देश के सबसे पुराने चावल अनुसंधान केंद्रों में एक कारजात अपने 100 वर्ष पूरे करेगा। महाराष्ट्र के करजत में स्थिति यह चावल अनुसंधान केंद्र एक क्षेत्रीय स्टेशन के तौर स्थापित किया गया था। ब्रिटिश शासन के दौरान यह स्टेशन बाम्बे प्रोविंस के द्वारा इसकी आधारशिला रखी गई थी। इस बीच बताया जानकारी दी जा रही है कि 20 से अधिक सफलतम किस्मों का अनुसंधान कार्य किया गया है। जिसमें कुछ किस्मों ने तो पूरे भारत में अपना धमाल मचाया है।
इस अनुसंधान केंद्र ने विभिन्न प्रकार की बीमारियों के प्रतिरोधक किस्मों का अनुसंधान का कार्य किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा इसे चावल के उच्च अनुसंधान के लिए ए-ग्रेड में रखा गया है। यही नहीं केंद्र ने 34 चावल के ब्रीडर्स के साथ मिलकर भी कार्य किया है। हालांकि यदि महाराष्ट्र में राज्य में चावल उत्पादन की बात करें तो देश में 13 वां स्थान पर है। पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के औसत उत्पादन से कम है। 1998 व 2000 के दशक में केंद्र ने उच्च उत्पादन वाली देश की तीसरी व महाराष्ट्र की पहली हायब्रिड चावल की सहयाद्रि किस्म विकसित की। इसके बाद सहयाद्रि-2, सहयाद्रि-3, सहयाद्रि-4 आदि किस्में भी विकसित की गईं। इनकी उत्पादन क्षमता काफी अधिक है।
पंजाब व हरियाणा में धूम मचाने वाली चावल की किस्म सहयाद्रि-4 का अनुसंधान 2008 में किया गया। प्रति हैक्टेयर लगभग 100 क्विंटल का उत्पादन करने वाली इस किस्म का पंजाब,हरियाणा व उत्तर प्रदेश में खूब बुवाई की गई थी। जबकि सहयाद्रि-3 का औसत उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दर्ज किया गया था।
वर्तमान में अच्छी उत्पादन वाली चावल की किस्मों का अनुसंधान लगभग 39 एकड़ में किया जा रहा है जिसमें 120-145 दिनों में विकसित होने वाली तीन किस्में बीआरसीसीकेकेवी-13,बीएम-4,कारजात10 पर काम किया जा रहा है।
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