भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां के हर राज्य में बड़े पैमाने पर खेती होती है। वैसे तो यहां हर राज्य में अलग-अलग तरह की खेती की जाती है, क्योंकि यहां की मिट्टी, जलवायु,तापमान हर राज्य में अलग-अलग है। कर्नाटक एर ऐसा राज्य है जहां सिंचित भूमि ज्यादा है और उत्पादन का स्तर लगातार उच्च बना हुआ है। लेकिन इन सब में एक बात सामान है और वो है किसानों की स्थिती। जी हां देश में भले ही अलग राज्यों में अलग-अलग फसलों की खेती होती हो लेकिन शायाद किसानों की स्थिती लगभग देश के हर राज्यों में एक जैसी है। और कर्नाटक भी इस्से अछुता नहीं है चाहे राज्य में हर नेताओं के चुनावी वादे या चुनावी बोल किसानों को कितना भी अच्छा दिखाने का रहा हो लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की बात करें तो किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।
कर्नाचक में चुनाव तो खत्म हो गए हैं लेकिन काश चुनाव के सत्र के अंत होने के साथ किसानों की परेशानियां भी खत्म हो जातीं तो अच्छा होता। चुनाव के दौरान हमने देखा कि किस तरह कर्नाटक में एक के बाद एक बड़े नेता अपने भाषण में किसानों और उससे जुड़े मुद्दों का जिक्र कर रहे थे। हर पार्टी के नेता अपने आपको किसानों का हितकारी साबीत करने में लगे हुए थे। किसी के लिए किसान अन्नदाता थे तो किसी के लिए भगवान क्योंकि शायद राज्य में किसानों की संख्या अधिक है और वो पार्टीयों के लिए अच्छा वोट बैंक साबीत होंगे।
खैर ये तो राज्य में किसानों के हिसाब से राजनीतिक समिकरण की अब अगर राज्य में किसानों की आत्महत्या 2015 की तुलना में 2016 में 32.5 प्रतिशत बढ़ी है। बता दें कि कृषि क्षेत्र की आत्महत्या में अपनी जमीन पर खेती करने वाले और कृषि श्रमिक के रूप में काम करने वाले दोनों तरह के किसान शामिल हैं। वहीं राज्य में अब नए क्रम में पांच साले के लिए नई सरकार बनने वाली है और किसानों के लिए चुनाव के दौरान जितने भी घोषणाएं हुई हैं उन्हें वो पूरा होते देखना चाहेंगे और वाकई इसपर सरकार अग्रसर होकर काम करती हैं तो शायद राज्य में कोई भी किसान आत्महत्या नहीं करेगा।
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