आज हम बात करेंगे ऐसे सफल इंसान के बारे में जिसने यह साबित किया की कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता अगर आप में जज़्बा है तो आप उस छोटे काम को भी बड़ा बना सकते हो जो मुश्किल लगता है. ऐसा ही कर दिखाया हरियाणा के छोटे से गांव बोहतवाल के बलजीत सिंह ने जिन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद डेयरी फार्म खोलने का सोचा . उनके पिता पेशे से एक किसान थे और उनकी माता घरेलू महिला .
उनके पिता चाहते थे की बलजीत सिंह एक अच्छा इंजीनियर बने और विदेशों में काम करे . वह पढ़ाई में काफी अव्वल थे पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें विदेशों से नौकरी के कई अवसर मिले पर बलजीत को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी वो नौकरी नहीं करना चाहते थे वह चाहते थे कि वह अपना कुछ व्यवसाय करे . उन्हें बचपन से ही दूध काफी पसंद था पर शहर आने बाद उन्हें ज्यादा दूध पीने को नहीं मिलता था और जो मिलता था वो भी इतना शुद्ध नहीं होता था तो उन्होने सोचा क्यो न दूध का व्यवसाय किया जाये जिस से आमदनी भी अच्छी हो और लोगों को भी शुद्ध दूध पीने को मिले . तो उन्होंने अपने पिता से इस बारे में बात की पर उनके पिता ने साफ़ मना कर दिया .
फिर भी उन्होंने अपनी आस नहीं छोड़ी और अपने पिता को मना लिया . उसके बाद उन्होंने "नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट " करनाल से 15 दिन का प्रशिक्षण लिया . प्रशिक्षण के बाद उन्होंने 10 भैंसों से काम शुरू किया पहले उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पढ़ा और फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे -धीरे सब ठीक होने लगा . 2007 में उन्होंने डेयरी का काम शुरू किया और 2008 में उन्होंने इसका पंजीकरण करवाया . जिसका नाम उन्होंने लक्ष्य फ़ूड रखा .फिर उन्होने सोचा की क्यो न विदेशो जैसा डेयरी फार्म खोला जाये इसलिए उन्होने 2009 में विदेशों से गायों को मंगवाया और अपने गांव में ही विदेशो जैसा डेयरी फार्म खोला .जो कि " हाई -टेक " डेयरी फार्म था .इस फार्म में पूरा काम टेक्नोलॉजी के दम पर होने लगा . फिर उन्होंने 2010 में " लक्ष्य मिल्क प्लांट की स्थापना "की जिस में पूरा काम बहुत सही तरीके से और जल्दी होने लगा गया .फिर उन्होंने दूध और दूध से बने उत्पाद की पैकिंग कर के हरियाणा या उसके आस पास के राज्यों में भेजा जाने लगा .जिस से "लक्ष्य कंपनी " का टर्न -ओवर 2010 में 150 करोड़ रहा . बलजीत सिंह का सपना है वो हरियाणा में देश का नंबर -1 डेयरी बनाये जिस से लोगों को शुद्ध दूध के उत्पाद मिले .
यह तो थी बलजीत सिंह की कहानी इस से हमें यह सिखने को मिलता है की कुछ भी छोटा नहीं .दोस्तों भीड़ हमेशा उसी रास्ते चलती है जो रास्ता आसान होता है जरूरी नहीं भीड़ हमेशा सही रास्ते चलती हो अपने रास्ते खुद चुनिए .क्योंकि आपको आपसे बेहतर को नहीं जानता है .
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