भारतीय वैज्ञानिकों को कैंसर की रोकथाम के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिली है. वैज्ञानिकों ने चावल की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर-रोधी गुणों का पता लगाया है. खबरों के मुताबिक चावल की इन किस्मों के नाम गठवन, महाराजी और लाइचा हैं, जो छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा उगाई जाती हैं.
रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आईजीकेवी) के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख वैज्ञानिक दीपक शर्मा ने मीडिया को यह जानकारी दी है. शर्मा ने बताया कि पिछले दिनों आईजीकेवी और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) मुंबई के वैज्ञानिकों द्वारा गठवन, महाराजी और लाइचा प्रजातियों पर संयुक्त शोध किया गया था. इस शोध में पाया गया है कि चावल की इन तीनों प्रजातियों में ऐसे औषधीय गुण हैं, जो कैंसर से लड़ने की क्षमता रखते हैं.
दीपक शर्मा ने आगे बताया, ‘चावल की इन तीनों किस्मों में शरीर की अन्य कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना लंग (फेफड़े) और स्तन कैंसर का इलाज करने की क्षमता है. शोध के दौरान लंग कैंसर के मामले में गठवन धान ने 70 प्रतिशत, महाराजी धान ने 70 प्रतिशत और लाइचा धान ने 100 फीसदी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया. जबकि, स्तन कैंसर की कोशिकाओं को गठवन ने 10 प्रतिशत, महाराजी ने 35 प्रतिशत और लाइचा धान ने सर्वाधिक 65 फीसदी तक नष्ट कर दिया.’
यह शोध करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि कोई व्यक्ति हर दिन अपने खाने में कम से कम 200 ग्राम तक यह चावल शामिल करे तो उसके शरीर में कैंसररोधी तत्व पर्याप्त मात्रा में आ सकते हैं. दीपक शर्मा ने यह भी बताया कि अब शोध के अगले चरण में वैज्ञानिक इन चावलों से कैंसररोधी तत्वों को निकलने की कोशिश करेंगे जिसके बाद चूहों पर इनका ट्रायल किया जाएगा.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बस्तर और उसके आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में लम्बे समय से लोग इन चावलों का उपयोग औषधि की तरह करते आ रहे हैं. ये लोग मुख्य रूप से गठवान धान का उपयोग गठिया और लाइचा धान से त्वचा संबंधी बीमारियों का इलाज करते हैं.
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