प्रकृति के रोष से किसानों की स्थिति सुधरने के कोई भी संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं। जिस कारण किसानों की चिंता चरम की ओर बढ़ती ही जा रही है। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के किसानों की, जहां पहले तो अतिवृष्टि और बाढ़ का प्रकोप बरपा रहा। इस हालात में किसानों को फसल एवं पशुधन में भयानक हानि का सामना करना पड़ा। सोयाबीन, धान सहित अन्य फसलें चौपट हो गई। उसके बाद बची फसलों पर सूखे का प्रकोप छाया हुआ है। मध्यप्रदेश के रीवा- सतना, और भिण्ड- मुरैना जिले में पिछले लगभग 15 दिनों से बादल लुका छुपी का खेल भले खेलते नजर आए हों लेकिन एक बूंद बरसात नहीं हुई है। ऐसा ही हाल इंन्दौर - उज्जैन का है। किसानों को पहले बाढ़ का नुकसान अब सूखे की मार झेलनी पड़ रही है।
प्रदेश के कई किसानों से बात करने पर पता चला कि धान की फसल को अभी तैयार होने के लिए कम से कम 7 बार सिंचाई करना बेहद जरूरी है लेकिन सिंचाई करना आसान नहीं है इसके कई समस्याओं का सामना हो रहा है। रीवा जिले के किसान विकास सिंह ने बताया कि उन्होंने लगभग 20 बीघे में धान की फसल लगाई है पिछले 15 दिन से बरसात रहीं होने से सिंचाई में जी जान से जुटे हैं लेकिन सिंचाई आसान नहीं है। क्योंकि विद्युत विभाग बमुश्किल 8 से 10 घण्टे लाइट देते हैं उसमें भी आंख मिचैली का खेल जारी रहता है। डीजल का रेट लगभग 60 रूपए लिटर होने से डीजल इंजन से सिंचाई कर पाना किसान के बजट की बात नहीं है। वहीं भिण्ड जिले के किसान शिवम त्रिपाठी ने बताया कि लगभग 20 दिन से बरसात नहीं होने से तिल और बाजरे की सिंचाई में लगे हैं फसल तैयार हो पाएगी या नहीं अभी कुछ कह नहीं सकते हैं। फसल भी तैयार हो जाए तो बहुत बड़ी बात है।
लेकिन झाबुआ कृषि विज्ञान केन्द्र से मिली जानकारी कुछ राहत भरी रही उन्होंने बताया कि सोयाबीन और धान में पानी की जरूरत तो है लेकिन बारिश न हुई तो सिंचाई से इसकी पूर्ति हो जाएगी। लेकिन पूरे प्रदेश भर की बात करें तो अधिकांश भाग में सिंचाई को लेकर स्थिति चिंताजनक है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के किसानों की हालत दयनीय है परन्तु सरकार है कि किसानों को मदद करें या नहीं लेकिन आश्वासन पर आश्वासन देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
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