राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत और आध्यात्मिक चिंतन के गौरव पुरुष लाला लाजपत राय का नाम भारतीय इतिहास में एक अनुपम धरोहर के रूप में सदैव अंकित रहेगा. उन्होंने राष्ट्रहित में जो महान कार्य किया, वह देश की स्वतंत्रता के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा. वे एक साथ राष्ट्रवादी राजनेता, एक प्रखर समाज-सुधारक, सामाजिक एकता के एक अग्रणी योद्धा और भारतीय संस्कृति के सबल संरक्षक के रूप में प्रतिष्ठित नजर आते हैं. देश को आजादी मिलने से पहले जहाँ पूरा भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने की लड़ाई लड़ रहा था. हर क्रांतिकारी अलग अलग तरीके से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता जा रहा था. उसी वक्त लाला लाजपत राय भी साइमन कमीशन के खिलाफ विरोधी सुर तेज कर रहे थे.
दरअसल संवैधानिक सुधारों के तहत 1928 में साइमन कमीशन भारत आया था. इस कमीशन में एक भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं देखकर भारतीयों का गुस्सा भड़क गया. 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर पहुँचा तो जनता के विरोध और आक्रोश के मद्देनजर यहां धारा 144 लगा दी गई. साइमन कमीशन पर विरोध जताने के लिए लाला लाजपत राय के साथ-साथ कई क्रांतिकारियों ने लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही साइमन कमीशन का विरोध जताते हुए उन्हें काले झंडे दिखाए. और ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा लगाया.
इस नारे से नाराज अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेजी सैनिकों को क्रांतिकारियों पर लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस दौरान अंग्रेज अफसर 'सार्जेंट सांडर्स' ने लाला लाजपत राय की छाती और सिर पर लाठी से प्राण घातक प्रहार कर दिया. जिसमें लाला जी के सिर और सीने में गंभीर चोटें आयीं. इस दौरान उन्होंने दहाड़ते हुए क्रांतिकारियों से कहा, "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी." लाठी की गंभीर चोट से घायल लाला जी को चिकित्सकों ने आराम की सलाह दी लेकिन जख्म गहरे थे. अंततः 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय (पंजाब का शेर) ने दम तोड़ दिया था. लालाजी के बलिदान पर एक ओर जहां पूरे देश मे शोक की लहर दौर गई वहीं ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश भी फैलने लगा और 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश हुकूमत का सूर्य अस्त हो गया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल ) में से एक लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था.
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