जो लोग मेहनत करते है उनकी कभी भी हार नहीं होती है.इस कहावत को त्रिपुरा की आदिवासी महिला थाईबंग जमातिया ने सच करके दिखाया है. आज जामतिया त्रिपुरा के गोमाती जिले की तिवुरूपाबरी गांव में रहती है. यह यहां पर एक पहाड़ी इलाका है. दरअसल यहां पर रोजगार का कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था. ऐसे में जामतिया ने घर में ही अपने कमरे में मशरूम की खेती को करने का कार्य शुरू कर दिया है. इस तरह के प्रयास के बाद जमातिया की किस्मत पूरी तरह से बदल कर रख दी गई है.
मशरूम की खेती मुख्य साधन
दरअसल जामतिया की उम्र 34 वर्ष है और उनका परिवार आगे चलकर मशरूम की खेती का मुख्य जरिया है. जमातिया के परिवार में कुल 5 लोग है. उनके पति भी किसान हैजो कि जामतिया की मशरूम उगाने में मदद करते है. जमातिया के अनुसार मशरूम को बेचकर उन्हें प्रतिमाह करीब 10 से 15 हजार रूपए की कमाई हो जाती है. जमातिया मशरूम लोकल मार्केट किला बाजार में 250 रूपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक्री को करती है.
आय के साथ पौष्टिक आहार मुख्य जरिया
आपको बता दें कि त्रिपुरा राज्य के लोग झूम खेती करने के आदी है. इनकी वजह से ही त्रिपुरा के लोगों को मशरूम की खेती करने में मदद मिलती है. बता दें कि इस जगह पर पहाड़ी इलाका है जहां पर अनाज को उगाना बिल्कुल भी आसान नहीं होता है. लेकिन मशरूम न केवल इन लोगों की आय का महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है बल्कि वह वहां का पौष्टिक आहार भी बन गया है. जमातिया अपने बच्चों को बेहतर सुरक्षा देना चाहती है.
त्रिपुरा में मशरूम आय का साधन
जमातिया बताती है कि मशरूम की खेती फायदेमंद होती है. साथ ही इसमें लागत भी काफी कम आती है. उनका मानना है कि बेरोजगार युवा मशरूम की खेती करके अच्छी कमाई सकर सकते है. त्रिपुरा सरकार के एग्रीकल्चर विभाग ने एक रिपोर्ट में मशरूम की खेती को एक बड़े तौर पर पेश किया गया था. मशरूम की खेती के मास्टर ट्रेनर और प्रोडयूसर, आर्गेनाइजेशन की सीईओ के सुदीप मजूमदार के मुताबिक त्रिपुरा में मशरूम की खेती का ट्रेंड काफी तेजी से बढ़ रहा है. क्योंकि मशरूम की खेती त्रिपुरा का आदिवासियों के लिए आय का एक बड़ा साधन बन रहा है.
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