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Hiljatra Festival कृषि पर्व जिसमें भूत देता है आशीर्वाद

पहाड़ों में लोकपर्व आज भी आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच का प्रतीक है. इनमें से कुछ ऐसे पर्व भी हैं जो खास महत्व के है. ऐसी ही खास बात है सोर घाटी पिथौरागढ़ के ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्व में. ये पर्व पहाड़ों की लोक- संस्कृति को दर्शाते हैं तो दूसरी तरफ लोगों को एकता के सूत्र में बांधते भी हैं. इस लेख में पढ़ें इस पर्व की खासियत के बारे में.

स्वाति राव
Hiljatra Festival
Hiljatra Festival

पहाड़ों में लोकपर्व आज भी आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच का प्रतीक है.  इनमें से कुछ ऐसे पर्व भी हैं जो खास महत्व के है. ऐसी ही खास बात है सोर घाटी पिथौरागढ़ के ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्व में. ये पर्व पहाड़ों की लोक- संस्कृति को दर्शाते हैं तो दूसरी तरफ लोगों को एकता के सूत्र में बांधते भी हैं. इस लेख में पढ़ें इस पर्व की खासियत के बारे में.

दरअसल सोरघाटी पिथौरागढ़ का ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्व पिछले 500 सालों से मनाया जा रहा है. इस दिन लखिया भूत का आशीर्वाद लेने के लिए लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है. पहाड़ी लोग लखिया भूत को भगवान शंकर के रूप में पूजते हैं. पहाड़ के लोग इस पर्व को कृषि पर्व के रूप में मनाते हैं. इस अनोखे पर्व में बैल, हिरण, लखिया भूत जैसे कई पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर लोगो को रोमांचित करते हैं.

हिलजात्रा पर्व का इतिहास (History of Hiljatra Festival)

इस पर्व की शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गाँव से हुई थी. इस गाँव में चार महर भाई कुंवर सिंह महर, चेह्ज सिंह महर, चंचल सिंह महर और जाख सिंह महर थे . 16 वीं सदी में इस गांव के ये चारों भाई हर साल पड़ोसी मुल्क नेपाल इंद्रजात्रा में शामिल होने जाते थे. जहां नेपाल के राजा इनकी वीरता से इतना प्रभावित हुए कि नेपाल नरेश ने यश के प्रतीक ये मुखौटे महर भाइयों को इनाम में दिए. साथ ही कृषि के प्रतीक रूप में हल भी दिया. तभी से पिथौरागढ़ की सोरघाटी में इन भाईयों ने हिलजात्रा पर्व प्रारंभ करवाया.

इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं. हिलजात्रा के प्रमुख पात्र लखिया के तेवरों को देखते हुए इसे लखिया भूत कहा जाता है, परंतु ग्रामीण इसे भगवान शिव का सबसे प्रिय और बलवान गण वीरभद्र मानते हैं.

हिलजात्रा पर्व कैसे मानते हैं  (How to Celebrate Hiljatra Festival)

हिलजात्रा है मुखौटा नृत्य नाटिका मंचन. यह पर्व बरसात की ऋतु के समापन और शरद ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है. इस दिन लकड़ी के मुखौटों  से सजे पात्र जिन्हें लखिया भूत नाम से जाना जाता है, पारम्परिक ढोल – नगाड़े के साथ लाल ध्वजा पताका लेकर नृत्य करते हैं. इसमें पात्र घास – फूस के घोड़े में सवारी करके आते है. अपने करतबों से आसपास की जनता को सम्मोहित करते हैं. इस दिन ये लोग अलग – अलग क्रियाएँ करते हैं. आसपास के लोग नाचते -कूदते सभी लोग अक्षत और फूल चढ़ाकर लखिया भूत की पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं.   लखिया भूत के वापिस जाने के साथ ही हिलजात्रा पर्व का समापन होता है.

English Summary: Hilljatra festival, in which people get the blessings of ghosts Published on: 08 September 2021, 02:15 PM IST

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