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डॉ. त्रिपाठी के फार्म पर कृषि नवाचारों का अध्ययन करने पहुंचे विश्वविद्यालय के छात्र और प्रोफेसर

शहीद गेंद सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और छात्रों ने डॉ. राजाराम त्रिपाठी के मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म का दौरा किया. उन्होंने प्राकृतिक ग्रीनहाउस, रिकॉर्ड उत्पादन वाली काली मिर्च की किस्म, और जैविक कृषि के नवाचारों का अध्ययन किया. डॉ. त्रिपाठी के कार्यों ने पर्यावरण संरक्षण और किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

KJ Staff
Dr Rajaram Tripathi
शहीद गेंद सिंह विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और छात्रों ने डॉ. राजाराम त्रिपाठी के मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म का किया दौरा

जैविक कृषि, पर्यावरण संरक्षण और नवाचार में अग्रणी डॉ. राजाराम त्रिपाठी के फार्म पर शहीद गेंद सिंह विश्वविद्यालय के एमएससी (वनस्पति विज्ञान) विभाग के 50 सदस्यीय विभागाध्यक्ष, प्रोफेसरों एवं छात्रों के दल ने विशेष शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम के अंतर्गत मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर का भ्रमण तथा निरीक्षण किया.

इस दौरान उन्होंने डॉ. त्रिपाठी द्वारा विकसित अत्याधुनिक तकनीकों और पारंपरिक ज्ञान के अद्भुत समन्वय को नजदीक से देखा. इन्हें फॉर्म का भ्रमण मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार, संपदा समाजसेवी संस्था की प्रमुख जसमती नेताम तथा शंकर नाग के द्वारा करवाया गया.

  1. प्राकृतिक ग्रीनहाउस: प्लास्टिक मुक्त कृषि की अनूठी पहल: पर्यावरण अनुकूल कृषि को नई दिशा देने वाले प्राकृतिक ग्रीनहाउस को देखकर वैज्ञानिक दल अचंभित रह गया. यह पूरी तरह से वृक्षों से निर्मित है और ₹40 लाख प्रति एकड़ की महंगी पॉलीहाउस प्रणाली के मुकाबले मात्र ₹2 लाख प्रति एकड़ की लागत में विकसित किया गया है. यह प्रणाली न केवल गर्मी और ठंड से फसलों को सुरक्षित रखती है बल्कि प्लास्टिक के उपयोग को भी समाप्त करती है.

  2. रिकॉर्ड उत्पादन देने वाली काली मिर्च की नई किस्म: दल ने डॉ. त्रिपाठी द्वारा विकसित विशेष काली मिर्च की किस्म को भी देखा, जिसकी उत्पादकता अन्य प्रजातियों की तुलना में चार गुना अधिक है. यह किस्म किसानों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है, जिससे उन्हें अधिक उपज और बेहतर आर्थिक लाभ मिल सकेगा.

  1. जैविक कृषि में नवाचार: पर्यावरण और किसान हितैषी मॉडल: दल ने खेतों में उपयोग की जा रही उन्नत जैविक खेती तकनीकों को समझा, जिनमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बिना उन्नत उत्पादन लेने की विधियां शामिल हैं. डॉ. त्रिपाठी ने उन्हें समझाया कि इको-फ्रेंडली फार्मिंग तकनीक न केवल मृदा की उर्वरता बनाए रखती है बल्कि जलवायु परिवर्तन से भी लड़ने में सक्षम है.

  2. जनजातीय समुदायों का आर्थिक सशक्तिकरण: दल ने बस्तर की आदिवासी महिलाओं द्वारा उत्पादित मसाले, मिलेट्स और औषधीय उत्पादों के प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और राष्ट्रीय स्तर पर विपणन की प्रक्रिया को भी जाना. अपूर्वा त्रिपाठी द्वारा संचालित यह पहल न केवल आदिवासी परिवारों की आजीविका में सुधार कर रही है बल्कि उनके उत्पादों को भी वैश्विक पहचान दिला रही है.

  1. किसानों के लिए समर्पित राष्ट्रीय नेतृत्व: डॉ. त्रिपाठी, जो अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं, ने दल को बताया कि किसानों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए उनका संगठन नीतिगत सुधारों से लेकर जागरूकता अभियानों तक व्यापक स्तर पर कार्य कर रहा है.

प्रोफेसरों वैज्ञानिकों ने नवाचारों को सराहा: विश्वविद्यालय के बॉटनी विभागाध्यक्ष और प्रोफेसरों ने डॉ. त्रिपाठी की तकनीकी दक्षता, नवाचार और पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि यह फार्मिंग मॉडल पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है.

राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रभाव:

डॉ. त्रिपाठी की ये उपलब्धियां न केवल भारत की जैविक कृषि और पर्यावरण संरक्षण में क्रांति ला रही हैं बल्कि विश्वस्तर पर भी एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं. उनके कार्यों को 'ग्लोबल ग्रीन वॉरियर' पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

English Summary: University students and professors visited Dr Tripathi's farm to study agricultural innovations Published on: 06 March 2025, 12:30 PM IST

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