उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बागवानी विशेषज्ञ और मोटिवेशनल स्पीकर आनंद मिश्रा (Anand Mishra) नींबू के प्रमुख उत्पादक हैं. इन्होंने कृषि जागरण से बात करते हुए बागवानी और उसकी अर्थव्यवस्था पर जोर दिया और बताया कि कैसे किसान इसमें अधिक से अधिक आय अर्जित कर सकते हैं.
खेती और अर्थव्यवस्था
आनंद मिश्रा ने सबसे पहले बताया कि इकॉनमी को हिंदी में अर्थव्यवस्था कहा जाता है. इन्होंने 'अर्थ' को मिट्टी की गुणवत्ता (Soil Quality) से जोड़ा है और कहा कि "यदि आप पृथ्वी (मिट्टी) की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, तो आप अपनी अर्थव्यवस्था पर काम करते हैं, जिसके बाद उसमें स्वचालित रूप से सुधार होना शुरू हो जाता है. उन्होंने कहा कि खेती की शुरूआत मिट्टी से होती है और आपको इसकी जांच करानी चाहिए. उसमें देखें कि इसे किस खाद (Fertilizer) की जरूरत है और अगर इसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है."
यदि आप अपनी मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, तो आपको सिंचाई (Irrigation) के लिए पानी की आधी मात्रा की आवश्यकता होगी, जिससे आपकी अच्छी उपज होगी और वक़्त के साथ काम का बोझ कम हो जाएगा. दूसरा कदम है अपनी जड़ों की देखभाल करना और यह सुनिश्चित करना कि वे स्वस्थ हैं या नहीं व अच्छी तरह से विकसित हो रही है या नहीं.
आनंद कहते हैं कि हम जिस मिट्टी पर काम कर रहे हैं वह बहुत ठोस है, हमें इसे ढीली और मुलायम बनाने की जरूरत है. इसे प्राप्त करने के लिए आपको मिट्टी की कार्बोनिक सामग्री को बढ़ाने की आवश्यकता है. इन्होंने आगे कहा कि आपको ढैंचा (Dhencha), उड़द (Urad) , मूंग (Moong) और अन्य फसलें उगाने की जरूरत है, जो खाद के रूप में भी इस्तेमाल की जा सकती है. साथ ही, आपको फसल चक्र को अनुकूलित करने की आवश्यकता है.
जैसे मकान की नींव मजबूत होनी चाहिए, उसी ही तरह पौधे की जड़ स्वस्थ होनी चाहिए अन्यथा आगे चलकर इसके अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते हैं और आपको नुकसान झेलना पड़ता है. नतीजतन, "पृथ्वी" में सुधार से आपके "अर्थव्यवस्था" में सुधार होगा.
बागवानी है किसानों के लिए बेटर ऑप्शन
आनंद बताते हैं कि किसान एक समय में एक प्रकार की वस्तु पर ध्यान केंद्रित करते हैं, या तो फसल या बागवानी. फसलें 60-140 दिनों में बढ़ती हैं दूसरी ओर आपके बगीचे के पेड़ 40 साल या उससे अधिक समय तक फल प्रदान करते हैं. वह बताते हैं कि रसायन (यूरिया, डीएपी) फसलों द्वारा जल्दी अवशोषित कर लिए जाते हैं, लेकिन पेड़ इन्हें धीरे-धीरे अवशोषित करते हैं.
उन्होंने कहा कि फसलों (Crop) के साथ काम करने वाले या बागवानी (Horticulture) में काम करने वाले किसान ध्यान दें कि उन्होंने कितनी मात्रा में निवेश किया, बीज बोया, सिंचाई की और जब कटाई की. यदि आप इन अभिलेखों को नोट कर लेते हैं, तो अगले फसल चक्र (Fasal Chakra) में आपके पास एक अच्छा मार्गदर्शक होगा कि फसलों के लिए कब क्या करना चाहिए.
वह खेती के तीसरे पहलू की बात करते हैं जो उपज की गुणवत्ता है. उदाहरण के लिए बाज़ार में उपलब्ध कम गुणवत्ता वाले आलू (Potato) कम कीमतों पर और उच्च गुणवत्ता वाले उच्च कीमतों पर बिकते हैं. वैसे तो सभी आलू उत्पादकों ने अपने आलू को बड़ी मेहनत से उगाया होता है, लेकिन उनके अंतिम उत्पाद अलग-अलग दरों पर बिकते हैं. यह उनके द्वारा उगाए गए आलू की गुणवत्ता में अंतर का कारण होता है.
मार्केटिंग तकनीक से किसानों को होगा दोगुना मुनाफा
आनंद, किसानों के लिए मार्केटिंग (Marketing Skills) के लिए सलाह देते हैं और कहते हैं कि किसानों को स्थानीय स्तर पर समूह बनाना चाहिए और फिर सीधे उपभोक्ताओं को बेचना चाहिए. इन्होंने कहा कि किसान की मेहनत की कमाई से खेती के सभी इनपुट खरीदे जाते हैं और फिर वे अपने उत्पादों को थोक में बेचते हैं. यदि किसान बिचौलियों को हटा दें, तो उनकी आय निश्चित रूप से दोगुनी हो जाएगी.
इन्होंने मंडी कानून को बदलने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) और सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) को धन्यवाद दिया है, जो अब किसानों को भारत के किसी भी शहर, किसी भी राज्य में अपनी उपज बेचने की अनुमति देता है. वह खुदरा में खरीद और थोक (Wholesale) में बिक्री की समस्या को हल करने की उम्मीद करते हैं.
नींबू की सीधी मार्केटिंग
आनंद ने कभी भी मंडी को अपनी फसल नहीं बेची है और व्यवसायी उनसे सीधे उसके नींबू एकत्र करते हैं. वह किसानों को सुझाव देते हैं कि ऐसे व्यवसायियों को खोजें जो थोक में खरीद-बिक्री (Buy & Sell) करते हैं और आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. इनका सुझाव है कि अपने इलाके में या जहां भी आप आसानी से आपूर्ति कर सकते हैं कुछ काउंटर खोलें और वहां व्यापारियों और सीधे उपभोक्ताओं को बेचें.
उन्होंने कहा कि सरकार हमें आत्मनिर्भर (Atmanirbhar) बनने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है. वह सीमांत किसानों को अपने उत्पादों के उप-उत्पादों को बेचने का सुझाव देते हैं. वह गेहूं (Wheat) का उदाहरण देते हैं, जिसे कच्चे रूप में बेचा जाता है तो आटे में संसाधित होने की तुलना में बहुत कम कीमत मिलती है. एक अन्य उदाहरण देते हुए वो कहते हैं कि जौ (Millet) 20 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है और अगर संसाधित किया जाता है तो उसे 350 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मसाला ओट्स के रूप में बेचा जाता है.
आनंद कहते हैं कि आजकल ऑनलाइन (Online Selling) का जमाना है और किसानों को यह समझना चाहिए कि आने वाले भविष्य की डिमांड यही है. इसलिए उनका किसानों को यह कहना है कि वह चाहे ऑनलाइन बेचें, ऑफलाइन बेचें या फिर प्रोसेस्ड फूड (Processed Food) के रूप में बेचें, लेकिन बस सीधे बेचें.
इसके बाद वह अपने खेत की बात करते हैं जहां उन्होंने नींबू की खेती (Lemon Farming) की हुई है. इन्होंने कहा कि बागवानी में आप जितना अधिक प्रयोग करेंगे उतना ही आप सफल होंगे. आनंद ने खुद किस्में उगाई हैं, जिनमें से 900 पौधे अब उनके खेत में तैयार हैं.
प्रिंट और डिजिटल दोनों तरह के मीडिया द्वारा नियमित रूप से साक्षात्कार किए जाने के कारण आनंद अब एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं. इन्होंने कहा कि वह एक गर्वित किसान हैं और सभी किसानों द्वारा बागवानी को एक साइड बिजनेस के रूप में लिया जाना चाहिए. वे किसी भी पैमाने पर खेती कर सकते हैं साथ ही एक बार को आपकी फसल खराब (Crop Damage) हो सकती है और आपको बड़ा नुकसान हो सकता है लेकिन बाग आपको कभी निराश नहीं करेंगे.
नींबू की कीमत
नींबू (Nimbu) की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग है. भारत में इसे विशेष रूप से गर्मियों में विटामिन सी (Vitamin C) का एक अच्छा स्रोत माना जाता है. इनका उपयोग साबुन उत्पादकों जैसी अन्य कंपनियों द्वारा किया जाता है जो कच्चे माल के रूप में नींबू खरीदते हैं. इन्होंने अपने खेत में प्रति एकड़ 420 नींबू के पौधे 10 फीट x 10 फीट लगाए हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हैं कि तीन साल में आपका बाग व्यावसायिक उत्पादन के लिए तैयार हो जाता है. प्रत्येक पौधा प्रति वर्ष 20-25 किलोग्राम नींबू प्रदान करता है जिसे वह 40-50 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचते हैं, इसलिए वह प्रति वर्ष एक पौधे से 1,000 रुपये से अधिक कमाते हैं.
नींबू की खेती में जरूरी बातें
नींबू (Lemon) एक महत्वपूर्ण फल फसल है. भारत में 8608 हजार मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन के साथ लगभग 923 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में नींबू की खेती (Nimbu ki Kheti) की जाती है. Nimbu को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. अच्छी जल निकासी वाली हल्की मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है. मिट्टी की पीएच रेंज 5.5-7.5 होनी चाहिए. वे थोड़ी क्षारीय और अम्लीय मिट्टी में भी बढ़ सकते हैं. नींबू की खेती के लिए हल्की दोमट अच्छी जल निकास वाली मिट्टी सबसे अच्छी होती है.
नींबू की लोकप्रिय किस्में (Popular varieties of lemon) जो आप अपने बागान में उगा सकते हैं उसमें पंजाब बारामसी, यूरेका, पंजाब गलगल, पीएयू ,बारामसी, पीएयू बारामसी-1, रसराज, लिस्बन नींबू, लखनऊ बीजरहित और पंत नींबू शामिल है.
नींबू की खेती के लिए बुवाई का अच्छा समय (Sowing time for lemon cultivation) जुलाई से अगस्त का महीना है. यदि आप नींबू के साथ इंटरक्रॉपिंग की सोच रहे हैं, तो उसके लिए बेहतर फसलें लोबिया और फ्रेंच बीन्स हैं जो शुरुआती दो से तीन वर्षों में की जा सकती है.
आनंद किसानों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें बागवानी जरूर अपनानी चाहिए और उसमें नींबू (Lemon), अमरूद (Guava), आम (Mango), कटहल (Jackfruit) या ऐसी कोई भी फसल उगानी चाहिए, जो स्थानीय स्तर पर अच्छी तरह से विकसित हो.
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