लाखों की भीड़ में एक ऐसा व्यक्ति जरूर होता है जो सबसे अलग हो और सबसे हटकर काम करे और दूसरों के लिए एक मिसाल कायम करे. जी हां, राजस्थान, बाड़मेर जिले के बायतु तहसील के माडपुरा बरवाला गांव के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले जोगाराम जिन्होनें ऐसा ही कुछ किया है.
जो दूसरों से हटकर है. जोगाराम जी के बारे में बताने के साथ-साथ कृषि जागरण समूह भी उनके इस प्रयास के लिए सलाम करता है क्योंकि आज कृषि क्षेत्र से कई लोग पलायन कर रहे हैं वहीं जोगाराम जी जैसे भी किसान हैं जो अपने अथक प्रयासों से कृषि में कुछ नया करने के लिए प्रयासरत हैं.
थार मरुस्थल में उगने वाली घास शंखपुष्पी को जहां पहले ऊंट इत्यादि जानवरों का पेट भरने के लिए इस्तेमाल किया जाता था वहीं अब इसे औषधि के रूप में इस्तेमाल करने से इसका महत्व बढ़ गया है. इस घास की खासियत है कि इस पर मौसम इत्यादि का प्रभाव कम पड़ता है और हर मौसम में इसे उगाया जा सकता है.
स्थानीय भाषा में इसे साणतर भी कहा जाता है. क्षेत्रीय किसान जो अतिरिक्त मुनाफा कमाना चाहते हैं उनका रुझान अब इसकी खेती की ओर बढ़ रहा है. उन्हीं किसानों में से एक हैं जोगाराम जी जिन्होंने शंखपुष्पी की खेती कर अपनी किस्मत बदलने की ठानी.
कहते हैं कि कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं, सोच को बदलो सितारे बदल जाएंगे. थोड़ी-थोड़ी जानकारी लेकर जोगाराम जी ने कृषि में नवाचार की कहानी लिखने के साथ अपनी किस्मत खुद बदल डाली. जोगाराम को काफी मुनाफा हुआ और यही कारण है कि वे मानते हैं हर किसान अपनी किस्मत को बदल सकता है. वे अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरे हैं. उन्होंने 50 बीघा पारिवारिक भूमि पर शंखपुष्पि की खेती सन् 2012 से शुरू की.
इससे पहले वे परंपरागत फसलें मूंग, मोठ, बाजरा, ग्वार, तिल आदि की खेती करते थे. जोगाराम जी ने बताया कि उन्होंने समाचार-पत्रों के माध्यम से औषधीय खेती के बारे में पढ़ा और कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क किया. कृषि विज्ञान केंद्र में होने वाले प्रशिक्षणों में समय पर भाग लिया जिससे उनके मन में औषधीय खेती करने की लालसा जागी. उन्होंने फैसला किया कि वो भी औषधीय खेती करेंगे और इसके साथ ही उन्होंने अपनी पारिवारिक जमीन के एक हैक्टेयर हिस्से में शंखपुष्पी की खेती करना प्रारंभ किया. इसकी खासियत यह है कि इन औषधीय पौधों की खेती करने में कम पानी, कम बरसात और मौसमी प्रकोपों के बावजूद भी अच्छी पैदावार होती है.
शंखपुष्पी की खेती के साथ-साथ जोगाराम ने अग्निमथ की खेती प्रारंभ की जिससे तीन वर्षों के अंदर ही उनकी आय में 1.5 से 2 लाख रूपए का इजाफा हुआ. जोगाराम जी ने बताया कि सूखे रेगिस्तानी इलाकों में किसानों के लिए शंखपुष्पी व अग्निमथ की खेती आजीविका को सुदृढ़ बनाने का अच्छा एवं आसान जरिया है.
इसकी खेती के लिए थोड़ी मेहनत और कम खर्च से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है. शंखपुष्पी व अग्निमथ मरूस्थलीय इलाके में आमतौर पर घास एवं झाड़ी के रूप में पाए जाने वाले औषधीय पौधे हैं जिसकी मांग आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने के लिए की जाती है. वर्तमान में जोगाराम जी 2 हेक्टेयर में शंखपुष्पी की खेती करके 60-70 हजार रूपए प्रतिवर्ष अतिरिक्त आय कमा रहे हैं.
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