चाय का नाम सुनते ही चाय के दीवानों के जेहन में आसाम या दार्जिलिंग की याद आ जाती है और तो और वहां की चाय की खुशबू ने भी लोगों को दीवाना बना दिया है पर आज हम आपको सारुडीह चाय के बारे में बताने वाले हैं जी हाँ अब ये नाम से जल्द ही बाजार में एक ब्रांड के रूप में नजर आएगा क्योंकि सारुडीह जसपुर, छतीसगढ़ का क्षेत्र है और यहाँ पर अब चाय के कई बागान आपको देखने को मिल सकते हैं क्योंकि यहाँ के ग्रामीणों ने पारम्परिक खेती को छोड़ अपने खेतों में चाय के पौधे लगाएं है और इस कार्य के लिए एक स्वयं सहायता समूह के कुछ सदस्यों द्वारा और वन विभाग के प्रयासों के माध्यम से चाय की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है क्योंकि पहले धान की खेती करने में किसानों को प्रति एकड़ 15 से 20 हजार रूपए की आमदनी होती थी पर चाय के पौधे लगाने के बाद इनकी आमदनी 1 से 1.5 लाख रूपए प्रति एकड़ हो गयी है इससे किसानो का मनोबल बढ़ा है वन बिभाग के विशेषज्ञों द्वारा सारुडीह की जलवायु चाय के पौधों के लिए उपयुक्त है जिससे इस योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है इसके लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कई टी आउटलेट से जोड़ने की योजना बना रही है और अगले साल तक सारुडीह में पचास लाख की लागत से चाय का प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाने की योजना है अभी तक यह खेती महिला समूह द्वारा की जा रही है और इसके नतीजे चौकाने वाले रहे है जिसके वजह से आस-पास के किसानों को भी चाय की खेती लिए जागरूक किया जा रहा है
आपको बता दें की चाय के एक पौधे की उम्र 100 साल होती है यानि की एक बार अगर पौधा लगा दिया तो सौ साल तक सिर्फ पत्तियां तोड़ते रहो और बेचते रहो वन विभाग के माध्यम से सारूडीह में चाय के पौधों की नर्सरी भी तैयार करने की योजना है जिससे किसानों को किफायत मूल्य पर पौधे उपलब्ध हो पाएं अभी तक सारूडीह में हर हफ्ते 150 से 200 किलो प्रति हफ्ते पतियों को तोड़ा जा रहा है और स्थानीय बाजार में बेचा जा रहा है पर आने वाले साल में इसके उत्पादन में 20 से 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी जल्द ही देश के अन्य राज्यों में इसे आउटलेट के माध्यम से उपलब्ध किया जाएगा!
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