Success Story of UP Progressive Farmer Vipin Mishra: विपिन मिश्रा, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक प्रगतिशील प्राकृतिक खेती करने वाले किसान हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने के लिए व्यापार से खेती की ओर कदम बढ़ाया. वह इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकान चलाते थे और इस व्यापार में पंद्रह साल तक काम किया. हालांकि, इस क्षेत्र में उन्हें कभी भी पूर्ण संतोष नहीं मिला. उनका मन हमेशा यही सोचता रहता था कि उनका असली स्थान खेतों में है, जहां उनके परिवार की परंपरा रही है. परिवार में कई पीढ़ियों से खेती-बाड़ी का काम किया जा रहा था, और वह इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते थे.
एक दिन, उन्होंने ठान लिया कि अब वह खेती करेंगे. यह निर्णय उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि खेती का कार्य सरल नहीं होता, और उनका अनुभव व्यापार में था. बावजूद इसके, विपिन ने अपने दिल की सुनी और खेती की ओर कदम बढ़ाया. वर्तमान समय में विपिन 15 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती करते हैं और इससे वह सालाना 30 से 35 लाख रुपये तक का टर्नओवर जनरेट कर रहे हैं. इसमें से 20 से 25 लाख रुपये की शुद्ध बचत होती है. ऐसे में आइए आज उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
जैविक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर
विपिन मिश्रा ने शुरुआत में जैविक खेती अपनाई और इसके तहत वर्मी कंपोस्ट और गाय के गोबर से खेतों की उपज बढ़ाने की कोशिश की. हालांकि, कुछ समय बाद ही उन्हें इस खेती में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जैविक खेती में घास बहुत तेजी से बढ़ने लगी, जिसके लिए उन्हें अधिक मेहनत करनी पड़ी. खेतों से घास निकालने में उनकी मेहनत इतनी ज्यादा हो गई कि वे अपनी लागत भी पूरी नहीं कर पा रहे थे. इसके साथ ही, उत्पादन में भी गिरावट आई. जैविक खेती से निराश होकर वह नई दिशा की तलाश में थे, तब उन्हें सुभाष पालेकर से मिलने का अवसर मिला.
सुभाष पालेकर से उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ़) के लाभ के बारे में जाना, और सोचा कि इस दिशा में बदलाव करना उनके लिए सही कदम होगा. सुभाष पालेकर के मार्गदर्शन से उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ़) को अपनाया और इसके बाद उन्होंने पाया कि प्राकृतिक खेती ने उनके खेतों की उपज में सुधार किया और लागत को भी कम किया.
प्राकृतिक खेती: एक आत्मनिर्भर तरीका
प्राकृतिक खेती को अपनाने के बाद प्रगतिशील किसान विपिन ने देखा कि इसमें रासायनिक उर्वरकों की जरूरत नहीं होती, और इससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है. उन्होंने यह महसूस किया कि प्राकृतिक खेती न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अत्यधिक लाभकारी है. प्राकृतिक खेती में देसी गाय और देसी बीज का प्रयोग किया जाता है, और इससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है.
खेतों में जीरो बजट प्राकृतिक खेती
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में सबसे प्रमुख तत्व होता है जीवामृत का उपयोग. प्रगतिशील किसान विपिन ने अपने खेतों में जीवा अमृत का उपयोग शुरू किया, जो एक प्राकृतिक उर्वरक है. यह घोल देसी गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन, और कुछ मिट्टी से तैयार होता है. इस घोल का खेतों में छिड़काव करने से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है और कीट मित्रों की संख्या भी बढ़ती है. इससे खेतों में किसी भी प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं रहती.
आर्थिक सफलता और फायदा
प्राकृतिक खेती की विधि अपनाने के बाद, प्रगतिशील किसान विपिन की 15 एकड़ भूमि पर फसल का उत्पादन निरंतर बढ़ने लगा. वह सालाना 30 से 35 लाख रुपये तक का टर्नओवर जनरेट कर रहे हैं. इसमें से 20 से 22 लाख रुपये की शुद्ध बचत होती है, क्योंकि इस खेती में उन्हें रासायनिक खादों या महंगे कृषि उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ती. उनकी खेती में लागत मुख्य रूप से मजदूरी और डीजल पर होती है, और यह उनकी शुद्ध बचत को बढ़ाने में मदद करता है.
विपिन के अनुसार, अगर किसी किसान को लाभ कमाना है, तो उसे प्राकृतिक खेती की विधियों को अपनाना चाहिए. इस विधि से न केवल उसकी खेती की लागत कम होती है, बल्कि उसे स्वस्थ और गुणवत्तापूर्ण उपज भी मिलती है, जो बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त करती है.
पर्यावरण पर सकारात्मक असर
प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पर्यावरण के लिए भी बहुत लाभकारी है. प्रगतिशील किसान विपिन ने देखा कि रासायनिक खादों के इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता कम हो रही थी और जल की सोखने की क्षमता भी घट रही थी. लेकिन जब उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की, तो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ, और खेतों की जलधारण क्षमता भी बढ़ी.
किसानों के लिए प्रेरणा
प्रगतिशील किसान विपिन की सफलता अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है. उन्होंने किसानों को यह समझाया कि अगर वे प्राकृतिक खेती को अपनाते हैं, तो उन्हें न सिर्फ कम लागत में अधिक लाभ होगा, बल्कि वे पर्यावरण की रक्षा भी कर सकेंगे. विपिन का मानना है कि प्राकृतिक खेती से किसानों की पैदावार बढ़ती है और उन्हें किसी भी रासायनिक उत्पाद का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती.
वह कहते हैं, "किसान को पेड़ लगाने चाहिए और फसल चक्र अपनाना चाहिए, ताकि मिट्टी को संरक्षित किया जा सके और खेती का भविष्य सुरक्षित हो." उनका संदेश यह है कि खेती में बदलाव लाने के लिए किसान खुद को प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों से परिचित कराएं और उन्हें अपने खेतों पर लागू करें.
प्रगतिशील किसान विपिन मिश्रा का इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें- Link
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