बुक बाइंडिंग का काम नया ना होते हुए भी मुनाफे से भरा हुआ है. इस उद्योग की सबसे खास बात यह है कि एक तो इसमे कॉम्पटिशन कम है और दुसरा कच्चा माल सस्ता है. जिस कारण कम से कम पूंजी में भी इस काम को शुरू किया जा सकता है. इतना ही नहीं इस काम को करने के लिए ना तो किसी विशेष डिग्री की जरूरत है और ना ही विशेष कहीं आने- जाने की आवश्यक्ता है.
आंकड़ों पर नज़र डाले तो पाएंगें कि भारत 315 मिलियन की आबादी के साथ विश्व का प्रथम राष्ट्र है, जहां 700 यूनिवर्सिटीज और 35,000 एफिलिएटेड कॉलेजेस है. इतना ही नहीं यहां 30 लाख छात्र हर साल ग्रेजुएट होते हैं, जबकि 22 लाख 10वीं एवं 19 लाख 12वीं की परीक्षा हर साल औसतन देते हैं. इन आंकड़ों को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि किताबों का अच्छा-खासा मार्केट यहां पहले से ही तैयार है.
क्यों है बुक बाइंडिंग की जरूरत
भारत में एक सत्र लगभग 12 महिनों का होता है, वहीं सरकारी एग्जाम की तैयारी में भी कई-कई साल लग जाते हैं. लेकिन ज्यादातर किताबें बिना बाइंडिंग के छपती है, जो कि कुछ समय बाद ही फटने लग जाती है. इन किताबों को अधिक समय तक चलाने के लिए जरूरी है कि उन्हें मजबूत बाइंडिंग के साथ सुरक्षित किया जाए.
कितनी तरह की होती है बुक बाइंडिंग
बुक बाइंडिंग करने के अपने-अपने तरीके हो सकते हैं, लेकिन प्रमुख तौर पर हार्ड बाइंडिंग एवं पलास्टिक बाइंडिंग फेमस है. हार्ड बाइंडिंग गत्तों द्वारा की जाती है, जबकि प्लास्टिक बाइंडिंग की मोटी शीट के सहारे होती है.
कहां से मिलेंगें ग्राहक
इस काम को करने के लिए आप स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि में पढ़ने वाले छात्रों या लाइब्रेरी या प्रकाशकों से संपर्क कर सकते हैं.
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