नयी दिल्ली : देश में कृषि वैज्ञानिकों ने करेले की एक ऐसी संकर किस्म का विकास किया है जो मधुमेह बीमारी को नियंत्रित करने में और अधिक कारगर सिद्ध होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने वर्षों के अनुसंधान के बाद करेले की नयी किस्म पूसा हाईब्रिड -4 का विकास किया है।
किसानों के लिए इसकी व्यावसायिक खेती करेले की अन्य किस्मों की तुलना में न केवल लाभदायक है बल्कि इसमें अधिक औषधीय तत्व हैं। करेले की अन्य संकर किस्मों की तुलना में नयी किस्म में 15 दिन पहले फल लगने लगते हैं और इसका उत्पादन भी 20 से 30 प्रतिशत अधिक है।
आईएआरआई के सब्जी अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक तुषार कांति बेहरा ने बताया कि पूसा हाईब्रिड -4 में पारांटिन, मोमोडीसीन और सपोनीन जैसे तत्व पाये जाते हैं जो इसे मधुमेहरोधी बनाता है। मधुमेह के रोगी आहार में करेला की इस किस्म को शामिल करते हैं तो यह पित्ताशय को सक्रिय करता है जिससे इंसुलिन का निर्माण होता है तथा रोगियों को राहत मिलती है।
करेले में कैलोरी बहुत कम होती है और यह विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3 का अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन सी, मैग्निशियम, जिंक, फास्फोरस आदि तत्व पाये जाते हैं। यह रक्त के विकारों को भी ठीक करता है। डॉ बेहरा ने बताया कि आमतौर पर करेले की फसल में 55 से 60 दिनों में फल आने शुरू होते हैं जबकि नयी किस्म में 45 दिन में फल लग जाते हैं।
इसके साथ ही इसकी पैदावार भी 20 से 30 प्रतिशत अधिक है। गहरे हरे रंग का यह करेला मध्यम लम्बाई और मोटाई का है जिसका औसत वजन 60 ग्राम होता है। उन्होंने बताया कि नयी किस्म दो बार फरवरी के अंत और मार्च में तथा अगस्त एवं सितम्बर के दौरान लगाया जाती है।
लगभग चार माह तक इसमें फल लगते हैं और एक एकड़ में इसकी खेती से 50 से 60 हजार रुपये की आय हो सकती है। करेले की यह एक ऐसी किस्म है जिसे जमीन और मचान पर भी भरपूर पैदावार ली जा सकती है।
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