इस मंहगाई के दौर में सभी लोग किसी न किसी तरह से रोजी रोटी जुटा पाते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है एक किसान को जब फसल उत्पादन के बाद उस फसल की लागत का मूल्य भी न पाए तो वो अपनी रोजी रोटी कैसे चला पाता होगा, या शायद चला ही ना पाता हो.
ऐसा ही देखने को मिल रहा है इस समय देश की मंडियों में, जहां टमाटर की कीमत मात्र 1 रूपये है. इस कीमत में किसान को क्या मिलता होगा, जबकि ढुलाई का ही खर्चा इससे ज्यादा है. पटवन, मेहनताना इन सबका भी खर्चा इनसे अलग है. आप खुद बताइए ऐसी स्थित में किसान के पास इसे बर्बाद करने के अलावा क्या कोई रास्ता बचता है.
सोचिये उस किसान पर क्या बीतती होगी जब वो सब्जी मंडी ले जाता है बेचने के लिए और उसे वहां उचित दाम न मिलने के कारण उन्ही सब्जियों को फेकन पड़ रहा है. गुस्से से लाल किसानों ने कहा कि अगर खाद्य प्रसंस्करण उद्द्योग होता तो शायद उन्हें सब्जी इस तरह फेंकनी न पड़ती.
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