कोरोना संकट की वजह से उबरे लॉकडाउन ने हर तरफ आर्थिक तबाही मचा रखी है. लॉकडाउन का असर रोजमर्रा की ज़िंदगी जिने वाले लोगों पर पड़ने लगा है. वहीं कई लोगों के व्यवसाय बंद होने के कारण यह लोग नये व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे ही एक व्यक्ति रंजीत कुमार कर्मकार जो कंप्यूटर संस्थान चलाकर अपना व्यवसाय कर रहे थे उन्हें भी लॉकडाउन कि वजह से आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा था. वहीं उन्होंने इसे दूर करने के लिए खेती-किसानी को आज़माने का मन बनाया है.लॉकडाउन में जब रंजीत का व्यवसाय बंद हो गया तो उन्होंने प्रयोग के तौर पर गमले में ताइवानी पपीते की खेती में लग गये हैं. उनका मानना है कि अगर प्रयोग सफल रहा तो वह आगे खेती-किसानी ही करेंगे. फिलहाल उन्होंने 125 गमलों में पपीते का पौधा लगाकर खेती कि शुरुआत की है और आगे सफल होने के बाद यह इसे बड़े स्तर पर करेंगे.
ल़ॉकडाउन ने अधिकांश व्यवसाय को अपने जद में ले लिया है और इन सभी को खुलने में भी वक्त लगेगा. पपीते की खेती को शुरु करने वाले रंजीत का मानना है कि खेती शुरु करके एक तरफ वो जहां समय का सही उपयोग कर पा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वो प्रकृति से जुड़ाव भी महसूस कर रहे हैं. उन्होंने पौधों में खाद या उर्वरक का प्रयोग करने की जगह घर के बचे कचरे का ही इस्तेमाल करते हैं और रोज उसे गमले में डालकर सिंचाई भी करते हैं. गमलों में लगे पौधों में अगले कुछ ही महीनों में फल आने शुरु हो जाएंगे.
छह माह में लगने लगता है फल
रंजीत बताते हैं कि इसके बीज को वो तीन माह पूर्व पूणा से अपने परिचित के घर से लेकर आये थे. उसी बीज को देखकर उन्हें आईडिया आया जिसके बाद उन्होंने अपने छत पर लगाने का फैसला किया. उन्हें इस बात की आशा है कि वो इस कार्य में सफल होंगे और उसके बाद वो इसको बड़े स्तर पर करेंगे. एक पौधे से लगभग 50 से 60 किलोग्राम फल प्राप्त होने की आशा है.
ताइवान पपीता कि खासियत
ऐसा माना जाता है कि ताइवान स्थित एशियन फल-सब्जी अनुसंधान केंद्र में इस प्रजाति के विकसित होने की वजह से इसे ताइवानी पपीता कहा जाता है. इसके पौधे को रोपने का सही समय दो बार फरवरी-मार्च व सितंबर-अक्टूबर है. इसमें प्रति कट्ठा औसतन 40 पौधे लगाए जाते हैं और इसमें साल में दो बार फल लगता है.
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