
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में सोमवार को ‘कृषि सखियों’ के लिए पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत आयोजित यह प्रशिक्षण 12 सितम्बर तक चलेगा. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कुलपति डॉ. पी. एस. पांडेय ने की. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती वैदिक परंपरा से चली आ रही विधि है, जिसे पुनर्जीवित करना समय की माँग है.

रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हुई है, ऐसे में टिकाऊ खेती के लिए प्राकृतिक पद्धतियों को अपनाना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि कृषि सखियां गाँव-गाँव में प्राकृतिक खेती की पथप्रदर्शक बनेंगी और नई कृषि क्रांति की नींव रखेंगी. साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से भी इसके प्रचार-प्रसार में योगदान देने की अपील की.
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय और कृषि विभाग से जुड़े कई विद्वान व पदाधिकारी शामिल हुए. इनमें डॉ. मयंक राय (अधिष्ठाता, स्नातकोत्तर कृषि महाविद्यालय), डॉ. ए. के. सिंह (अनुसंधान निदेशक), डॉ. सुमित सौरव (जिला कृषि पदाधिकारी, समस्तीपुर), डॉ. पी. पी. श्रीवास्तव (अधिष्ठाता, मात्स्यिकी महाविद्यालय), डॉ. उषा सिंह (अधिष्ठाता, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय), डॉ. यू. के. बेहरा (शिक्षा निदेशक), डॉ. आर. के. झा और डॉ. एस. पी. सिंह प्रमुख रहे. प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयन डॉ. शंकर झा ने किया, संचालन डॉ. सौरभ तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एस. एस. प्रसाद ने प्रस्तुत किया.

पाँच दिवसीय यह प्रशिक्षण न केवल कृषि सखियों को प्राकृतिक खेती की तकनीकी जानकारी देगा, बल्कि उन्हें ग्राम स्तर पर रसायन-मुक्त और टिकाऊ खेती के प्रसार के लिए तैयार करेगा. प्रशिक्षित सखियां आगे चलकर अपने गाँवों में उदाहरण प्रस्तुत करेंगी और महिलाओं को भी इस दिशा में प्रेरित करेंगी.
लेखक: रामजी कुमार, एफटीजे, कृषि जागरण, समस्तीपुर-बिहार
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