Success Story: उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले के प्रगतिशील किसान अंगद सिंह कुशवाहा का नाम आज एक मिसाल बन चुका है. पिछले 40 वर्षों से वे कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और अपने अनुभव और मेहनत से खेती के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं. उनके खेती के सफर की शुरुआत भले ही पारंपरिक फसलों से हुई थी, लेकिन आज वे केले और आलू की उन्नत किस्मों की खेती करके सालाना 60 से 70 लाख रुपये कमा रहे हैं.
अंगद सिंह का सपना है कि भविष्य में वे जैविक खेती को पूरी तरह अपनाएं और अपनी खेती को अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाएं. उनकी यह कहानी सभी किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो खेती में नई तकनीकों और विधियों का प्रयोग करके अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे में आइए प्रगतिशील किसान की सफलता की कहानी (Success Story of a Progressive Farmer) के बारे में विस्तार से जानते हैं-
खेती में 40 वर्षों का अनुभव
कृषि जागरण से बातचीत में प्रगतिशील किसान अंगद सिंह कुशवाहा पिछले चार दशकों से कृषि क्षेत्र में सक्रिय हैं. अपने शुरुआती दौर में उन्होंने पपीता, आलू और अन्य पारंपरिक फसलों की खेती की थी, लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि केले की खेती (Banana Farming) में अधिक संभावनाएं हैं और इसी कारण उन्होंने पपीता की खेती छोड़कर केले की खेती को अपना लिया.
पपीते की फसल में एक बड़ी समस्या यह थी कि अगर इसमें पानी ठहर जाता था, तो फसल जल्दी खराब हो जाती थी. केले की फसल में ऐसा नहीं होता, इसलिए उन्होंने पूरी तरह से केले की खेती (Banana Farming) पर ध्यान केंद्रित किया और समय के साथ आलू की विविध किस्मों की खेती (Potato Farming) को भी अपना लिया.
केले की जी-9 किस्म की खेती
केले की जी-9 किस्म की खेती में प्रगतिशील किसान अंगद सिंह ने अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. यह किस्म न केवल उच्च उत्पादकता देती है, बल्कि इसमें रोगों का प्रकोप भी कम होता है. शुरूआती दौर में अंगद सिंह जलगांव से टिश्यू कल्चर के पौधे मंगवाते थे, जो उन्हें 20 रुपये प्रति पौधा के हिसाब से मिलते थे. आज वे स्थानीय बाजार से पौधे खरीदते हैं, जिससे उनकी लागत में कमी आई है. अब उन्हें प्रति पौधा 15 से 17 रुपये की दर पर पौधे उपलब्ध हो जाते हैं.
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह अपने खेतों में लगभग 5.3 इंच की दूरी पर पौधे (एक एकड़ में 1550 पौधे) लगाते हैं और बुवाई से पहले गोबर की खाद का प्रयोग कर मिट्टी को तैयार करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है. वर्तमान में अंगद सिंह अपने 10 एकड़ खेत में केले की खेती कर रहे हैं. केले की फसल 300 दिनों में तैयार होती है और इससे प्रति एकड़ 4 से 5 लाख रुपये की आमदनी होती है. इस तरह सालाना उनकी केले की खेती (Banana Farming) से लगभग 40 से 50 लाख रुपये की कमाई होती है.
आलू की खेती में विविधता (Potato Farming)
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह कुशवाहा आलू की खेती (Potato Farming) में भी एक अनुभवी किसान हैं. आलू की खेती (Potato Farming) में वे कई किस्मों का उत्पादन करते हैं, जिनमें चिप्सोना, नील कंठ और लाल आलू जैसी उन्नत किस्में शामिल हैं. उन्होंने आलू की खेती को दो भागों में बांट रखा है: अगेती और पछेती खेती.
अगेती आलू की खेती (Potato Farming) 15 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच की जाती है और यह फसल 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है. इस प्रकार की खेती में प्रति एकड़ 60-70 क्विंटल तक उत्पादन होता है. वहीं, पछेती आलू की खेती पूरे नवंबर में की जाती है और यह फसल 90 दिनों में तैयार होती है.
पछेती आलू की खेती (Potato Farming) से प्रति एकड़ 150-160 क्विंटल का उत्पादन होता है, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा मिलता है. आलू की खेती में प्रति एकड़ 65 हजार से 70 हजार रुपये की लागत आती है और इससे वे प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपये का लाभ कमा लेते हैं.
जैविक खेती की ओर बढ़ते कदम
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह फिलहाल अपनी खेती में जैविक और रासायनिक खाद का मिश्रण प्रयोग कर रहे हैं. हालांकि, उनका मानना है कि जैविक खेती न केवल उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाती है, बल्कि इससे मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है और पर्यावरण को भी लाभ मिलता है. जैविक खेती में गोबर, केंचुआ खाद और अन्य जैविक खादों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी के पोषक तत्व बनाए रहते हैं.
अंगद सिंह ने जैविक खेती को पूरी तरह अपनाने की योजना बनाई है, ताकि वे अपने उत्पाद को और अधिक सेहतमंद और पर्यावरण के अनुकूल बना सकें. उन्होंने कृषि जागरण से बातचीत में किसानों को भी जैविक खेती अपनाने की सलाह दी, ताकि वे अपने उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ा सकें और बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकें.
केले और आलू की खेती में लागत और मुनाफा (Cost and Profit in Banana and Potato Farming)
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह कुशवाहा के खेती के तौर-तरीके और उनके अनुभव ने उन्हें सफल बना दिया है. केले की खेती में जहां प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रुपये की लागत आती है, वहीं इसका उत्पादन उन्हें प्रति एकड़ 4-5 लाख रुपये का लाभ दिलाता है.
आलू की अगेती खेती में उन्हें प्रति एकड़ 60-70 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि पछेती आलू की खेती में यह उत्पादन 150-160 क्विंटल तक पहुंचता है. इस तरह से सालाना वे लगभग 60 से 70 लाख रुपये की कमाई कर लेते हैं, जो उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
कृषि के प्रति निष्ठा और समर्पण
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह का मानना है कि खेती में सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. मेहनत, समर्पण और नई तकनीकों का सही इस्तेमाल ही खेती में सफलता की कुंजी है. अपने चार दशकों के अनुभव के आधार पर उन्होंने खेती में कई नवाचार किए हैं और यही कारण है कि वे हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं.
अंगद सिंह अपनी सफलता का श्रेय अपने अनुभव, मेहनत और सही तकनीक के उपयोग को देते हैं. वे मानते हैं कि खेती को केवल आय का स्रोत नहीं समझना चाहिए, बल्कि इसे एक जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए ताकि पर्यावरण और मिट्टी की सेहत भी सुरक्षित रहे.
भविष्य की योजनाएं और उद्देश्य
प्रगतिशील किसान अंगद सिंह कुशवाहा का सपना है कि आने वाले समय में वे पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाएं और अपने उत्पादों की गुणवत्ता को और बेहतर बनाएं. वे मानते हैं कि जैविक खेती ही वह रास्ता है जो किसानों को लंबे समय तक सफल बना सकता है.
उनका उद्देश्य न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाना है, बल्कि अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित करना है ताकि वे भी जैविक खेती को अपनाएं और सतत विकास की ओर बढ़ें. अंगद सिंह की सफलता की कहानी उनकी मेहनत, निष्ठा और सतत सुधार की सोच का प्रतीक है, जो न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाती है, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा का कार्य करती है.
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