सूखा की मार झेल रहे कर्नाटक में राज्य सरकार एक स्वतंत्र फसल बीमा योजना ला रही है. बिहार के बाद कर्नाटक दूसरा ऐसा राज्य है जो केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना से इतर अपनी राज्य आधारित बीमा स्कीम लागू कर रहा है.
माना जा रहा है कि राज्य में केंद्र द्वारा लागू बीमा योजना, किसानों के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुई है. इस योजना में फसल के नुकसान का आकलन करने के लिए अपनाए गए मानदंड जटिल हैं और दावों की भुगतान प्रक्रिया में भी देरी होती है. फसल वर्ष 2016-17 की अवधि में से ही लगभग 150 करोड़ रूपये के दावों का भुगतान किया जाना बाकी है.
अभी कर्नाटक सरकार बिहार में लागू की गई योजना का विश्लेषण कर रही है. इसके अलावा फसल बीमा लागू करने के बाद के बाद होने वाले वित्तीय प्रभावों का भी अध्ययन किया जा रहा है. राज्य ने फसल बीमा प्रीमियम के लिए 845 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है.
सनद रहे कि इस वर्ष बिहार ने खरीफ सीजन के दौरान किसानों को हुए फसल के नुकसान की भरपाई के लिए अपनी फसल बीमा योजना लागू की थी.
कमजोर दक्षिण-पश्चिम मानसून के चलते कर्नाटक सूखा की समस्या से जूझ रहा है. राज्य में लगभग 16,662 करोड़ रुपये के फसल नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है. स्थिति को देखते हुए राज्य ने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के तहत केंद्र से ₹ 2,434 करोड़ रुपये की सहायता मांगी है.
कम बारिश की कमी के चलते मक्का, मूंगफली, ज्वार और दाल जैसी फसलों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है. राज्य की तक़रीबन 100 तहसीलों को पहले ही सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है. अभी लगभग 10 तहसीलों को इस लिस्ट में और जोड़े जाने की उम्मीद है.
सूखे के प्रभाव का आकलन करने के लिए अधिकारियों की एक केंद्रीय टीम शनिवार से राज्य का दौरा करेगी.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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