मोटे अनाजों को अक्सर सुपरफूड के रूप में संदर्भित किया जाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा मोटे अनाजों का उत्पादक देश है। भारत में कुल मोटे अनाज का क्षेत्रफल वर्ष 2022 में बढ़कर 41.34 लाख हेक्टेयर हो गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश प्रमुख मोटे अनाज के उत्पादक राज्य हैं। जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से मोटे अनाज बहुत उपयोगी फसल है जो कि सूखा सहनशील, अत्यधिक तापमान, कम पानी और कम उपजाऊ जमीन में आसानी से उगाया जा सकता है इसलिए मोटे अनाजों को भविष्य का फसल कहा जा रहा है। भारत में मोटे अनाजों की खेती का पुनः प्रचलन बढ़ रहा है, हमारे किसान भाई इसकी खेती कर अत्यधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
क्या होता है मोटा अनाज-
मोटे अनाज की बिरादरी में ज्वार, बाजरा, रागी या मड़ुआ, सावाँ, कोदो, कुटकी, कांगनी और चीना जैसी फसलें शामिल हैं। पारम्परिक भारतीय मोटे अनाजों में स्वास्थ्य का खजाना छुपा है। मोटे अनाजों को सुपरफूड के रूप में पुकारा जाने लगा है।
गरीब किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं मोटे अनाज-
हाल के वर्षा में मोटे अनाजों की मांग लगातार बढ़ रही है जिससे किसानों को उपज का बेहतर दाम भी मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार की तरफ से भी किसानों को मोटे अनाज की खेती करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। मोटे अनाजों की खेती में पानी कम लगता है, रासायनिक खाद, रोगनाशक और कीटनाशकों की जरूरत बहुत कम पड़ती है इसलिए किसानों का खर्च कम होता है।
पोषक तत्वों का खजाना है मोटे अनाज-
मोटे अनाजों में उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज आदि की उपस्थिति के चलते पोषण हेतु बेहतर आहार होते हैं। मोटे अनाजों में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है। जिससे पाचन बहुत अच्छा रहता है। मोटे अनाज मधुमेह रोगियों के लिये बेहद लाभकारी है। रागी या मड़ुआ में पोटैशियम एवं कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। बाजरा में प्रोटीन लगभग 10 से 12 प्रतिशत तक पाया जाता है।
क्यों खेत से गायब हुआ मोटा अनाज-
तीस से चालीस वर्ष पूर्व तक हम भारतीयों की थाली में मोटे अनाज की अच्छी खासी मौजूदगी हुआ करती थी इससे जरूरी पोषक तत्वों की जरूरत हमें आसानी से पूरी हो जाती थी। मोटे अनाज का सेवन करने से हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती थी लेकिन हरित क्रान्ति के आने के बाद गेहूँ-चावल की खेती पर ज्यादा ध्यान दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप गेहूँ-चावल की पैदावार निरन्तर बढ़ती गयी और मोटे अनाज हमारे खेत और थाली से लुप्त होते गये।
मोटे अनाज की खेती का पुनः प्रचलन-
मोटे अनाज की पौष्टिकता, रोग से लड़ने की क्षमता तथा जलवायु परिवर्तन को देखते हुए इसका प्रचलन फिर से बढ़ रहा है। मोटे अनाज सूखा प्रतिरोधी फसलें होती हैं, इसकी खेती में पानी की आवश्यकता कम होती है जिससे किसानों की लागत में कमी आती है। इन्हीं सब फायदों को देखते हुए मोटे अनाजों की खेती को केन्द्र एवं राज्य सरकारें बढ़ावा दे रही हैं।
अब देहाती भोजन नहीं रहा मोटा अनाज-
शहरी लोगों ने मोटे अनाजों को देहाती भोजन समझ कर अपने रसोई घर से बाहर कर दिया था लेकिन अब वैज्ञानिकों एवं डॉक्टरों की ओर से प्रमाणित करने के बाद बड़ी-बड़ी कंपनियां उन्हीं मोटे अनाजों के पैकेट बाजार में ला रहे हैं और इसके महत्व को स्वीकार करते हुए सभी लोग बड़े शौक से इन्हें खरीद रहे हैं। पोषक तत्वों की जरूरत के लिहाज से मोटा अनाज हमारे स्वास्थ्य के लिये बेहद महत्वपूर्ण है।
मोटे अनाज के संदर्भ में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहल-
वर्ष 2018 में कृषि मंत्रालय द्वारा मोटे अनाजों को उनके उच्च पोषक मूल्य तथा मधुमेह रोधी गुणों के कारण पोषक तत्वों के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 2018 को मोटे अनाजों का राष्ट्रीय वर्ष (नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स) के रूप में मनाया गया था। केन्द्र सरकार द्वारा मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढावा मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत के आग्रह पर वर्ष 2023 को मोटे अनाजों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स) के रूप में मानने के लिये भारत के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
लेखक-
1विश्व विजय रघुवंशी, शोध छात्र, पादप रोग विज्ञान,
2उत्कर्ष सिंह, शोध छात्र, सस्य विज्ञान
1,2आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
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