वर्गीय प्रजाति के फल से बनने वाला पेठा कद्दू भारत में बहुत लोकप्रिय है. इसका उपयोग आम तौर पर सब्जियों की अपेक्षा मिठाई बनाने में होता है. मूलरूप से इसकी खेती सबसे अधिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होती है, लेकिन नए तकनीकों के आने से अब इसकी खेती अन्य राज्यों जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में भी होने लगी है. हल्के सफेद रंग की पाउडर परत वाले ये फल 1-2 मीटर लंबे भी हो सकते हैं.
क्षेत्रिय भाषाओं में इन नामों से जाना जाता है पेठा (Petha is known by these names in regional languages)
पेठा कद्दू को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कुष्मान या कुष्मांड फल बोला जाता है तो बिहार में इसे भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू कहा जाता है. हालांकि पेठा मिठाई में उपयोग होने के कारण इसे आम जन में पेठा कद्दू ही कहा जाता है.
बुवाई का उचित समय (Right time of sowing)
इसकी बुवाई का सही वक्त फरवरी से मार्च या जून से जुलाई है. वैसे पहाड़ी क्षेत्रों में इसे मार्च से अप्रैल महीने के बीच भी बोया जाता है.
मिट्टी एवं खाद (Soil and compost)
इसकी खेती के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है. बुवाई से पहले खेतों की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना फायदेमंद है. अगर कल्टीवेटर का उपयोग किया जा रहा है तो जुताई 2 से 3 बार की जाना चाहिए. जुताई के बाद पाटा लगाना ना भूलें. सड़ी हुई गोबर या नीम की खली का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता है.
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तुड़ाई का सही समय (Right harvest time)
पेठा कद्दू की तुड़ाई का सही समय बुवाई के लगभग 3 से 4 महीने बाद का है. यह देखना ज़रूरी है कि फलों की तो तुड़ाई से पहले फलों पर सफेद रंग की परत चढ़ चुकी है या नहीं. वैसे आप चाहें तो तुड़ाई से पहले कारोबारियों से बात कर सकते हैं. अक्सर कारोबारी तैयार फसल खरीदने के लिए उत्सुक रहते हैं. तुड़ाई के लिए तेज धारी चाकू का उपयोग करें.
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