राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) में एसएचजी सदस्यों के साथ पशुपालन विभाग की योजनाओं के अभिसरण (जब दो या दो से ज़्यादा चीज़ें मिलकर एक नया रूप लेती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं.) के लिए कल एक वेबिनार आयोजित किया गया. यह एनआरएलएम के एसएचजी सदस्यों के साथ पशुपालन विभाग की योजनाओं की पहुँच बढ़ाने के लिए दोनों विभागों का एक संयुक्त प्रयास था. वेबिनार का आयोजन पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय की अध्यक्षता में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अपर सचिव चरणजीत सिंह के सहयोग से किया गया. वेबिनार में कुल 9500 सदस्यों ने भाग लिया.
अलका उपाध्याय ने अपने संबोधन की शुरुआत ग्रामीण विकास मंत्रालय और ग्रामीण भारत परिवर्तन फाउंडेशन (टीआरआईएफ) को एसएचजी सदस्यों के लिए इस तरह के जागरूकता पैदा करने वाले कार्यक्रम शुरू करने के लिए धन्यवाद देते हुए की. श्रोताओं को संबोधित करते हुए सचिव ने डेयरी क्षेत्र में मवेशियों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने यह भी कहा कि बैकयार्ड पोल्ट्री/सुअर/बकरी/भेड़ जैसे छोटे जुगाली करने वाले जानवर भी ग्रामीण महिलाओं के लिए आय और पोषण का स्रोत हैं. इसलिए इस गतिविधि को अपनाने के लिए ग्रामीण महिलाओं के बीच उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है.
उन्होंने पशुधन बीमा की पहुंच बढ़ाने पर जोर दिया और स्पष्ट किया कि पशुधन बीमा को बढ़ावा दिया जा रहा है और डीएएचडी द्वारा प्रीमियम पर सब्सिडी दी जा रही है. हालांकि, बीमा के दावों को लेकर जागरूकता और स्पष्टता की कमी है जो इसके कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर रही है. पशुसखियों के लिए बीमा कंपनियों से आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर है ताकि वे उनके एजेंट/उप एजेंट बन सकें और न केवल एसएचजी सदस्यों के बीच बीमा के बारे में जागरूकता पैदा करें बल्कि एसएचजी सदस्यों का सहयोग करने के लिए बीमा एजेंट के रूप में भी काम कर सकें.
अन्य कार्यक्रमों में पशुओं के निवारक स्वास्थ्य के लिए टीकाकरण शामिल है जिसके लिए सरकार के पास एनएडीसीपी/एलएच और डीसी जैसी योजनाएं हैं, जिसके तहत किसानों के गांवों में टीकाकरण किया जा रहा है. उन्होंने जूनोटिक बीमारियों (पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियां) के बारे में भी बात की, जिसके लिए लोगों में जागरूकता बहुत जरूरी है. उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए कि डीएएचडी और एसएचजी के बीच इस तरह की बातचीत भविष्य के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है और हमें ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए.
चरणजीत सिंह ने भी इस बात पर सहमति जताई कि पशुपालन स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के बीच सबसे लोकप्रिय गतिविधि है और यह उन गतिविधियों में से एक हो सकती है जो उन्हें प्रति वर्ष एक लाख से अधिक की आय प्राप्त करने में मदद कर सकती है, जिसकी परिकल्पना लखपति पहल के तहत की गई है. चारा संरक्षण जैसी सभी गतिविधियों को उद्यमिता मॉडल में शामिल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पशुधन क्षेत्र में पहले से ही 90 लाख स्वयं सहायता समूह परिवार हैं जिन्हें एनआरएलएम द्वारा सहायता दी जा रही है, 1,30,000 पशुसखियों को प्रशिक्षित किया गया है और पहले से ही देश भर में 11 दूध उत्पादक कंपनियां और 4 पोल्ट्री उत्पादक कंपनियां काम कर रही हैं. उन्होंने ऐसी और कंपनियों की आवश्यकता और अधिक स्वयं सहायता समूह सदस्यों को शामिल करने पर जोर दिया. उनका यह भी मानना था कि भविष्य में भी स्वयं सहायता समूह और डीएएचडी के साथ इस तरह की बातचीत जारी रहनी चाहिए.
डीएएचडी अधिकारियों ने मुर्गी पालन, भेड़/बकरी और सुअर पालन में उद्यमिता के बारे में राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजनाओं के बारे में बताया. इन योजनाओं से एसएचजी सदस्य कैसे लाभ उठा सकते हैं? उन्होंने चारा बीज के उत्पादन, चारा संरक्षण में उद्यमिता और पशुधन की बीमा योजनाओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी. पशुधन के बीमा में कान टैग के स्थान पर आरएफआईडी की शुरूआत और बीमा के लिए प्रीमियम की सब्सिडी में वृद्धि (कुल प्रीमियम का 85% तक) जैसे नए कदम उठाए गए हैं.
कार्यक्रम का समापन पशुपालन विभाग के सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय के अपर सचिव को धन्यवाद देने के साथ हुआ, जिन्होंने वेबिनार जैसे जागरूकता पैदा करने वाले कार्यक्रमों के महत्व पर जोर दिया, डीएएचडी और एनआरएलएम कर्मचारियों को जिन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग दिया और एसएचजी सदस्यों, पशुसखियों और एसआरएलएम कर्मचारियों को जिन्होंने धैर्यपूर्वक इस प्रस्तुति को सुना और चर्चा की गई योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सहयोग प्राप्त करेंगे.
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