय और प्रधानमंत्री तक पहुंच चुकी थी। 19 मार्च को दिल्ली में आयोजित कृषि कमर्ण अवार्ड कार्यक्रम में रेखा त्यागी को आमंत्रित कर प्रधानमंत्री ने प्रशस्तिपत्र और दो लाख रुपये का नकद इनाम दिया। इस दिन देश भर से आठ राज्यों के सरकारी नुमाइंदे खेती में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए केन्द्र सरकार से मिलने वाले सम्मान को पाने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। वर्ष 2014-15 में खाद्यान्न उत्पादन में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ समेत आठ राज्यों को 'कृषि कर्मण पुरस्कार' से सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि वर्ष 2014-15 के कृषि कर्मण पुरस्कार के लिए स्क्रीनिंग समिति ने आठ राज्यों की सिफारिश की है। इसमें खाद्यान्न श्रेणी प्रथम के लिए मध्यप्रदेश, खाद्यान्न श्रेणी द्वितीय-ओडिशा और खाद्यान्न श्रेणी तृतीय के लिए मेघालय का चयन किया गया है। इसी तरह से चावल की पैदावार के लिए हरियाणा, गेंहू के लिए राजस्थान और दलहन के लिए छत्तीसगढ़ को चुना गया है। इसके अलावा मोटे अनाज की श्रेणी में तमिलनाडु और तिलहन की श्रेणी के लिए पश्चिम बंगाल का चयन किया गया है। साथ ही व्यक्तिगत तौर पर कृषि उत्पादन में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए मध्यप्रदेश से किसान रेख त्यागी को बाजरा उत्पादन और मध्यप्रदेश के ही नरसिंहपुर जिले के किसान नारायण सिंह पटेल को गेहूं उत्पादन में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए इनाम से नवाजा गया। रेखा अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपनी कठिन परिश्रम, लगन और कृषि विभाग के अधिकारियों को दे रही है।
सरकार बनाएगी रोल मॉडल
मुरैना जिले के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप संचालक विजय चौरसिया का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार रेखा त्यागी के इस शानदान उपलब्धि पर उन्हें अब प्रदेश में महिला किसानों के लिए रोल मॉड के तौर पर पेश करेगा। कृषि पर आधारित कार्यक्रम, प्रदर्शनियों, सेमिनारों में महिला किसान को ले जाकर रेखा की उपलब्धियों से रूबरू कराकर उन्हें प्रेरित किया जाएगा। विजय चौरसिया कहते हैं कि जिले का किसान रेखा की तरह नवीन तकनीक के आधार पर अगर फसल लगाएगा तो निश्चित तौर पर वर्तमान फसल उत्पादन से दोगुना उत्पादन होने की संभावना है। रेखा ने भी अपनी इस कामयाबी को शेष किसानों के साथ साझा करने की बात कही हैं। रेखा ने कहा,
"अब मैं किसानों को खेती में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देने के लिए उन्हें जागरुक करने का काम करूंगी।"
वहीं मुरैना जिले के कलेक्टर विनोद शर्मा कहते हैं कि रेखा त्यागी का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्मान किया जाना पूरे जिले के साथ प्रदेश का भी सम्मान है। खरीफ की फसल में रेखा ने रिकार्ड तोड़ उत्पादन किया है। इससे जिले और प्रदेश के दूसरे किसानों को भी सीख लेने की जरूरत है।
"मुझे बीएसएसी और बीएड पढ़ाई की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन मैं बेटी की शादी के बाद भी उसे पढ़ाना चाहती है, वह भी अपने खर्चे पर। मुझे मलाल है कि मैं खुद पढ़ी-लिखी नहीं हूं। इसलिए बेटी को पढ़ाना चाहती हूं।"
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