भारत को वैसे तो कृषि प्रधान देश के तौर पर जाना जाता है लेकिन यहां खेती-किसानी की हालत बद से बदतर है। किसान कर्ज के तले इस कदर दबा है कि उसकी अगली पीढ़ियां भी कर्ज में ही पैदा होती हैं और कर्ज चुकाते-चुकाते ही चल बसती हैं लेकिन इन तमाम निराशाजनक खबरों के बीच कभी-कभी उम्मीद की लौ के रूप में कुछ लोग उभरते हैं।
गुजरात प्रांत के निवासी व उद्यमी बिप्लब केतन पाॅल भी एक ऐसा ही नाम हैं। वैसे तो बिप्लब का जन्म बंगाल प्रांत के छोटे से शहर हुगली में हुआ। मगर उन्होंने अपनी कर्मभूमि गुजरात को बनाया। बिप्लब न सिर्फ बंजर भूमि को उपजाऊ बना रहे हैं बल्कि अन्य किसानों को जीने का हुनर भी दे रहे हैं। इस कड़ी में उन्होंने भूंगरू तकनीक के माध्यम से 50,000 एकड़ बंजर जमीन को हरा-भरा व उपजाऊ करने का काम किया है। उनके इस प्रयास से 14,000 किसान लाभान्वित हुए हैं।
क्या है भूंगरू तकनीक ?
भूंगरू तकनीक के बारे में पूछे जाने पर विप्लब कहते हैं कि भूंगरू एक ऐसी तकनीक है जिसमें हम खाली पड़ी बंजर जमीन पर पानी इकट्ठा करते हैं। ऐसा करने से कुछ समय बाद वहां की जमीन उपजाऊ होने लगती है। भूंगरू को गुजराती भाषा में चूल्हा कहा जाता है। चूंकि अधिकांश चूल्हे पर महिलाएं ही काम करती हैं और इस मुहिम से भी महिलाएं ही जुड़ी हैं इसलिए हमने इस तकनीक को भूंगरू नाम दिया है।
भूंगरू तकनीक के इस्तेमाल से बदली तस्वीर -
गौरतलब है कि खेतिहर जमीन में लवणता के घटने-बढ़ने की वजह से पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है। जल का स्तर इन इलाकों में अपेक्षाकृत कम होता है लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई भूंगरू तकनीक सूखे में बफर का काम करती है। इस तकनीक की मदद से अब यहां का किसान साल भर में 3 फसलें ले रहे हैं। अब किसी भी किसान को इससे अधिक क्या चाहिए होगा भला।
इस मुहिम की अगुआ हैं महिलाएं -
बिप्लब एक उद्यमी होने के साथ-साथ समाजसेवी भी हैं। उन्होंने इस तकनीक को विकसित तो जरूर किया था लेकिन आज इस मुहिम को वहां की स्थानीय महिलाएं आगे बढ़ा रही हैं। बिप्लब ने अपनी भूंगरू तकनीक द्वारा जल संरक्षण की दिशा में काम किया है और उसे कामयाबी के साथ आमजन तक पहुंचाने की कोशिश की है। इस तकनीक के अंतर्गत जमीन के अंदर मौजूद पानी को साफ करने के लिए पाइप्स का इस्तेमाल किया जाता है। ज्ञात हो कि ऐसा करके इस इलाके में केवल पाइप्स के माध्यम से ही 40 मिलियन लिटर पानी संरक्षित किया जाता है।
तकनीक की खासियत -
इस तकनीक की खास बात यह है कि एक अकेला भूंगरू साल में केवल 10 दिन पानी का संरक्षण कर पाता है। इसको 7 महीनों तक सुगमता के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे पांच परिवार 25 साल तक साल में दो बार फसल तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा ये तकनीक वर्षा जल में मौजूद नमक को भी कम करती है जिसके चलते एक तरफ इसका इस्तेमाल कृषि में किया जा सकता है तो दूसरी तरफ इसे पीने और खाना बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
अलग-अलग दामों में है मौजूद -
बिप्लब बताते हैं कि वर्ष 2002 में 7 लाख रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से खर्च करके गुजरात के पाटन जिले में इस तकनीक की पहली यूनिट को डाला गया था। वर्तमान में भूंगरू यूनिट 17 अलग-अलग डिजाइन में उपलब्ध हैं और इनकी कीमत इनकी अलग-अलग विशेषताओं के अनुसार 4 लाख से 22 लाख रुपए के बीच है। इस यूनिट को इंस्टाॅल करने में 3 दिन का समय लगता है जहां हर एक यूनिट से 15 एकड़ जमीन के लिए भरपूर पानी की व्यवस्था की जा सकती है। साथ ही इससे जमीन की उत्पादन क्षमता को भी दो बार तैयार किया जा सकता है।
मिल रही है वैश्विक पहचान -
इस पूरे मामले में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि बिप्लब केतन पाॅल साल 2004 में विश्व बैंक के आईवीएलपी (इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम) का हिस्सा बने। उन्होंने गांधी जी के अंत्योदय से सर्वोदय के सिद्धांत को अपनाते हुए समाज के सबसे अंतिम छोर पर खड़े किसान की मदद के लिए अपने आपको समर्पित किया और वर्षाजल संरक्षण के एक बड़े अभियान पर निकल पड़े। आज बिप्लब केतन पाॅल जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें किसानों के मुस्कुराते हुए चेहरे और बंजर जमीन पर हरियाली दिखाई देती है।
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