आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एआइ एल्गोरिदम की वजह से ऐसे काम आसानी से हो सकेंगे, जो एक ही ढर्रे पर लगातार होते हैं और जिनमें बहुत समय लग जाता है। मनुष्य पारस्परिक संबंधों, सामाजिक कार्यो और भावनात्मक गुणों को निखारने पर काम कर सकेंगे। विकासशील देशों में इसका सबसे बड़ा फायदा कृषि क्षेत्र को होगा।
एआइ पहले से ही मौसम की जानकारी से लेकर बाजार भाव बताने तक के विभिन्न मामलों में किसानों की सहायता कर रहा है। सब-सहारा अफ्रीका में यूएन फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइजेशन की मदद से एक एप बनाया गया है जो फसलों के कीड़ों की पहचान कर लेता है। अन्र्स्ट ने कहा, 'वर्तमान समय में जरूरत है कि लोगों को डिजिटल टेक्नोलॉजी की जानकारी दी जाए, ताकि वे मशीनों के साथ आसानी से काम कर सकें। लोग इन मशीनों का उसी तरह इस्तेमाल करने में सक्षम बनें, जैसे वो अपनी कार या कुल्हाड़ी का करते हैं।'
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) जैसी तकनीक के विकास से दुनियाभर में यह डर पैदा हुआ है कि कहीं मानवों के रोजगार पर पर रोबोट का कब्जा ना हो जाए। कई लोगों ने इस तकनीक के विकास से बेरोजगारी की समस्या भयावह होने की आशंका भी जताई है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेषज्ञ एकहार्ड अन्र्स्ट इससे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि एआइ के आने से रोजगार का स्वरूप बदलेगा, लेकिन बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की स्थिति नहीं पैदा होगी।
भारतीय कंपनियों में नियुक्तियों की स्थिति इस साल बेहतर रहने की उम्मीद है। यूबीएस एविडेंस लैब के सी-सुइट सर्वे में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक, बढ़ती मांग को देखते हुए कंपनियां अपने यहां स्टाफ बढ़ाने की तैयारी में हैं। नियुक्तियां पिछले साल से बेहतर रह सकती हैं। विभिन्न कंपनियों के 247 एक्जीक्यूटिव (सीईओ, सीएफओ, स्ट्रेटजी व फाइनेंस निदेशक आदि) के बीच इस सर्वे को अंजाम दिया गया।
यूबीएस ने अनुमान जताया है कि अगले पांच साल सालाना 40 लाख की औसत से रोजगार सृजन होगा। पिछले पांच साल में यह औसत सालाना 20 लाख रोजगार का रहा है। सर्वे में यह भी कहा गया है कि ऑटोमेशन की नई तकनीकों से रोजगार पर अभी कोई नकारात्मक असर पड़ता नहीं दिख रहा है। अन्र्स्ट का मानना है कि अपनी रचनात्मक क्षमताओं के चलते मनुष्य इन सब मशीनों से ऊपर रहेगा। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में और विशेषरूप से विकसित देशों में एआइ से बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इनसे कंस्ट्रक्शन, हेल्थकेयर और बिजनेस जैसे सेवा क्षेत्रों पर असर पड़ेगा।
अर्नस्ट ने कहा, 'मामला नौकरी के अवसर खत्म होने से ज्यादा काम के स्वरूप में बदलाव का है। इन क्षेत्रों के कर्मचारियों के सामने नए तरह के काम आएंगे, जिनमें उनकी मदद के लिए कंप्यूटर और रोबोट होंगे।'
यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि तकनीकी विकास उपभोक्ताओं की मांग और कंपनियों की आपूर्ति पर निर्भर है। यह इस पर निर्भर है कि कर्मचारी तकनीक को विकसित करने में कितने सक्षम हैं और ग्राहक ऐसी तकनीक चाहता है या नहीं। उन्होंने ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ते ट्रेंड को भी उपभोक्ताओं के व्यवहार में आए बदलाव का उदाहरण माना है।
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से देखा जा सकता है कि प्रौद्योगिकी ने नए उत्पाद और बाजार का निर्माण किया है। 20वीं सदी में ऑटोमोबाइल सेक्टर ने घोड़ागाड़ी को चलन से बाहर कर दिया, लेकिन इसी के साथ उसने कार निर्माण से लेकर सर्विसिंग तक ढेरों रोजगार के अवसर पैदा कर दिए। हाल के वर्षो में मोबाइल एप बनाने वालों का बड़ा बाजार तैयार हो गया है। स्मार्टफोन आने से पहले इनका कोई अस्तित्व ही नहीं था। अन्र्स्ट ने एआइ तकनीक को अपनाने में आने वाली कई नियामकीय चुनौतियों का भी जिक्र किया।
चंद्र मोहन
कृषि जागरण
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