बाजार में आपूर्ति बढऩे और कमजोर मांग के कारण सोयाबीन की कीमतों में गिरावट का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। खुदरा कारोबारियों और स्टॉकिस्टों की सुस्त मांग के साथ बाजार में सरसों की आवक ने भी सोयाबीन पर दबाव का काम किया है। सोयाबीन 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे पहुंच चुका है और उसमें फिलहाल सुधार नहीं नजर आ रहा है। सोयाबीन की कीमतों में लगातार गिरावट का दौर बना हुआ है। हाजिर बाजार में सोयाबीन के दाम गिरकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के करीब कारोबार कर रहे हैं।
वायदा बाजार में कीमत लुढ़क कर 2,960 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई। वैश्विक बाजार में भी कमजोर मांग के चलते सीबोट में कीमतों में गिरावट हो रही है। पिछले एक साल में हाजिर बाजार में सोयाबीन की कीमतों में करीब 21 फीसदी की गिरावट हुई है, वहीं वायदा बाजार में सोयाबीन 18 फीसदी से भी ज्यादा टूट चुका है।
विशेषज्ञों के अनुसार सोयाबीन की कीमतों में नरमी का रुझान रहने की संभावना है। आपूर्ति में बढ़ोतरी होने और कमजोर मांग के कारण कीमतों में नरमी का रुझान है। पोल्ट्री आहार के लिए सोयामील की अधिक मात्रा में खरीदारी नहीं होने के कारण आहार निर्माताओं की ओर से मांग में वृद्धि नहीं हो रही है। वैश्विक बाजार में भी कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है।
सीबोट में अमेरिकी सोयाबीन की कीमतों में गिरावट हुई। यूएसडीए के अनुसार ब्राजील और अर्जेंटीना में सोयाबीन के अधिक उत्पादन का अनुमान है। दक्षिण अमेरिकी देशों में रिकॉर्ड निर्यात के कारण अमेरिकी निर्यात सीमित रहने का अनुमान है। सोयाबीन की कीमतों में गिरावट की एक वजह रबी सीजन की तिलहन फसल सरसों का बाजार में आना माना जा रहा है।
मौजूदा सीजन में सरसों का उत्पादन अधिक होने का अनुमान है जिसके कारण भी सरसों के साथ सोयाबीन की कीमतें भी दबाव में रहने वाली हैं। बाजार में सरसों की नई फसल आना शुरू हो गई है। अलवर, भरतपुर, और कोटा क्षेत्रों में फसल कटाई के साथ सरसों की आवक में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है। फसल की स्थिति बहुत अच्छी बताई जा रही है। सोयाबीन के विकल्प के रूप में खरीदार सरसों की खरीदारी कर सकते हैं जिसके कारण कीमतें दबाव में रहने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार मौजूदा रबी सीजन में सरसों का उत्पादन 9.3 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 70.6 लाख टन होने की का अनुमान है। अधिक स्टॉक के बीच उपभोक्ताओं की ओर से सुस्त मांग के कारण कारोबारी बढ़ा करार करने से बच रहे हैं। रिटेलरों और स्टॉकिस्टों की ओर से भी मांग कम हो रही है। ऐसे में कीमतें दबाव में रहेंगी।
सोर्स : बिजनेस स्टैंडर्ड
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