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भारत में यूरिया का उपयोग किसानो ने कब किया ? क्या किसान 1960 से पहले यूरिया के नाम से भी अनभिज्ञ थे !

खेती-बाड़ी में यूरिया के इस्तेमाल से आज सभी भलीभांति परिचित हैं. यूरिया फसल में नाइट्रोजन की कमी को दूर करता है. जहाँ एक और फसल को तो यूरिया से लाभ मिलता है वहीँ जमीन में यूरिया की अधिकता नुकसान का भी पात्र बनती है. यूरिया जब नीम कोटेड नहीं हुआ करता था तब यह चोरी छिपे नकली दूध बनाने के भी काम आ जाता था. नीम की परत ने बहुत कुछ बचा लिया है. एक तो यूरिया की कालाबाजारी नहीं हो सकती दूसरे कई तरह के कीड़ों से भी छुटकारा दिलाता है.

खेती-बाड़ी में यूरिया के इस्तेमाल से आज सभी भलीभांति परिचित हैं. यूरिया फसल में नाइट्रोजन की कमी को दूर  करता है. जहाँ एक और फसल को तो यूरिया से लाभ मिलता है वहीँ जमीन में यूरिया की अधिकता नुकसान का भी पात्र बनती है. यूरिया जब नीम कोटेड नहीं हुआ करता था तब यह चोरी छिपे नकली दूध बनाने के भी काम आ जाता था. नीम की परत ने बहुत कुछ बचा लिया है. एक तो यूरिया की कालाबाजारी नहीं हो सकती दूसरे कई तरह के कीड़ों से भी छुटकारा दिलाता है. हरित क्रांति के दौर में ही किसानों तक यूरिया की पहुंच हुई। यूरिया के प्रयोग से फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ने लगा। किसान इस परिणाम से काफी खुश थे। अब हाल ये है कि भारत यूरिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।'' भारत में सालाना 320 लाख टन यूरिया की खपत होती है. भारत में खाद की कुल खपत में यूरिया की हिस्सेदारी 50 फीसदी के करीब है। फिलहाल सालाना 320 लाख टन रासायनिक यूरिया की खपत होती है। इसमें से लगभग 50 से 60 लाख टन यूरिया का आयात किया जाता है। केंद्र सरकार यूरिया के लिए इसी निर्भरता को समाप्त करना चाहती है, जिसके तहत घरेलू यूरिया उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (23 सितंबर) को ओडिशा के तालचर उर्वरक संयंत्र को फिर से शुरू करने के लिए 13,000 करोड़ रुपए की लागत वाली परियोजना की आधारशिला रखी। इस प्लांट से 36 महीने में उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य है। दरअसल केंद्र सरकार यूरिया को लेकर भारत को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास में जुटी है। ये प्लांट उसी प्रयास में उठाया गया एक कदम है। फिलहाल भारत में मांग के सापेक्ष यूरिया का उत्पादन काफी कम है। बीबीएयू केंद्रीय विश्‍वविद्यालय लखनऊ के उद्यान विभाग में प्रोफेसर डा. एमएल मीणा बताते हैं, ''भारत के किसान 1960 से पहले यूरिया से परिचित नहीं थे। उस दौर में फसल के लिए मवेशियों के मल से तैयार किए गए जैविक खाद और पारम्परिक कृषि पर ज्‍यादा निर्भरता थी। इस वजह से फसल का उत्पादन भी कम था। दूसरी ओर कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए विश्वभर में शोध और तकनीकि परिवर्तन कर नए आयामों की तलाश जारी थी, जिसे लोग हरित क्रांति के तौर पर भी जानते हैं। मोदी सरकार तालचर के साथ ही देश के पांच बड़े निष्क्रिय संयंत्रों को फिर से जीवन देने का काम कर रही है। इसमें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का कारखाना, झारखंड के सिंदरी का कारखाना, तेलंगाना के रामागुंदम में और बिहार के बरौनी में निष्क्रिय पड़ा कारखाना शामिल है। हालांकि, इन कारखानों से यूरिया का उत्पादन शुरू होने में अभी अभी समय लगेगा, ऐसे में फिलहाल यूरिया के आयात को कम करना मुश्किल लग रहा है।

यूरिया के आयात में हो रही बढ़ोतरी गौरतलब है कि 2017-18 में यूरिया खाद का आयात बढ़कर 59.75 लाख टन का हुआ है। वहीं, 2016-17 में यूरिया का आयात 54.81 लाख टन का ही हुआ था। साथ ही 2017-18 में यूरिया का घरेलू उत्पादन भी 242.01 लाख टन से घटकर 240.23 लाख टन हो गया। रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अनुसार 2018-19 के जून महीने में यूरिया खाद का आयात बढ़कर 7.86 लाख टन का हुआ है। मई में यूरिया का आयात 7.28 लाख टन ही हुआ था। भारत 2030 तक यूरिया की निर्यात कर सकता है. 2017 में आई केयर रेटिंग की रिपोर्ट के अनुसार, यूरिया संयंत्रों की नई क्षमता जोड़ने और निष्क्रिय पड़े संयंत्रों को फिर से शुरू करने से भारत यूरिया के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। इन प्रयासों ने केवल यूरिया के आयात को ख़त्म किया जा सकेगा, बल्कि 2030 तक भारत यूरिया का निर्यातक भी बन सकता है। पीएम मोदी यूरिया के उपयोग को लेकर जता चुके हैं चिंता हालांकि, यूरिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से अब मिट्टी को भी नुकसान पहुंच रहा है। इसको लेकर पीएम मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में चिंता भी जाहिर की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था, ''मिट्टी की वजह से ही पृथ्वी पर वनस्पति और मानव जीवन संभव हो सका है।'' विश्व मृदा दिवस (5 दिसंबर) का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ''मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए इसके पोषण पर ध्यान देना होगा। धरती पुत्र किसान यह संकल्प लें कि 2022 में जब आजादी के 75 साल पूरे हों तो यूरिया का आधा उपयोग बंद हो जाए।'' यूरिया से मिट्टी को नुकसान बीबीएयू केंद्रीय विश्‍वविद्यालय लखनऊ के उद्यान विभाग में प्रोफेसर डा. एमएल मीणा का कहना है, ''प्रधानमंत्री की चिंता वाजिब है। यूरिया से फसल का उत्पादन तो सही हो गया, लेकिन अब इसके अत्यधिक उपयोग से मिट्टी को नुकसान पहुंच रहा है। यूरिया में गौरेट कैमिकल होता है। ये जब ज्‍यादा प्रयोग किया जाता है तो एक तरह से जहर का काम करता है। किसानों को ऑर्गेनिक खेती का प्रयास करना चाहिए।'' किसानों के पास नीम कोटेड यूरिया का विकल्प केंद्र सरकार भी यूरिया की खपत को कम करने की दिशा में लगातार काम कर रही है।

सरकार ने इसके लिए नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन  अधिक करने का लक्ष्य रखा है। घरेलू यूरिया उत्पादन में 75 प्रतिशत नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन  अनिवार्य है। पीएम नरेंद्र मोदी भी अक्सर किसानों से नीम कोटेड यूरिया का इस्तेमाल करने की बात कहते हैं। सामान्य यूरिया के मुकाबले नीम कोटेड यूरिया से भूमिगत प्रदूषण कम होता है। नरेंद्र देव एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी फैजाबाद के प्रोफेसर राजीव दौरे का कहना है, ''नीम कोटेड यूरिया आने वाले समय की मांग है। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं है। नीम कोटेड होने की वजह से ये कीटनाशक का काम भी करता है। जिस तरह से यूरिया का उपयोग बढ़ा है, ऐसे में नीम कोटेड से बेहतर विकल्प नहीं दिखाई देता।'' फिलहाल भारतीय किसानों को यूरिया की आदत पड़ चुकी है। ऐसे में सरकार भी उनकी जरूरतों की पूर्ति के प्रयास में जुटी है हालांकि, अभी यूरिया के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने में वक़्त है। ऐसे में यूरिया के लिए भारत को आयात पर ही निर्भर होना होगा। कृषि मामलों के जानकारों का मानना है कि सरकार को किसानों को सिर्फ यूरिया देने तक काम नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्होंने इसके सही इस्तेमाल की जानकारी भी देनी चाहिए।

चंद्र मोहन

कृषि जागरण

English Summary: When did the farmers use Urea in India? The farmers were unaware of the name of urea before 1960! Published on: 25 September 2018, 07:31 AM IST

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