
भारत में कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए फसल चक्र (Crop Rotation) को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है. फसल चक्र के अंतर्गत यदि आलू की खेती के बाद मक्के की खेती की जाए, तो इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, फसल रोगों और कीटों का नियंत्रण होता है तथा किसानों की आय में वृद्धि होती है. मक्का एक बहुउपयोगी फसल है, जिसका उपयोग अनाज, चारे और औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में किया जाता है.
आलू के बाद मक्का उगाने के लाभ
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार
आलू की खेती में मिट्टी से अधिक मात्रा में पोषक तत्व खपत होते हैं. इसके विपरीत, मक्का गहरी जड़ वाली फसल होने के कारण मिट्टी की भौतिक संरचना को सुधारती है और पोषक तत्वों के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होती है.
- खरपतवार और कीट नियंत्रण
लगातार एक ही प्रकार की फसल उगाने से मिट्टी में कीट और रोगों की समस्या बढ़ जाती है. मक्के की खेती करने से इन समस्याओं का नियंत्रण होता है, जिससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता भी कम हो जाती है.
- जल प्रबंधन में सहायता
आलू की फसल के बाद खेत में नमी बनी रहती है, जिसका उपयोग मक्के की फसल को बेहतर अंकुरण और वृद्धि के लिए किया जा सकता है. मक्का कम पानी में भी अच्छी उपज देने वाली फसल है, जिससे सिंचाई लागत में कमी आती है.
- किसानों के लिए आर्थिक लाभ
आलू के बाद मक्के की खेती करने से किसान को दोहरी आमदनी प्राप्त होती है. इससे वार्षिक उत्पादन बढ़ता है और बाजार में अनाज की उपलब्धता बनी रहती है.
- जैविक संतुलन बनाए रखना
फसल चक्र अपनाने से मिट्टी में जैविक गतिविधियाँ बनी रहती हैं, जिससे सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है. इससे भूमि की उर्वरता बनी रहती है और भविष्य में खेती के लिए उपयुक्त वातावरण मिलता है.
आलू के बाद मक्का उगाने की विधि
- खेत की तैयारी
- आलू की फसल कटाई के बाद खेत की हल्की जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी बनी रहे.
- खेत में कार्बनिक खाद (गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट) मिलाएँ.
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए डीएपी, यूरिया और पोटाश का संतुलित प्रयोग करें.
- बीज चयन और बुवाई का समय
- उन्नत और हाइब्रिड किस्मों का चयन करें, जैसे गंगा-5, प्रभात, देकिन, HQPM-1 आदि.
- बुवाई का उचित समय मार्च-अप्रैल होता है ताकि मानसून के दौरान अच्छी वृद्धि हो सके.
- बीजों को 3-4 सेमी गहराई में बोना चाहिए.
- पंक्तियों के बीच 60-75 सेमी और पौधों के बीच 18-25 सेमी की दूरी रखें.
- सिंचाई और खाद प्रबंधन
- बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें.
- पहली सिंचाई 15-20 दिन बाद और आवश्यकतानुसार आगे सिंचाई करें.
- उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन (120-150 किग्रा/हेक्टेयर), फास्फोरस (60-80 किग्रा/हेक्टेयर) और पोटाश (40-60 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग करें.
- खरपतवार नियंत्रण
- 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें.
- जैविक या रासायनिक खरपतवार नाशकों (एट्राज़ीन 500 ग्राम प्रति एकड़) का उपयोग करें.
- कटाई और भंडारण
- मक्का की फसल 80-100 दिन में तैयार हो जाती है.
- भुट्टों को पूर्ण परिपक्व होने पर काटें और उचित धूप में सुखाकर भंडारण करें.
निष्कर्ष
आलू की फसल के बाद मक्का उगाना एक अत्यधिक लाभकारी खेती पद्धति है, जो न केवल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती है. यह प्रणाली जल प्रबंधन, जैविक संतुलन और कीट नियंत्रण में भी सहायक होती है. सही समय पर मक्के की खेती करने से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत होने का अवसर मिलता है.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश
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