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पशुओं का गोबर: उपयोगिता एवं मूल्य संवर्धन

कृषि एंव पशुपालन, ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य व्यवसाय है. कृषि एंव पशुपालन एक दूसरे के पूरक हैं. पशुपालन व्यवसाय की विशेषता यह है कि यह निरन्तर आय का स्त्रोत है. वर्तमान में पशुओं से प्राप्त दूध एंव उसके द्वारा बनाए उत्पादों के साथ पशुओं के गोबर की उपयोगिता को भी समझना आवश्यक है एंव विभिन्न विधियों द्वारा इसका प्रसंस्करण करके मूल्य संवर्धन कर सकते हैं. पशुओं से प्राप्त गोबर की उपयोगिता कई बातों पर निर्भर करती है जैसे पशु की जाति, अवस्था एंव पोषण में प्रयुक्त चारे का प्रकार आदि

KJ Staff
Gobar
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कृषि एंव पशुपालन, ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य व्यवसाय है. कृषि एंव पशुपालन एक दूसरे के पूरक हैं. पशुपालन व्यवसाय की विशेषता यह है कि यह निरन्तर आय का स्त्रोत है. वर्तमान में पशुओं से प्राप्त दूध  एंव उसके द्वारा बनाए उत्पादों के साथ पशुओं के गोबर की उपयोगिता को भी समझना आवश्यक है एंव विभिन्न विधियों द्वारा इसका प्रसंस्करण करके मूल्य संवर्धन कर सकते हैं. पशुओं से प्राप्त गोबर की उपयोगिता कई बातों पर निर्भर करती है जैसे पशु की जाति, अवस्था एंव पोषण में प्रयुक्त चारे का प्रकार आदि

धार्मिक अनुष्ठानों व पूजा अर्चना के समय भी गोबर को शुद्ध मानते हुए इसका उपयोग किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में घरों को को गोबर से लीपने, पूजा स्थल लीपने, दीपक बनाने व दीप स्थापना के लिए गोबर का उपयोग किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर व गौमूत्र सर्वत्र मिलता है व गौमूत्र औषधि गुणों से युक्त होने के कारण घर व पूजा स्थलों को शुद्धिकरण के लिये इसे उपयपोग किया जाता है. गोबर में खनिज तत्व जैसे फास्फोरस, नाइट्रोजन, पोटाश, लोहा अधिक मात्रा में मिलते हैं. वर्तमान में गोबर की उपयोगिता को देखते हुए इसका रूपान्तरण बिजली संरक्षण क्षेत्र में किया जा रहा है. वर्तमान में गोबर को विभिन्न विधियों से प्रसंस्करित कर उसके मूल्य संवर्धन द्वारा पशुपालक अपने आय में वृद्धि कर सकते हैं. गोबर को प्रसंस्करित करने की कुछ विधियां निम्न है-

1.वर्मी कम्पोस्ट:- वर्मी कम्पोस्ट खनिज तत्वों एंव मृदा जीवाणुओं से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक हैं. यह केंचुओं द्वारा गोबर को विघटित करके बनाई जाती है. केंचुआं खाद बनाने के लिए 10 फीट लम्बा, 3 फीट चैड़ा व 1.5 फीट गहरा पक्का ईंट सीमेंट का उंचा छायादार स्थान की आवश्यकता रहती है. इसके उपर 3-4 ईंच की पकी हुई गोबर सतह बनानी चाहिए. इसके ऊपर सुबह शाम पानी का छिडकाव करना चाहिए ताकि 60-70 प्रतिशत नमी बनी रहें 30-40 दिन में केंचुआ खाद तैयार हो जाएगा. केंचुओं को अलग करके इसको कृषि भूमि को उपजाऊ बनाने व अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है.

2.कम्पोस्ट:- कम्पोस्ट एक प्रकार की खाद है जो जैविक पदार्थो के अपघटन एंव पुनः चक्रण से प्राप्त की जाती है. यह जैव कृषि का मुख्य घटक है. कम्पोस्ट बनाने का सबसे सरल तरीका है- नम जैव पदार्थों (जैसे पत्तियों, बचा-खुचा खाना आदि) का ढेर बनाकर कुछ काल तक प्रतीक्षा करना चाहिए ताकि इसका विघटन हो जाये. इसके लिए 10 से 15 फीट लम्बा, 4 से 5 फुट चैड़ा व 5 से 7 फीट गहरा गड्डा करके अधिक नाइट्रोजन प्राप्त के लिए मिश्रण में पौधों व फसल के अवशेष अधिक डालने चाहिए. मिश्रण को अच्छी तरह से दबा कर उसके ऊपर गोबर का लेप करना चाहिए. इसके बाद उस पर 15 सेंटीमीटर मिट्टी की परत बना देनी है जिसको पानी से गीला करते रहना है. कचरे को भी नमीयुक्त कर गड्डे में डालना चाहिए व 3-4 महिनों के लिए छोड़ देना चाहिए. इस खाद को फसल बुवाई से 1 महिने पहले खेत में डालना चाहिए जिससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढेगी व किसान को अच्छी पैदावार मिल सकेगी.

3.गौ काष्ठ:- पर्यावरण के संरक्षण, गौशालाओं व पशुपालकों की आय बढाने के लिए गाय के गोबर से गौ काष्ठ तैयार किया जा सकता है. गौ काष्ठ का उपयोंग दाह संस्कार, पूजा सामग्री, हवन आदि में कर सकते हैं. इससे प्रतिवर्ष कटने वाले वृक्षों में कमी आयेगी और पर्यावरण शुद्व व प्रदूषण मुक्त रहेगा. गौ काष्ठ को गाय पालक अपने खेत में बनाकर बेच भी सकते है. इससे किसानों की आय में वृद्वि होगी व पशुपालक आर्थिक रूप से सुदृढ़ होगा. पर्यावरण को भी शुद्व व संरक्षित किया जा सकेगा.

4.गोबर के उपले:- गाय/भैंस के गोबर को हाथ से आकार देकर और धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है. इसका उपयोग विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने में प्रयुक्त होने वाले ईंधन के रूप में किया जाता है. गोबर के उपले यज्ञ और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों के दौरान भी प्रयोग में लाए जाते है. इनको जलाने पर वातावरण शुद्व और पवित्र होता है. पशुपालक उपलों को निर्माण कर बाजार में बेच सकते है और अपनी आय में वृद्वि कर सकते है.

5.बायोगैस:- भारत में पशुओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक है इसलिए बायोगैस के विकास की प्रचुर संभावना है. यह गैस आक्सीजन की अनुपस्थिति में पशुओं से प्राप्त गोबर को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर उत्पन्न करके प्राप्त की जाती है. इस गैस में 75 प्रतिशत मिथेन गैस होती है. गोबर से प्राप्त मिथेन गैस को सी.एन.जी. में परिवर्तित कर उपयोग में ले सकते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन पकाने व ईधन के रूप में प्रकाश की व्यवस्था करने में इसका उपयोग किया जाता है. बायोगैस स्लरी को सीधे या छाया में सुखाकर व वर्मीकम्पोस्ट बनाकर खाद के रूप में खेतों में उपयोग किया जा सकता है.

6.गौ अगरबत्ती:- गाय के गोबर से घर पर ही अगरबत्ती बना कर पशुपालक अपने समय का भी उचित उपयोग कर सकता है साथ ही गौ अगरबत्ती द्वारा अपनी आय में वृद्धि कर सकता है. इसके लिए 4 किलो गोबर, 2 किलो लकडी का बुरादा, 5 कपूर की गोली व 100 ग्राम जौ का आटा मिलाकर भी अगरबत्ती बना सकते हैं.

उपरोक्त लिखित विधियों से पशुपालक पशुओं से प्राप्त गोबर को प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन कर सकते हैं. गोबर के समुचित उपयोग होने के साथ ही पशुपालक को आय का स्त्रोत भी अलग से प्राप्त होगा.

लेखक: डॉ. निखिल श्रृंगी’, डॉ. अतुल शंकर अरोड़ा एंव डॉ. तृप्ति गुर्जर
पशु विज्ञान केंद्र, कोटा राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

English Summary: Animal Dung: Utility and Value Addition Published on: 20 February 2021, 04:50 PM IST

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